प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की अध्यक्षता में 4 जनवरी 2022 को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल (Cabinet) की बैठक में राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission) को मंजूरी दे दी गई। अब नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) इस मिशन के कार्यान्वयन के लिए योजना दिशानिर्देश तैयार करेगा। इस मिशन के जरिये दुनिया के बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों देशों में से एक भारत को 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन (Net Zero) के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
बैठक के बाद जारी किए प्रेस नोट में बताया गया कि मिशन के लिए केंद्र सरकार 19,744 करोड़ रुपये खर्च करेगी, जिसमें से साइट कार्यक्रम के लिए 17,490 करोड़ रुपये, पायलट परियोजनाओं के लिए 1,466 करोड़ रुपये, अनुसंधान एवं विकास के लिए 400 करोड़ रुपये और मिशन से जुड़ी हुई अन्य चीजों पर 388 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगें।
कितना होगा फायदा?
भारत सरकार (India) द्वारा जारी किए गए नोट में बताया गया है कि मिशन से 2030 तक कई संभावित परिणाम प्राप्त होंगे, जिनमें मुख्य तौर पर देश में लगभग 125 गीगावाट (GW) अक्षय ऊर्जा की बढ़ोतरी के साथ प्रति वर्ष कम से कम 5 MMT (मिलियन मीट्रिक टन) की हरित हाइड्रोजन (Green Hydrogen) उत्पादन क्षमता के विकास के साथ ही आठ लाख करोड़ रुपये से अधिक का कुल निवेश होने के आसार हैं।
इस मिशन से छह लाख से अधिक रोजगार का सृजन, एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के कच्चे तेल के आयात में कमी के साथ ही वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 5 करोड़ मीट्रिक टन की कमी की उम्मीद जताई जा रही है।
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क्यों पड़ी जरूरत?
भारत सरकार का कहना है कि इस मिशन का उद्देश्य ग्रीन हाइड्रोजन और इसके सहायक उत्पादों के लिए निर्यात के अवसरों का सृजन के साथ औद्योगिक, आवागमन (Transport) और ऊर्जा के क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन में कमी के अलावा विदेशों से भारी में मात्रा में मंगाये जा रहे आयातित जीवाश्म ईंधन और फीडस्टॉक पर निर्भरता में कमी के साथ-साथ स्वदेशी विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के अलावा नये रोजगार के अवसरों को पैदा करना और अत्याधुनिक तकनीकों का विकास करना है।

इस मिशन से भारत की ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन (Green Hydrogen Production) क्षमता कम से कम 5 करोड़ मीट्रिक टन प्रति वर्ष तक पहुंचने की संभावना है, जिसमें से लगभग 125 गीगावाट (GW) अक्षय ऊर्जा क्षमता भी शामिल है। इसके साथ ही 2030 तक कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में प्रति वर्ष लगभग 5 करोड़ मीट्रिक टन की कमी होने की संभावना है।
कितना होगा निवेश?
मिशन को लेकर दी गई जानकारी के अनुसार इसमें 2030 तक 8 लाख करोड़ रुपये का निवेश होने का लक्ष्य है और 6 लाख से अधिक रोजगार सृजित होने की संभावना है।
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क्या नया होगा?
इस मिशन से ग्रीन हाइड्रोजन की मांग, उत्पादन, उपयोग और निर्यात को बढ़ावा दिया जायेगा। ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन प्रोग्राम (SIGHT) के लिए रणनीतिक क्रियाकलाप (Strategic Intervention) को लेकर, मिशन के तहत दो अलग-अलग वित्तीय प्रोत्साहन तंत्र- इलेक्ट्रोलाइजर के घरेलू निर्माण और ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को लक्षित किया जाएगा।
इसके साथ ही मिशन उभरते हुए अंतिम उपयोग वाले क्षेत्रों और उत्पादन मार्गों में पायलट परियोजनाओं का भी समर्थन करेगा। वहीं, देश के बड़े पैमाने पर उत्पादन या फिर हाइड्रोजन के इस्तेमाल को लेकर पॉजिटिव रुख रखने वाले सक्षम क्षेत्रों की पहचान करके उन्हें ग्रीन हाइड्रोजन हब के रूप में विकसित किया जाएगा।
Green Hydrogen इकोसिस्टम
मिशन के तहत भारत जैसे विशाल देश में ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम की स्थापना का समर्थन करने के लिए एक सक्षम नीतिगत कार्यक्रम विकसित किया जाएगा। इसके साथ ही एक मजबूत मानक और नियमन फेर्मवर्क (Standards and Regulations Framework) भी विकसित की जाएगी।
वहीं, मिशन के तहत अनुसंधान एवं विकास (रणनीतिक हाइड्रोजन इनोवेशन भागीदारी- एसएचआईपी) के लिए एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public private partnership – PPP) की सुविधा प्रदान की जाएगी; अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएं लक्ष्य के साथ, समयबद्ध और विश्व स्तर पर उपलब्ध मौजूदा प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए उपयुक्त रूप से बढ़ाई जाएंगी। मिशन के तहत एक समन्वित कौशल विकास कार्यक्रम भी चलाया जाएगा ताकि लोगों को इससे सीधे तौर पर जोड़ा जा सके।
भारत और कच्चा तेल
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, और 2021-22 (वित्त वर्ष 2021-22) तक कच्चे तेल की अपनी कुल मांग का 85 फीसदी आयात से पूरा करता है।
तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (PPAC) के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में भारत का आयात बिल लगभग दोगुना होकर 119.2 बिलियन डॉलर हो गया। जो 2020-21 में 62.2 बिलियन डॉलर से लगभग दोगुना है।
पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ के अनुसार, भारत ने 2021-22 में 212.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जो पिछले वर्ष के 196.5 मिलियन टन से ज्यादा है।
भारत ने 2022 वित्तीय वर्ष में 202.7 मिलियन टन पेट्रोलियम उत्पादों की खपत की, जो पिछले वर्ष में 194.3 मिलियन टन थी। इसी तरह, देश ने 2021-22 में आयातित 32 बिलियन क्यूबिक मीटर एलएनजी पर 11.9 बिलियन डॉलर खर्च किए, वहीं पिछले वर्ष 33 बीसीएम गैस के आयात पर 7.9 बिलियन डॉलर खर्च किए गए थे।