National Women Commission: राष्ट्रीय महिला आयोग (National Women Commission) एवं अन्य राज्यों के महिला आयोग के बीच इंटरेक्टिव बैठक का आयोजन हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में 7 और 8 जनवरी को किया गया। बैठक के पहले दिन घरेलू हिंसा मामले में छत्तीसगढ़ में किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी गई। कार्यक्रम के दौरान बताया गया कि राज्य में महिला आयोग ने 1500 से ज्यादा मामलों की सुनवाई की है। जिसमें 500 मामलों से अधिक का निराकरण किया गया। वहीं 100 मामलों की आयोग निगरानी कर रहा है।

National Women Commission: महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए 33 फीसदी Women Reservation की मांग
दूसरे दिन 8 जनवरी के सत्र में 6 राज्यों के आयोग अध्यक्षों ने पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास और सहायता विषय पर अपने-अपने राज्यों में किये जा रहे कार्यों की जानकारी दी। इसके साथ ही आने वाली समस्याओं पर भी चर्चा की। इस पूरे सत्र का संचालन डॉक्टर नायक ने किया।
इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा करते हुए छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉक्टर नायक ने कहा कि महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए विधानसभा और संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य किये जाने को लेकर केन्द्रीय स्तर पर प्रस्ताव बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि बैठक के दौरान सहमति बनी कि राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष, प्रधानमंत्री, लोकसभा तथा राज्यसभा के स्पीकर को एक पत्र भेजें। बताते चलें कि समस्त महिला आयोग की यह मांग है कि, पूरे भारत मे संसद और प्रत्येक राज्य के विधानसभा में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण का बिल विगत 8 वर्षों से लंबित है उसे तत्काल पास कर लागू कराए जाना चाहिए।

उत्तराखंड महिला कांग्रेस ने 2014 में की थी 33 फीसदी Women Reservation की मांग
उत्तराखंड महिला कांग्रेस ने संसद व विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग की है। महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष सरिता आर्या ने पीएम नरेंद्र मोदी को ज्ञापन भेजा था। इसमें महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की मांग की गई थी।
ज्ञापन में सरिता आर्या ने कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 73वें व 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को मूर्तरूप दिया था। इसके बाद कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने स्थानीय निकाय में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलवाया था।
बता दें कि 2014 के भाजपा के घोषणा पत्र में महिलाओं के लिए संसद व विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण की बात की गई थी, लेकिन इतने साल बीतने के बाद भी इस पर अमल नहीं किया गया।
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