‘हल्ला बोल’ करने पहुंचे थे Safdar Hashmi, अचानक…, कुछ इस तरह कर दी गयी थी हत्या

सफदर हाशमी भारतीय रंगमंच का एक ऐसा नाम हैं जिन्हें उनकी हत्या के तीन दशक बाद भी याद किया जाता है। नाटककार सफदर अपने नुक्कड़ नाटकों के जरिए आज भी नाटक प्रेमियों के बीच जिंदा हैं।

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'हल्ला बोल' करने पहुंचे थे Safdar Hashmi, अचानक…, कुछ इस तरह कर दी गयी थी हत्या
'हल्ला बोल' करने पहुंचे थे Safdar Hashmi, अचानक…, कुछ इस तरह कर दी गयी थी हत्या

Safdar Hashmi: ”नाटक कहां किया गया? इस बात से फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है तो इस बात से कि नाटक को लेकर नजरिया क्या है? बुर्जुआ नजरिये और आम आदमी के नजरिये में फर्क है।” सफदर हाशमी भारतीय रंगमंच का एक ऐसा नाम हैं जिन्हें उनकी हत्या के तीन दशक बाद भी याद किया जाता है। नाटककार सफदर अपने नुक्कड़ नाटकों के जरिए आज भी नाटक प्रेमियों के बीच जिंदा हैं।

सफदर हाशमी का जन्म 12 अप्रैल 1954 को दिल्ली में हुआ था। हनीफ और कमर आजाद हाशमी के बेटे सफदर ने जिंदगी का शुरूआती हिस्सा दिल्ली और अलीगढ़ में ही गुजारा। उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई दिल्ली से की। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद सफदर हाशमी ने सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में ग्रेजुएशन की और आगे जाकर डीयू से ही एमए तक की पढ़ाई भी की। कॉलेज दिनों में सफदर हाशमी एसएफआई के सदस्य बन गए, जो कि माकपा का छात्र संगठन है। यही वो समय भी था जब सफदर हाशमी इप्टा से जुड़ गए। इप्टा यानी इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन। हाशमी जन नाट्य मंच के सहसंस्थापक थे। ये ‘जनम’ नाम से भी जाना जाता है। इस समूह में अधिकतर वे ही लोग थे जो या तो इप्टा से जुड़े थे या माकपा से जुड़े थे।

Safdar Hashmi
Safdar Hashmi

सफदर हाशमी ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर कटाक्ष करते हुए ‘कुर्सी, कुर्सी, कुर्सी’ नाट्य प्रस्तुति की, जिसने जन नाट्य मंच को मशहूर कर दिया। बाद में आपातकाल के दौरान सफदर हाशमी शिक्षण के काम में जुट गए थे। आपातकाल हटा तो सफदर हाशमी भी फिर से सक्रिय हो गए।

हाशमी ने कई नाट्य प्रस्तुति दीं, जिसमें गांव से शहर तक, हत्यारे और अपहरण भाईचारे के, तीन करोड़, औरत और डीटीसी की धांधली शामिल हैं। सफदर हाशमी ने दूरदर्शन के लिए कई डॉक्यूमेंट्री और धारावाहिक भी बनाए। उन्होंने नाट्य आलोचना और बच्चों से जुड़ी किताबें भी लिखीं।

Safdar Hashmi
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कुछ समय के लिए सफदर हाशमी ने पीटीआई और द इकोनॉमिक टाइम्स के लिए नौकरी की। वे पश्चिम बंगाल सरकार के पीआईबी अफसर भी रहे। हालांकि 1984 आते-आते वह पूरी तरह से एक्टिविज्म के लिए समर्पित हो गए थे।

Safdar Hashmi की हत्या

1 जनवरी 1989 को जन नाट्य मंच को हल्ला बोल की प्रस्तुति करनी थी। यह नाटक गाजियाबाद में पेश किया जाना था जहां निकाय चुनाव हो रहे थे। नाटक के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कलाकारों पर हमला बोल दिया। इस दौरान सफदर हाशमी घायल हो गए और अगले दिन उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। बाद में गाजियाबाद की एक अदालत ने मामले में 10 लोगों को दोषी पाते हुए सजा सुनाई थी।

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