Joshimath Sinking: जोशीमठ, उत्तराखंड में बसा एक छोटा सा शहर है। हिमालय की तलहटी में स्थित इस खूबसूरत शहर में हाल के वर्षों में निर्माण और जनसंख्या दोनों में तेजी से वृद्धि हुई है। भगवान बद्रीनाथ के शीतकालीन निवास के रूप में जाना जाने वाला जोशीमठ इनदिनों कुछ और कारणों से चर्चा में है। दरअसल, जोशीमठ के 500 से अधिक घरों में दरारें आ गई हैं। सड़कें फट गई हैं। जोशीमठ के निवासी शहर की इमारतों और गलियों में दरारें देखकर चिंतित हो गए हैं। फिलहाल उत्तराखंड सरकार ने भयभीत लोगों के विरोध के के बाद 5 जनवरी से क्षेत्र में विकास कार्य पर रोक लगा दी।
क्यों धंस रही जोशीमठ की जमीन?
जोशीमठ के नीचे की जमीन धंस रही है, जिसके कारण घरों में दरारें आ गई हैं। पहले ही, 50 से अधिक परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने क्षेत्र से 600 परिवारों को तत्काल खाली करने का आदेश दिया है। लगभग 6,000 फीट की ऊंचाई पर बसे जोशीमठ में बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब, औली और फूलों की घाटी की ओर जाने वाले यात्री आगे की यात्रा करने से पहले रात भर रुकते हैं। लेकिन जो बात इस शहर को अलग करती है, वह इसका भूगोल है।
उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (USDMA) के एक अध्ययन के अनुसार, शहर लैंडस्लाइड की संभावना वाले क्षेत्र में है और इसमें धंसने की पहली घटना 1976 में मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में दर्ज की गई थी। जोशीमठ शहर के आसपास का क्षेत्र ओवरबर्डन मटेरियल की मोटी लेयर से ढका हुआ है। यूएसडीएमए के कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला ने कहा, ”यह शहर को डूबने के लिए अत्यधिक संवेदनशील बनाता है।”
अब तक कुछ क्यों नहीं कहा और किया गया?
बता दें कि विशेषज्ञों ने दशकों से चेतावनी दी है कि यह क्षेत्र बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण को संभाल नहीं सकता है। इस तरह की पहली रिपोर्ट 1976 में सामने आई। इसने संकेत दिया गया था कि जोशीमठ में असंतुलन जीवन और संपत्ति को खतरे में डाल सकता है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की वैज्ञानिक डॉ. स्वप्नमिता वैदेश्वरन की 2006 की एक रिपोर्ट से पता चला है कि ऊपर की ओर धाराओं से रिसाव देखा गया था, जिसने जोशीमठ की मिट्टी को ढीला कर दिया होगा। दूसरी ओर, स्थानीय निवासियों का कहना है कि 2013 की हिमालयी सूनामी से आए कीचड़ से शहर के नाले लगभग बंद हो गए हैं।
क्या कोई बड़ा पर्यावरणीय प्रभाव है?
भूगोल जानने वाले एक्सपर्ट का मानना है कि पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड के हिमालय में असामान्य मौसम की घटनाओं में काफी तेजी आई है। जिसमें जंगल की आग, हिमस्खलन, अचानक बाढ़ और भूस्खलन की घटना शामिल है। उत्तराखंड हिमालय क्षेत्र में लगभग 900 ग्लेशियर हैं। जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती जा रही है, ये ग्लेशियर भी पिघलने लगी है। यहां की घाटियां भी बड़ी मात्रा में ढीले तलछट से भरी हुई हैं, जिससे यहां की मिट्टी ढीली हो जाती हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र में सबसे विनाशकारी बाढ़ इन्हीं घाटियों से आई है।
क्या किया जा सकता है?
विशेषज्ञ क्षेत्र में विकास और पनबिजली परियोजनाओं को पूरी तरह से बंद करने की सलाह दे रहे हैं। मिट्टी की क्षमता को बनाए रखने के लिए विशेष रूप से संवेदनशील जगहों पर पेड़-पौधे लगाने की सिफारिश कर रहे हैं। वे यह भी कह रहे हैं कि जोशीमठ के निवासियों को तुरंत सुरक्षित स्थानों पर बसाया जाए। केंद्र सरकार जोशीमठ में भू-धंसाव और उसके प्रभाव का ‘त्वरित अध्ययन’ करने के लिए पहले ही एक पैनल का गठन कर चुकी है। मानव बस्तियों, इमारतों, राजमार्गों, बुनियादी ढांचे और नदी प्रणालियों पर भूमि के डूबने के प्रभावों को भी कवर किया जाएगा। जोशीमठ का डूबना इस बात की चेतावनी है कि कैसे मानव हस्तक्षेप का नाजुक हिमालयी क्षेत्र पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। यही कारण है कि हम अब समस्या को अनदेखा करना जारी नहीं रख सकते हैं।
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