Supreme Court द्वारा फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के पुनर्विस्थापन करने के मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस एल नागेश्वर राव ने एक बार फिर कहा कि इस मामले को गंभीरता से लें। कोर्ट ने कहा कि भले ही कोरोना से हम लोग पिछले 2 साल से लड़ रहे हों इसका मतलब यह नहीं है कि कोर्ट के आदेशों का अनुपालन न हो।
Supreme Court ने की सुनवाई
इस मामले पर ASG केएम नटराज ने कोर्ट को बताया कि राज्यों द्वारा पुनर्विस्थापन के लिए बच्चों का विवरण बाल स्वराज पोर्टल पर नहीं डाला जा रहा है। उन्होंने कहा कि NCPCR और बाल स्वराज पोर्टल पर बच्चों के विवरण को डालने के मामले में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से कोई विवरण नहीं डाला गया जबकि पश्चिम बंगाल ने इस पर बढ़िया काम किया है।
जस्टिस राव ने कहा कि इसके लिए राज्यों को किशोर न्याय पुलिस इकाइयां स्थापित करने की आवश्यकता है। यह काम ट्रैफिक पुलिस अधिकारियों को सौंपा जा सकता है क्योंकि उनके द्वारा अक्सर भीख मांगने आदि पर ध्यान दिया जाता है। इसके अलावा कोर्ट ने राज्यों से कहा कि आप इसके लिए सामाजिक संगठन की भी मदद ले सकते हैं। इसके लिए तेजी से काम करना होगा क्योंकि बच्चों की तत्काल जरूरतें इंतजार नहीं कर सकती हैं।
कोर्ट ने कहा कि हम तीसरी लहर के बीच हैं और प्रशासन इसमें व्यस्त होगा। हम वास्तविकता को समझते हैं लेकिन इन सब में बच्चों को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के मामले पर नीतिगत निर्णय लेने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है। फिर भी राज्य वेब पोर्टल पर जानकारी साझा करने से पहले NCPCR की होने वाली बैठक में भी इस पर विचार करें।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के DM को निर्देश दिया कि जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण DLSA और स्वयंसेवी संगठनों की सहायता लेकर कि बिना किसी देरी के फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों की पहचान करें। साथ ही बाल स्वराज पोर्टल पर सभी चरणों में जानकारी भी डालने का निर्देश दिया।
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि NCPCR राज्य सरकारों के साथ विचार -विमर्श कर बच्चों के लिए एक पुनर्वास नीति तैयार करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश तीन हफ्ते में स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल करेंगे। इसके बाद मामले की सुनवाई होगी।
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