UP Election 2022: धनंजय सिंह पूर्वांचल का वो नाम है, जो तीन दफे ‘माननीय’ का तमगा पा चुका है। दो दफे विधायक औऱ एक बार सासंद रहा धनंजय सिंह जब 90 के दशक में तिलकधारी सिंह कॉलेज, जौनपुर में इंटरमीडियट की पढ़ाई करने पहुंचा तो चेहरे पर ठीक से मुंछ की रेख भी नहीं आयी थी, हड्डियों के ढांचे पर शर्ट-पैंट का लबादा ओढ़े हर किसी से भिड़ने को तैयार रहता था।
धनंजय सिंह में मनबढ़ई इतनी ज्यादा थी कि सामने वाला आदमी चाहे कितना भी मुशकधारी हो वो डरने वालों में से नहीं था। जौनपुर की मूली और मक्का का नाम बहुत दूर तक लिया जाता है लेकिन समय बीतने के साथ लोग व्यंग के तौर पर मूली और मक्के के साथ-साथ मक्कारी को भी जोड़ने लगे। ऐसा क्यों हुआ ये आप आगे की कहानी में समझेंगे।
12वीं की यूपी बोर्ड की परीक्षा धनंजय सिंह ने पुलिस हिरासत में दी थी
साल 1992 तक धनंजय सिंह छिटपुट झगड़ों से निपट चुका था और उसकी कुंडली में उसका वक्त भी खत्म हो गया था। वक्त आ गया था जरायम के उस खतरनाक पेशे में उतरने का, जिसके लिए वो हड्डी बदन लिये बारहां बना करता था। 92 में टीडी कॉलेज से 12वीं की यूपी बोर्ड की परीक्षा दे रहे धनंजय सिंह की किस्मत में पहली बार पुलिस का योग बना और वो भी एक युवक की हत्या के आरोप में। बोर्ड का पेपर भी धनंजय सिंह ने पुलिस की हिरासत में दिया।
खैर किसी तरह उस मामले में उलझा हुआ धनंजय सिंह आगे की पढ़ाई के लिए आ धमका उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में। 90 का दशक लखनऊ यूनिवर्सिटी के लिए सबसे खराब दौर माना जाता है। यूनिवर्सिटी में हो रहे अपराध के कारण हसनगंज थाने का रोजनामचा रोजाना लाल स्याही से सराबोर रहता था। यहां से छात्र या तो खद्दर पहनकर नेतागिरी करने निकलते थे या फिर तमंचा लेकर अपराधी बनने।
जबकि एक दौर था कि इसी यूनिवर्सिटी ने भारत को दो-दो राष्ट्रपति दिये। जी हां, डॉक्टर जाकिर हुसैन और डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा इसी यूनिवर्सिटी के अमूल्य धरोहर थे। इनके अलावा सुरजीत सिंह बरनाला, अतुल अंजान, सैयद सिब्ते रजी, केसी पंत, सज्जाद जहीर और विजया राजे सिंधिया जैसे न जाने कितने नेताओं को इस यूनिवर्सिटी ने अपनी कोख में पैदा किया।
धनंजय सिंह लखनऊ यूनिवर्सिटी के गोल्डन जुबली हॉस्टल में अभय सिंह के साथ रहता था
90 का दशक उसी लखनऊ यूनिवर्सिटी के अद्भुत पराभव का समय रहा, जब धनंजय सिंह टीडी कॉलेज से सीधे गोल्डन जुबली हॉस्टल पहुंचा। उसी समय फैजाबाद का एक और दबंग छात्र अभय सिंह भी गोल्डन जुबली में रहा करता था जो बाद में समाजवादी पार्टी की ओर से माननीय बना और धनंजय सिंह के पहले जानी दोस्त और फिर बाद में जानी दुश्मन बना।
शोले के जय-बीरू की तरह अभय सिंह और धनंजय सिंह ने लखनऊ यूनिवर्सिटी में गदर मचाना शुरू कर दिया। एक अन्य दबंग छात्र अनिल सिंह का अपना अलग गैंग था, जिसके खास आदमी अजय सिंह की हत्या 1996 में कर दी गई। अजय सिंह आजमगढ़ का रहने वाला था और उसकी हत्या में अभय सिंह के साथ धनंजय सिंह का नाम जुड़ा और यहीं से धनंजय सिंह ने सही मायने में अपराध की दुनिया में एंट्री ली। बाद में अनिल सिंह गैंग ने धनंजय गुट के एक छात्र अभिषेक सिंह की हत्या करके मामला बराबर कर लिया।
उस वक्त लखनऊ यूनिवर्सिटी में दिनदहाड़े बम चलना, गोलियां चलना, हॉकी-राड से सरेआम पिटाई करना रोजमर्रा की बात थी। इधर प्रोफेसर क्लास में पढ़ा रहे होते उधर कोई क्लास के बाहर बम फोड़ देता। धनंजय सिंह और अभय सिंह की जुगलबंदी ने यूनिवर्सिटी प्रशासन को इतना रूला दिया कि यूनिवर्सिटी ने उन्हें बिना बीए किये ही निकाल देने का फैसला किया।
उसके बावजूद धनंजय सिंह के गोल्डन जुबली वाले कमरे में कोई दूसरा छात्र रहने की हिम्मत नहीं करता। हॉस्टल में धनंजय सिंह का कमरा चाहे जिसके नाम से अलॉट हो, हमेशा उनके लिए खाली रहता। यदाकदा धनंजय सिंह औऱ अभय सिंह हॉस्टल आकर उस कमरे में ठहरा करते थे।
फिल्म ‘गदर’ में तारा सिंह के हैंडपंप उखाड़ने का दृश्य लखनऊ के ला मार्टिनियर स्कूल का है
अब आपको एक मजेदार किस्सा बताते हैं। आपको याद है सनी देयोल की फिल्म ‘गदर’। उसका वो सीन याद करिये जब सकीना के लिए तारा सिंह पूरी भीड़ के सामने हैंडपंप उखाड़ लेता है और मुंगरे की तरह उखाड़े हुए उस हैंडपंप से भीड़ को पिटते हुए वहां से निकल जाता है।
‘गदर’ का वो सीन फिल्म के निर्देशक अनिल शर्मा ने लखनऊ के मशहूर ला मार्टिनियर स्कूल में फिल्माया था। इस स्कूल की पूरी दुनिया में केवल तीन शाखाएं हैं। पहला लखनऊ, दूसरा कलकत्ता (कोलकाता) और तीसरा फ्रांस में। इस स्कूल की नींव एक फ्रांसीसी मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन ने रखी थी। 1857 के गदर के अलावा इस स्कूल ने दो-दो विश्व युद्ध और भारत-पाकिस्तान के बंटवारे को भी बहुत करीब से देखा है।
उपर मैं जिन दो हत्याओं का जिक्र कर रहा था, उसमें से एक का संबंध लखनऊ के इसी करीब 176 साल पुराने ला मार्टिनियर स्कूल और धनंजय सिंह से जुड़ा है। 7 मार्च 1997 के दिन सुबह के करीब 6 बजे ला मार्टिनियर स्कूल के बैचलर्स हॉस्टल में वॉर्डन फैड्रिक गोम्स की 18 गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस मामले में सीधे तौर पर धनंजय सिंह की संलिप्तता पायी गई और यह मर्डर शुद्ध रूप से ठेके का मर्डर था यानी पैसे लेकर सुपारी हत्या का मामला था।
इसके अलावा लखनऊ के हसनगंज में हुई संतोष सिंह की हत्या में भी धनंजय सिंह का नाम सामने आया था। लेकिन असली खेल तब शुरू हुआ जब लखनऊ में बन रहे अंबेडकर उद्यान के प्रोजेक्ट मैनेजर गोपाल शरण श्रीवास्तव की धनंजय सिंह गिरोह ने गोली मारकर हत्या कर दी।
तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या से बहुत नाराज थीं
अंबेडकर उद्यान तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट था, जो उस समय ‘चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगा दे हाथी पर’ के नारे के साथ सत्ता की गद्दी तक पहुंची थीं। अब भला सीएम साहब को यह कैसे बर्दाश्त होता कि लखनऊ में उनकी नाक के नीचे कोई धनंजय सिंह जैसा आदमी उनके ही ड्रीम प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट मैनेजर की गोली मारकर हत्या कर दे।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने धनंजय सिंह के अपराधकी फाईल तलब की तो पता चला कि अकेले लखनऊ के हसनगंज, अलीगंज, गाजीपुर, हुसैनगंज और हजरतगंजकोतवाली में हत्या समेत दर्जनों अपराध धनंजय सिंह के नाम पर दर्ज है। फाइल देखते ही मायावती आग-बबूला हो गईं। सबसे पहले गाज गिरी तत्कालीन एसएसपी लखनऊ रजनीकांत मिश्रा पर। मायावती ने तुरंत उनका तबादला कर दिया।
इसके अलावा उस समय एसपी ट्रांसगोमती बीएन सिंह, सीओ गाजीपुर केबी सिंह औऱ इंस्पेक्टर गाजीपुर अभिमन्यु सिंह को सस्पेंड कर दिया और यूपी शासन ने फरार धनंजय सिंह पर 50 हजार रुपये का ईनाम रख दिया।
1997-98 में 50 हजार रुपये का इनामी होना उस जमाने में अपराधी को धंधे में सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचा देता था और हुआ भी ठीक वैसा ही। इधर धनंजय सिंह का पुलिस ने ईनाम के रूप में रेट बढ़ाया उधर धनंजय सिंह की वसूली का भाव भी आसमान छूने लगा। लखनऊ से लेकर पूर्वांचल तक हर दूसरे-तीसरे अपराध में धनंजय सिंह गिरोह का नाम आने लगा। पुलिस महकमा धनंजय सिंह गिरोह की मनबढ़ई से परेशान हो उठा। जिले की अपराध समीक्षा में पूर्वांचल के हर जिले के पुलिस कप्तान को डीजीपी से खूब खरी-खोटी सुनने को मिलती थी।
धनंजय सिंह के कथित भदोही फर्जी एनकाउंटर की यह है पूरी कहानी
फरार धनंजय सिंह को पुलिस सरगर्मी से तलाश रही थी तभी एक ऐसा वाकया हुआ कि अपराधी के अपराध को बेनकाब करने वाली पुलिस के चेहरे से बर्बरता को वो पर्दा उठा जिसे देखकर यूपी का शासन और जनता दोनों दंग रह गये।
17 अक्टूबर 1998 को वाराणसी और मिर्जापुर से नये-नये काटकर बने जिले भदोही में पुलिस का एक एनकाउंटर होता है। भदोही के पुलिस अधीक्षक चंद्र प्रकाश एनकाउंटर के बाद एक प्रेस कांफ्रेंस की और मीडियाकर्मियों से बताया कि भदोही पुलिस के साथ मुठभेड़ में 50 हजार रुपये का दुर्दांत अपराधी धनंजय सिंह अपने गिरोह के अन्य तीन सदस्यों के साथ मारा गया है।
एसपी भदोही ने घटना के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि धनंजय गिरोह एक पेट्रोल पंप लूटने के लिए आया था ठीक उसी वक्त पुलिस को सूचना मिली। मारे गये लोगों में शमीम, अजय सिंह और एक अन्य बदमाश के साथ सरगना धनंजय सिंह भी शामिल है। पुलिस ने सरेंडर करने को कहा तो धनंजय सिंह ने पुलिस पर फायरिंग कर दी और जवाबी गोलाबारी में पुलिस ने धनंजय सिंह समेत कुल चार अपराधियों को ढेर कर दिया।
इस एनकाउंटर को अंजाम दिया था तत्कालीन सीओ भदोही अखिलानंद मिश्र ने। अपराधियों से मुठभेड़ में सबसे आगे थे भदोही के इंस्पेक्टर बहादुर राम। उन्होंने तीन अपराधियों को वहीं ढेर कर दिया जबकि चौथे को थानाध्यक्ष औराई ने मार गिराया।
पुलिस अधीक्षक की प्रेस कांफ्रेंस के अलगे दिन लखनऊ, बनारस, जौनपुर, गाजीपुर, भदोही सहित पूर्वांचल के तमाम जिलों के न्यूज पेपर के पहले पन्ने इस एनकाउंटर के किस्सों से रंग गये। पुलिस टीम जिसने इस एनकाउंटर को अंजाम दिया था, उसकी ‘वीरगाथा’ से अखबारों के कई पन्ने भरे पड़े थे। पूरे सूबे में इस एनकाउंटर की चर्चा होने लगी कि धनंजय सिंह का आतंक खत्म हुआ। पूर्वांचल की जनता ने राहत की सांस ली। लेकिन तभी खेल में दिलचस्प झोल आ गया।
पुलिस ने जिसे कथित धनंजय सिंह बताकर मारा था, वह असल में बनारस का किरण हरिजन था
एनकाउंटर के अलगे दिन भदोही थाने पर एक बूढ़े मां-बाप पहुंचे और उन्होंने थाने के मुंशी को बताया कि सर, आप लोग जिसे धनंजय सिंह बता रहे हैं और जिसकी फोटो अखबार में छपी है वह धनंजय सिंह नहीं बल्कि उनका बेटा किरण हरिजन है। थाने के मुंशी ने उन दोनों को डांटकर भगाया लेकिन वो अपनी बात पर अड़े रहे और बताया कि मारा गया शख्स बनारस के भोजूबीर का किरण हरिजन है और वह उनका बेटा है।
बूढ़े मां-बाप ने पुलिस से मांग की कि पोस्टमार्टम के बाद किरण हरिजन की लाश उन्हें दी जाए ताकि वो उसका अंतिम संस्कार कर सकें। पुलिस के भगाने के बाद भी वो मोर्चरी पर डटे रहे और इस तरह पुलिस का भेद प्रेस वालों के सामने खुल गया। अगले दिन सभी अखबारों ने छापा कि भदोही एनकाउंटर फर्जी है।
इसके बाद तो भदोही से लखनऊ तक हड़कंप मच गया। डीजीपी दफ्तर से तुरंत आईजी बनारस ओपीएस मलिक और डीआईजी मिर्जापुर को आदेश दिया गया कि वो मौके पर जाएं और मामले की जांच करके पुलिस मुख्यालय लखनऊ को सूचित करें। आदेश के बाद आईजी और डीआईजी ने मौके पर पहुंच कर तफ्तीश की और लखनऊ को इस एनकाउंटर के फर्जी होने की सूचना दी।
वहीं दूसरी तरफ धनंजय सिंह के परिवार ने भी मारे गये कथित धनंजय सिंह का शव लेने से मना कर दिया। फेक एनकाउंटर की खबर से सकते में आया पुलिस मुख्यालय अभी मंथन कर रहा था कि तभी कुछ दिनों के बाद असली धनंजय सिंह ने जौनपुर की जिला अदालत में एक पुराने मामले में सरेंडर कर दिया। अब तो यूपी पुलिस को चेहरा छुपाये भी नहीं बन रहा था और न ही वो चेहरा दिखाने के काबिल रह गई थी।
सीबीसीआईडी जांच में भदोही एनकाउंटर पूरी तरह से फर्जी पाया गया
मायावती सरकार इस फर्जी एनकाउंटरसे भारी दबाव में आ गई और जांच को तुरंत सीबीसीआईडी के हवाले कर दिया गया। सीबीसीआईडी ने जांच रिपोर्ट में इस एनकाउंटर को पूरी तरह से फर्जी और सुनियोजित हत्या करार दिया। इस फर्जी एनकाउंटर में सीओ भदोही अखिलानंद मिश्रा, इंस्पेक्टर भदोही बहादुर राम, थानाध्यक्ष औराई समेत कुल 22 पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज हुआ। भदोही फर्जी मुठभेड़ के मामले में अभी भी कोर्ट में केस चल रहा है।
कोर्ट में सरेंडर करने के बाद धनंजय सिंह जेल चला गया लेकिन बाहर उसके गुर्गे इशारा पाते ही वारदात को अंजाम देते और वसूली का काम बिना किसी रोकटोक के करते रहे। इसके बाद धनंजय सिंह का नाम जुड़ा लखनऊ के हजरगंज के इलाके में हुई स्वास्थ्य महानिदेशक डॉक्टर बच्ची लाल के हत्या में लेकिन सबूतों के अभाव में धनंजय सिंह के खिलाफ इस मामले में कोई कारवाई नहीं हुई।
दबंग विनोद नाटे की फोटो सीने से लगाये धनंजय सिंह ने राजनीति में प्रवेश किया
धनंजय सिंह का राजनीति में आना एक संयोग मात्र था लेकिन यह संयोग भी तब बना जब उसके गुरु की मौत हुई। जी हां, जौनपुर का दबंग विनोद सिंह ऊर्फ विनोद नाटे जौनपुर के रारी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा था। ये वही विनोद नाटे था, जिसे मुन्ना बजरंगी भी अपना गुरु मानता था। दुर्घटनावश एक रोड एक्सिडेंट में विनोद नाटे की मौत हो गई तब धनंजय सिंह को लगा कि मौका अच्छा है। गुरु का बनाया राजनीति कै पिच तैयार है, क्यों न नेतागिरी की एक पारी खेल ली जाए।
कहते हैं कि धनंजय सिंह ने विनोद नाटे की एक फोटो ली और उसे अपने सीने से लगाकर मरे हुए गुरु के नाम वोट मांगने लगे। जौनपुर की जनता भी भोली, पसीज गया दिल और धनंजय सिंह पहुंच गया सीधे लखनऊ विधानसभा की दहलीज पर।
इस तरह धनंजय सिंह, जो कभी 50 हजार के भगोड़े था, एक झटके में माननीय बन गया। गजब की किस्मत है भाई, धनंजय सिंह का नसीब देख पूर्वांचल का हर कट्टे-तमंचे वाला हड्डी-गड्डीधारी बदमाश माननीय बनने का ख्वाब पालने लगा। इस बीच साल 2002 में माननीय धनंजय सिंह एक दिन अपने लाव-लश्कर के साथ बनारस पहुंचा।
लंका पर केशव पान भंडार पर थोड़ी देर के लिए अपने दोस्तों और परिचितों से मिलने के लिए रूका। वैसे धनंजय सिंह पान नहीं खाता है। लंका से उसका काफिला कचहरी की तरफ निकला तभी नदेसर पर टकसाल सिनेमा के पास खुला AK-47 का मुंह।
धनंजय सिंह के काफिले पर जबरदस्त हमला हुआ। इस हमले में धनंजय सिंह, उनके सरकारी गनर और तीन अन्य लोगों को गोली लगी। इस हमले में किसी की मौत नहीं हुई। हमले का आरोप धनंजय सिंह ने कभी अपने जानी दोस्त रहे अभय सिंह पर लगाया। अभय सिंह और धनंजय सिंह के बीच सरकारी ठेकों को लेकर काफी विवाद चल रहा था।
कभी कट्टर दोस्त रहे धनंजय और अभय आज एक-दूसरे के जानी दुश्मन हैं
धनंजय सिंह और अभय सिंह के बीच दुश्मनी आज भी जारी है, बस उस हमले के बाद दोनों का फिर उस मूड में आमना-सामना नहीं हुआ, नहीं तो दोनों में से किसी एक का तो टिकट कटना एकदम तय है।
साल 2002 के बाद 2007 का विधानसभा चुनाव आ गया और इस बार धनंजय सिंह को नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने उसी रारी विधानसभा से टिकट दिया औऱ धनंजय सिंह को जनता ने भी दूसरी बार दे दिया माननीय का सर्टिफिकेट यानी वो चुनाव जीतकर फिर पहुंच गया विधानसभा।
लेकिन धनंजय सिंह जानता था कि नीतीश कुमार की पार्टी का यूपी में कोई भविष्य नहीं है। इसलिए उसने कभी मायावती के नजदीक रहे बाबू सिंह कुशवाहा को पकड़ा। बाबू सिंह कुशवाहा ने पैरवी की और मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के तरह 2009 के लोकसभा चुनाव में धनंजय सिंह को जौनपुर लोकसभा सीट से बसपा का टिकट दे दिया।
धनंजय सिंह साल 2009 में माननीय विधायक से माननीय सांसद हो गया और लखनऊ विधानसभा की जगह दिल्ली के संसद भवन पहुंच गया। राजनीति की माया भी बड़ी गजब की है, ये वही मायावती थीं, जिन्होंने साल 1998 में धनंजय सिंह के अपराध के कारण कई पुलिस अधिकारियों को सजा दी। धनंजय सिंह को 50 हजार का इनामी बदमाश बनाया। वक्त ने कैसी करवट ली, वही धनंजय सिंह जो मायावती के खौफ से भगोड़े बन गया था अब उन्हीं की कृपा से माननीय सासंद हो गया।
दरअसल ये सारा खेल नारों का है। ध्यान से समझिये पहले बहुजन समाज पार्टी का नारा था ‘तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ या फिर ‘चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगा दे हाथी पर’। वही नारा साल 2007 के आते-आते ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु महेश है’ या फिर ‘पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा’ में बदल गया। यही कारण था कि बसपा का ‘बहुजन हिताय ‘धीरे-धीरे ‘सर्वजन हिताय’ में बदल गया और धनंजय सिंह जैसा भी माननीय बन गया।
धनंजय सिंह साल 2009 में सांसद हो गया लेकिन अपनी रारी विधानसभा की सीट उसने अपने पिता को सौंप दी, यानी रारी से उसके पिता विधायक बनकर लखनऊ पहुंच गये। इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जौनपुर में धनंजय सिंह का क्या रसूख रहा होगा। लेकिन कहा जाता है न कि ‘हर एक सुबह की शाम हुई’।
जल्द ही धनंजय सिंह के सितारे गर्दिश में आ गये
धनंजय सिंह की कुडंली में लिखा राजयोग अब ढलान की ओर बढ़ रहा था। यानी साल 2009 के बाद धनंजय सिंह की राजनीति में शाम होनी शुरू हो गई। जल्द ही साल 2011 में धनंजय सिंह बसपा सुप्रीमो मायावती से टकरा बैठा और मायावती ने बिना देरी किये चाय की मक्खी की तरह धनंजय सिंह को बसपा ने बाहर निकाल फेंका।
वो दिन था और आज दिन है, माननीय का तमगा धनंजय सिंह के लिए भूतकाल की बात हो गया यानी उसके बाद से धनंजय सिंह ने लाख जतन किये लेकिन न तो दिल्ली की संसद पहुंच सका और न ही लखनऊ की विधानसभा।
धनंजय सिंह ने साल 2014 का लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन मोदी लहर में उसे हार का मुंह देखना पड़ा। उसके बाद साल 2017 में (पहले रारी सीट हुआ करती थी) मल्हानी सीट से विधानसभा का भी चुनाव लड़ा लेकिन विधानसभा नहीं पहुंच सका। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वो बीजेपी से टिकट के जुगाड़ में था लेकिन उनकी गोटी सेट नहीं हुई और उसने चुनाव नहीं लड़ा।
धनंजय सिंह की जिंदगी में अपराध और सफेदपोश नेतागिरी के अलावा एक और पहलू है और वह उनकी निजी जिंदगी से जुड़ा हुआ है। धनंजय सिंह का वैवाहिक जीवन। धनंजय सिंह ने कुल तीन शादियां कीं। पहली पत्नी मीनाक्षी सिंह शादी के कुछ दिनों के बाद साल 2007 में लखनऊ के गोमती नगर स्थित आवास पर रहस्यमयी तरीके से मृत पायी गई। उसके बाद धनंजय सिंह ने दूसरी शादी दांतों की डॉक्टर जागृति सिंह से की। मूलतः गोरखपुर की रहने वाली डॉक्टर जागृति सिंह दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में डेंटिस्ट थीं।
धनंजय सिंह की दूसरी पत्नी जागृति सिंह ने सासंद आवास में नौकरानी की हत्या कर दी
सांसद के तौर पर धनंजय सिंह को साउथ एवेन्यू की कोठी नंबर 175 अलॉट हुई थी। इसी में धनंजय सिंह पत्नी जागृति सिंह के साथ रहा करता था। दिल्ली पुलिस के मुताबिक 2 नवंबर 2013 को तत्कालीन जौनपुर के सांसद धनंजय सिंह के आवास पर उनकी घरेलू नौकरानी की रहस्यमय स्थिति में मौत हो गई थी।
दिल्ली पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला की नौकरानी को मृत्यु से पहले टार्चर किया गया था। पुलिस ने 302 का मामला दर्ज करके तहकीकात शुरू की। शक की सुई सीधे धनंजय सिंह की पत्नी जागृति सिंह पर गई। पूछताछ में जागृति सिंह ने अपना अपराध कबूल लिया।
दिल्ली पुलिस ने जागृति सिंह को नौकरानी की हत्या के मामले में गिरफ्तार कर लिया। इस घटना से ठीक एक साल पहले यानी साल 2012 में धनंजय सिंह ने जागृति सिंह को जौनपुर की मल्हानी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़वाया था लेकिन जागृति सिंह को उस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। नौकरानी की हत्या के मामले में फंसने के बाद धनंजय सिंह और जागृति सिंह के बीच तलाक हो गया।
धनंजय सिंह ने तीसरी शादी निप्पो बैटरीज कंपनी के मालिक की बेटी श्रीकला रेड्डी से हुई
इसके बाद धनंजय सिंह ने साल 2017 में हैदराबाद के मशहूर उद्योगपति की बेटी श्रीकला रेड्डी से पेरिस में शादी की। श्रीकला के पिता निप्पो बैटरीज कंपनी के मुखिया थे। धनंजय सिंह के ससुर यानी श्रीकला रेड्डी के पिता जितेंद्र रेड्डी तेलंगाना के हूजूरनगर से निर्दलीय विधायक रहे। श्रीकला के पिता का निधन हो चुका है। अगस्त 2019 में हैदराबाद में बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में श्रीकला रेड्डी ने भाजपा की सदस्यता ली। वर्तमान में श्रीकला रेड्डी जौनपुर की जिला पंचायत अध्यक्ष हैं।
धनंजय सिंह की महत्वाकांक्षा ने उसे अपराध की दुनिया में धकेल दिया। जौनपुर की राजनीति में खासा दखल रखने वाले धनंजय सिंह की छवि आज भी बाहुबली की मानी जाती है। इसका ताजा उदाहरण देखने को मिला 6 जनवरी 2021 की शाम को। जब मऊ के ब्लॉक प्रमुख के प्रतिनीधि अजीत सिंह की हत्या लखनऊ के विभूति खंड स्थित कठौता चौराहे पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर कर दी गई।
इस हत्याकांड के तार सीधा धनंजय सिंह से जुड़ा। मुकदमे में पूर्व सांसद धनंजय सिंह, उनके करीबी विपुल सिंह और शूटर रवि यादव को नामजद किया गया। इस मामले में पुलिस धनंजय सिंह की तलाश करती रही और धनंजय सिंह फरार है। कहा यह जाता है कि धनंजय सिंह जौनपुर के ही आसपास रहता है और कभी-कभी बाजार में दिखाई भी देता है। लेकिन पुलिस को भूतपूर्व माननीय के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
इतना ही नहीं पुलिस की नजर में भगोड़े धनंजय सिंह एक दिन जौनपुर के स्टेडियम में क्रिकेट मैच का उद्घाटन करने पहुंचे और वो भी पुलिस थाने से मात्र कुछ सौ मीटर की दूरी पर। पूरे शहर को पता था कि धनंजय सिंह मैच का उद्घाटन करने के लिए आ रहा है लेकिन नहीं पता था तो सिर्फ जौनपुर पुलिस को। इस मामले में पुलिस की बहुत किरकिरी हुई। जौनपुर पुलिस ने धनंजय सिंह पर 25 हजार रुपये का इनाम रखा है। आज की तारीख में धनंजय सिंह भले ही फरार है लेकिन उसका प्रभाव जौनपुर पर जस का तस बना हुआ है।
UP Election 2022: पूर्वांचल की राजनीति में बाहुबलियों की धमक और सत्ता का विमर्श