उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को ऐतिहासिक फैसले में एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ही मुकदमों के आवंटन (रोस्टर) के लिए अधिकृत हैं। न्यायमूर्ति ए के सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की खंडपीठ ने पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की याचिका खारिज करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत के प्रशासनिक कामकाज के लिए सीजेआई अधिकृत हैं और विभिन्न खंडपीठों को मुकदमे आवंटित करना उनके इस अधिकार में शामिल है।
पिछले आठ महीने में न्यायालय ने तीसरी बार यह स्पष्ट किया है कि सीजेआई ही ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ हैं। खंडपीठ के दोनों न्यायाधीशों ने अलग-अलग परंतु सहमति का फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति सिकरी ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ के तौर पर सीजेआई की भूमिका के बारे में संविधान में वर्णन नहीं किया गया है, लेकिन इसमें कोई संदेह या दुविधा नहीं है कि सीजेआई मुकदमों के आवंटन के लिए अधिकृत हैं। उन्होंने कहा कि सीजेआई के पास न्यायालय के प्रशासन का अधिकार और जिम्मेदारी है। न्यायालय में अनुशासन और व्यवस्था बनाये रखने के लिए यह आवश्यक भी है। न्यायमूर्ति सिकरी ने कहा कि यद्यपि सीजेआई शीर्ष अदालत के अन्य जजों के समान ही हैं, लेकिन उन्हें मुकदमों के आवंटन का अधिकार है और इसके लिए उन्हें कॉलेजियम के साथियों या अन्य न्यायाधीशों से सम्पर्क करने की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने भले ही अपना फैसला अलग से सुनाया, लेकिन यह सहमति का फैसला था। खंडपीठ ने ‘कैम्पेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबलिटी एंड रिफॉर्म्स’ तथा अशोक पांडे से संबंधित मामले के फैसले को उचित ठहराते हुए कहा कि जब मुकदमों के आवंटन की बात हो तो ‘भारत के मुख्य न्यायाधीश‘ को पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम के तौर पर व्याख्यायित नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने गत् 27 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था। पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की ओर से उनके पुत्र प्रशांत भूषण और वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने जिरह की थी। याचिकाकर्ता ने मुकदमों के आवंटन में सीजेआई की मनमानी का आरोप लगाते हुए इसमें कॉलेजियम के चार अन्य सदस्यों की सहमति को जरूरी बनाने का अनुरोध किया था। याचिकाकर्ता ने सीजेआई के मुकदमों के आवंटन के अधिकार पर भी सवाल खड़े किये थे।