उत्तरप्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और बाबरी विध्वंश विवाद में आज सुप्रीम कोर्ट ने अहम् टिपण्णी की है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जे एस खेहर ने इस मामले की सुनवाई करते हुए आज कहा कि इस विवाद को कोर्ट के बाहर सुलझाने का प्रयास करें। उन्होंने इस मामले में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सभी पक्षों से विचार विमर्श कर 31 मार्च तक फैसले के बारे में कोर्ट को सूचित करें। कोर्ट और चीफ जस्टिस के इस बयान का यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी सहित केंद्र सरकार ने भी स्वागत किया है।

अयोध्या में दशकों पुराने विवाद में कोर्ट ने आज कहा कि यह संवेदनशील और भावनात्मक मामला है। कोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों को इस मुद्दे को सुलझाने के नए प्रयास करने के लिए मध्यस्थ चुनने चाहिए। कोर्ट ने कहा अगर जरूरत पड़ी तो मामले को निपटाने के लिए कोर्ट द्वारा प्रधान मध्यस्थ भी चुना जा सकता है।

cjiकोर्ट में आज हुई सुनवाई से पहले भाजपा नेता स्वामी ने अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की अनुमति देने का निर्देश देने के लिए तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अगुवायी वाली पीठ के समक्ष एक याचिका दायर की थी। उन्होंने याचिका पर तत्काल सुनवायी करने का अनुरोध किया था।

याचिका में स्वामी ने दावा किया था कि इस्लामी देशों में प्रचलित प्रथाओं के तहत किसी मस्जिद को सार्वजनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किसी अन्य जगह स्थानांतरित किया जा सकता है। जबकि किसी मंदिर का निर्माण होने के बाद उसे हाथ नहीं लगाया जा सकता है। कोर्ट में स्वामी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं की सुनवाई में तेजी लाने के निर्देश देने की मांग भी की थी। इसमें 30 सितंबर 2010 को अयोध्या में विवादित स्थल को तीन तरीके से विभाजित करने का फैसला दिया था।

कोर्ट के इस टिपण्णी के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य, ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक और बाबरी मस्जिद के लिए केस लड़ रहे वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि हम माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस सुझाव का स्वागत करते हैं, लेकिन हमें कोई आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट मंजूर नहीं है।

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