सुप्रीम कोर्ट ने भारत की कानून व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, देश में गरीब और अमीर के लिए दो कानूनी सिस्टम नहीं हो सकते हैं। कोर्ट ने कहा, एक अमीर लोगों के लिए जिन्हें खूब सारे संसाधन उपलब्ध हैं और वो राजनीतिक तौर पर भी ताकतवर हैं। दूसरा गरीब और छोटे लोग जो संसाधनों से वंचित हैं। देश में इसतरह का कानून नहीं हो सकता है।

न्यायालय ने ये भी कहा कि ‘जिला न्यायपालिका से औपनिवेशिक सोच’ को भी हटाना होगा, जिससे कि नागरिकों के विश्वास को बचाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि जब न्यायाधीश ‘सही के लिए खड़े होते हैं, तो उन्हें निशाना बनाया जाता है।’

बता दें कि न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कांग्रेस नेता देवेंद्र चौरसिया की हत्या मामले में मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के विधायक के पति को दी गई जमानत को खारिज करते हुए बृहस्पतिवार को ये अहम टिप्पणियां कीं।

न्यायालय ने कहा कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतंत्र का आधार है और इस पर किसी प्रकार का राजनीतिक दबाव नहीं होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘दोहरी व्यवस्था की मौजूदगी कानून की वैधता को ही खत्म कर देगी। कानून के शासन के लिए प्रतिबद्ध होने का कर्तव्य सरकारी तंत्र का भी है।’

पीठ के अनुसार जिला न्यायपालिका नागरिकों के साथ संपर्क का पहला बिंदु है। पीठ ने कहा, ‘अगर न्यायपालिका में नागरिकों का विश्वास कायम रखना है तो जिला न्यायपालिका पर ध्यान देना होगा।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि निचली अदालतों के न्यायाधीश भयावह परिस्थितियों, बुनियादी ढांचे की कमी, अपर्याप्त सुरक्षा के बीच काम करते हैं और न्यायाधीशों को सही के लिए खड़े होने पर निशाना बनाए जाने के कई उदाहरण हैं। पीठ ने कहा कि दुख की बात है कि स्थानांतरण और पदस्थापना के लिए उच्च न्यायालयों के प्रशासन की अधीनता भी उन्हें कमजोर बनाती है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि एक स्वतंत्र संस्था के रूप में न्यायपालिका का कार्य शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा में निहित है। पीठ ने कहा कि न्यायाधीश किसी भी अन्य कारकों की बाधा के बिना कानून के अनुसार विवादों को सुलझाने में सक्षम होने चाहिए और इसके लिए न्यायपालिका और प्रत्येक न्यायाधीश की स्वतंत्रता जरूरी है।

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