Indian Army: देश में कई बार भारतीय सेना को राजनीति में घसीटने की कोशिशें की गई हैं। कहा जाए तो कोई भी राजनीतिक दल इस मामले में पीछे नहीं है। अब हाल ही में सेना के राजनीतिकरण को लेकर बवाल मचता दिखाई दे रहा है। दरअसल, कांग्रेस ने देश की सरकार से सिविल सेवा के अधिकारियों और सैनिकों को राजनीति से दूर रखने अपील की है।
इसी संबंध में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि सिविल सेवकों और सैनिकों को हर समय स्वतंत्र और गैर-राजनीतिक रखा जाना चाहिए। बता दें, जयराम रमेश ने रविवार (22 अक्टूबर) को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के माध्यम से इस बारे में जानकारी दी।

Indian Army: खड़गे ने पीएम मोदी को लिखा पत्र
इससे पहले मल्लिकार्जुन खड़गे ने ‘एक्स’ पर कहा था कि मोदी सरकार के लिए सरकार की सभी एजेंसियां, संस्थान, हथियार, विंग और विभाग अब आधिकारिक तौर पर ‘प्रचारक’ बन गए हैं। ऐसे में हमारे लोकतंत्र और हमारे संविधान की रक्षा के मद्देनजर, यह जरूरी है कि उन आदेशों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए जो नौकरशाही और हमारे सशस्त्र बलों के राजनीतिकरण को बढ़ावा देंगे।
इसके साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र की कॉपी भी शेयर की है, जिसमें उन्होंने कहा है, प्रधानमंत्री, मैं आपको जनता से जुड़े मुद्दे को लेकर पत्र लिख रहा हूं। यह न सिर्फ इंडिया गठबंधन, बल्कि लोगों के लिए भी चिंता का विषय है। यह मुद्दा सत्तारूढ़ राजनीतिक दल की सेवा के लिए सरकारी तंत्र के दुरुपयोग से जुड़ा है।
पत्र में रक्षा मंत्रालय के आदेश का भी जिक्र
कांग्रेस अध्यक्ष ने लिखा, “मैं 9 अक्टूबर, 2023 को रक्षा मंत्रालय की ओर से पारित एक आदेश का हवाला देता हूं, जिसमें वार्षिक छुट्टी पर गए सैनिकों को सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार पर समय बिताने का निर्देश दिया गया है।” उन्होंने कहा कि आर्मी ट्रेनिंग कमांड को हमारे जवानों को देश की रक्षा के लिए तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि सरकारी योजनाओं को बढ़ावा देने के तरीके पर।
“हमारे सैनिकों को न बनाएं मार्केटिंग एजेंट”
खड़गे ने आगे कहा कि लोकतंत्र में यह बेहद जरूरी है कि सशस्त्र बलों को राजनीति से दूर रखा जाए। हर जवान की निष्ठा देश और संविधान के प्रति है। हमारे सैनिकों को सरकारी योजनाओं का मार्केटिंग एजेंट बनने के लिए मजबूर करना सशस्त्र बलों के राजनीतिकरण की दिशा में एक खतरनाक कदम है।
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