सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 (Covid-19) से जान गंवाने वाले पारसी समुदाय (Parsi Community) के लोगों के शवों की पारंपरिक अंत्येष्टि के लिए प्रोटोकॉल और मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) पर केंद्र एवं पारसी समुदाय के बीच बनी सहमति को शुक्रवार को मंजूरी दे दी। Honourble कोर्ट ने इस मामले में फिलहाल परंपरागत तरीके से अंतिम संस्कार की रस्म पूरी करने की इजाजत दी है।
न्यायमूर्ति डीवाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने सहमति का जिक्र किया। पीठ ने गुजरात हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक अपील का निस्तारण कर दिया। जिसमें केंद्र और सूरत पारसी पंचायत बोर्ड पहुंचा था।

Supreme Court: ये बदलाव केवल पारसी समुदाय के लिए
शवों के अंतिम संस्कार के लिए कोरोना प्रोटोकॉल में यह बदलाव सिर्फ पारसी समुदाय के लिए ही है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को शुक्रवार यह जानकारी दी गई कि शवों के अंतिम संस्कार को लेकर केंद्र सरकार और पारसी समुदाय के बीच सहमति बन गई है। इसके मुताबिक पारसी केंद्रीय निकाय पूरे भारत में टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर लोहे की ग्रिल लगाएगा। जिसकी वजह से शवों तक पक्षियों की पहुंच न हो सके और शव का निस्तारण सूर्य की किरणों से ही हो।
इस मामले पर वरिष्ठ वकील फली एस नरीमन और सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता दोनों ने कोर्ट को बताया कि पारसी समुदाय के लोगों की कोरोना से होने वाली मौत के अंतिम संस्कार के लिए कोरोना प्रोटोकॉल के अनुरूप अंतिम संस्कार परंपरा के संबंध में आम सहमति बन गई है। इसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति दी है।
केंद्र ने बताया था बीमारी फैलने का खतरा
केंद्र सरकार ने बताया था कि कोविड से मरने वाले व्यक्ति के शव के लोगों के संपर्क में आने से बीमारी फैलने का खतरा हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ अंतराष्ट्रीय स्तर के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे शव को अगर पशु-पक्षी खाते हैं, तो बीमारी के नए-नए स्वरूप विकसित हो सकते हैं। जोकि पूरे मानव समुदाय के लिए नए खतरे की वजह बन सकता है। ऐसे में शवों के निष्पादन की प्रक्रिया में ढील नहीं दी जा सकती।
पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार की ‘दोखमे नशीन’ परंपरा है जिसमें शव को गिद्धों और अन्य पक्षियों के लिए खुले में छोड़ दिया जाता है । इससे पहले कोर्ट ने बीते सोमवार को पारसी समुदाय की शिकायतों का सौहार्दपूर्ण समाधान करने के लिए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से मदद मांगी थी ।
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