दिल्ली में केजरीवाल की सरकार जब से बनी हैं। उनके और उपराज्यपाल के बीच किसी न किसी बात पर अनबन होती रही है। अब चाहे वो नजीब जंग हों या फिर अनिल बैजल। दरअसल, मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का मानना ये है कि दिल्ली के सीएम होते हुए उनको अधिकार काफी कम मिले हैं। साथ ही किसी न किसी फाइल या कानून पर उपराज्यपाल उनका साथ नहीं देते। ऐसे में इन दोनों का मतभेद सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा जहां सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल को ही दिल्ली का बॉस बताया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए केजरीवाल सरकार को गहरा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि केजरीवाल सरकार को संविधान के दायरे में रहना होगा। पहली नजर में एलजी के अधिकार राज्य सरकार से ज्यादा हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने ये भी टिप्पणी की है कि जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के फैसलों को एलजी की ओर से टेक्निकल ग्राउंड पर रोकना सही नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल को अनावश्यक रूप से फाइलें रोककर दिल्ली सरकार के कामकाज में बाधा नहीं डालनी चाहिए। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोई फाइल रोकी जाती है तो निश्चित समय में इसकी वजह बतानी चाहिए।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि जब तक कोर्ट के सामने विशेष तौर पर ये नहीं बताया जाएगा कि उपराज्यपाल कहां अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर काम कर रहे हैं तब तक कोर्ट के लिए मुद्दों का परीक्षण करना संभव नहीं। इससे पहले दिल्ली सरकार की ओर से गोपाल सुब्रमण्यम ने बताया कि ‘हम संसदीय सर्वोच्चता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, लेकिन कोई भी निर्वाचित सरकार बिना अधिकार के नहीं हो सकती है।’ उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 239एए का भी उल्लेख किया। गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि उपराज्यपाल इस अनुच्छेद की शक्तियों को रोजाना के कामकाज को प्रभावित करने के लिए नहीं इस्तेमाल कर सकते हैं।