Mirza Ghalib B’day: तारीख थी 27 दिसंबर 1797, इस दिन उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा असदुल्लाह बेग खान जिन्हें हम सभी मिर्जा गालिब के नाम से भी जानते हैं, ने जन्म लिया। उन दिनों भारत में मुगलकालीन शासन था।उन्हें आज भी उर्दू भाषा का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है। इसके साथ ही फारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जुबान में लोकप्रिय करवाने का श्रेय भी इन्हीं को मिलता है।
गालिब के लिखे पत्र, जोकि उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, लेकिन उन्हें भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है। यही वजह है गालिब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है। उनकी छवि तत्कालीन मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के दरबार में बेहद खास थी।उन्हें दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला का ख़िताब मिला।
कभी आगरा, दिल्ली और कोलकाता में अपनी जिंदगी गुजारने वाले गालिब को अपनी कमाल की उर्दू गजलों के लिए आज भी जाने जाते हैं।उनका और दिल्ली शहर का रिश्ता बेहद खास है। ऐसा कि जिसे भुलाया ही नहीं जा सकता।
यहां गली, कूचों से लेकर यमुना तीर तक उनके तराने आज भी सभी जुबान पर छाए रहते हैं। आज उनकी जयंती के मौके पर आपको एक ऐसे नाटक के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें खुद मिर्जा गालिब आज की बदली दिल्ली में अपने घर जोकि कभी बल्लीमारान में हुआ करता था, उसे खोजते हुए कैसे लोगों के बीच फंस जाते हैं। उसके बारे में बताने जा रहे हैं।

Mirza Ghalib B’day : बल्लीमारान जाने का रोचक सफर है ‘गालिब इन दिल्ली’

मशहूर निर्देशक एम सैयद आलम के निर्देशन में ‘गालिब की दिल्ली’ प्ले के अंदर बड़े ही दिलचस्प अंदाज में दिल्ली के आज के बाशिंदों और मिर्जा गालिब के बीच संवाद को दिखाने का प्रयास किया गया है।लगभग 2 घंटे की अवधि में निर्देशक ने हर दृश्य में गालिब को जीवंत करने की कोशिश की है। गौरतलब है कि खुद एम सैयद आलम ही इसमें मुख्य किरदार यानी मिर्जा गालिब की भूमिका निभा रहे हैं।
Mirza Ghalib B’day : नाटक में पुरानी दिल्ली को खोजते दिखे Mirza Ghalib
पूरे नाटक में एम सैयद आलम ने बड़े की शानदार तरीके से मिर्जा गालिब का किरदार निभाया है। इसके साथ ही दिल्ली की राजनीति, भ्रष्टाचार और समकालीन समस्याओं पर भी प्रकाश डालने की कोशिश की है।फिर चाहे वो लाल किले पर खड़े बस चालक और कंडक्टर हों, तांगे और रिक्शा चालक या लक्ष्मी नगर की संकरी गलियों में रहने वाला छात्र।जिसका सपना आईएएस बनना है। कैसे इन सब लोगों के साथ मिर्जा गालिब का सामना होता है और कैसे वे उन्हें अपने बारे में बताने की कोशिश करते हैं। अपनी शायरी के उच्चारण और उर्दू जुबान को सुनकर कैसे कोफ़्त करते हैं मिर्जा गालिब। इसका मजा पूरा नाटक देखकर ही लगाया जा सकता है।
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