Goa Liberation Day:हर साल की तरह देश आज गोवा मुक्ति दिवस मना रहा है। आज से ठीक 60 साल पहले 19 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय अभियान’ शुरू कर गोवा, दमन और दीव को पुर्तग़ालियों के शासन से मुक्त कराया था।
वैसे देश तो 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था लेकिन गोवा 19 दिसंबर 1964 तक पुर्तगाली शासन के अधीन रहा क्योंकि पुर्तगालियों ने भारत सरकार के उस अनुरोध को खारिज कर दिया, जिसमें प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनसे गोवा, दमन, दीव, दादरा और नगर हवेली को सौंपने की मांग की थी।
चूंकि उस समय मुल्क के हालात ऐसे नहीं थे, देश ने उसी समय विभाजन की विभिषिका झेली थी और वो नहीं चाहते थे की पुर्तगाल से तुरंत उलझा जाए क्योंकि नेहरू को डर था कि विश्व नये-नये आजाद हुए भारत को कहीं आक्रामक देश न समझ ले।
Goa Liberation का संघर्ष भारतीय सेना के दखल से खत्म हुआ
इतिहास के झरोखे में झांके तो हमें पता चलता है कि पुर्तगालियों ने साल 1510 में भारत के कई हिस्सों को अपना गुलाम बना लिया था लेकिन 19वीं शताब्दी के अंत तक भारत में पुर्तगाली शासन केवल गोवा, दमन, दीव, दादरा और नगर हवेली तक सीमित रह गया था, जिसे हथियारों के बल पर भारतीय सेना ने आजाद करा लिया था।
देश को गोवा की आजादी रक्त की अविरल धारा और क्रूर हिंसा के बाद मिली, जिसे पुर्तगालियों ने बड़े ही विभत्स तरीके से अंजाम दिया था। आजादी के बाद गोवा मुक्ति का आंदोलन एक विद्रोह के तौर पर शुरू हुआ, जिसे पुर्तगाली शासकों ने बड़ी बेरहमी से दबाने की कोशिश की।
आजादी के करीब 7 साल पहले यानी साल 1940 में शुरू हुए गोवा विद्रोह की शुरूआत हुई, जो साल 1960 के दौरान अपने चरम पर पहुंची। जिसके बाद साल 1961 में भारत सरकार ने सैन्य दखल दिया और 19 दिसंबर को भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन विजय’ के बल पर दमन-दीव गोवा के साथ-साथ दादरा और नगर हवेली देश का हिस्सा बने।
गोवा को आजाद कराने में देश के महान समाजवादी नेता डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का सबसे बड़ा योगदान रहा है। एक बार Lohia ने संसद में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सामने कहा कि बिना आंदोलन के पुर्तगाली गोवा को छोड़कर नहीं जायेंगे, जिसके जवाब में पंडित नेहरू खामोश रहे।
लोहिया ने जो बात संसद में ही थी वो एकदम सही साबित हुई, आजादी के दशकों बाद तक पुर्तगालियों ने अपना कब्जा नहीं छोड़ा। वैसे Lohia ने अपने मित्र डॉ जूलियाओ मेनेज़ेसके साथ मिलकर गोवा आंदोलन का बिगुल देश की आजादी के पहले ही फूंक दिया था। 40 के दशक में गोवा में पुर्तगाली शासन की अराजकता का यह आलम था कि पुर्तगालियों ने किसी भी तरह की सार्वजनिक सभा पर रोक लगा रखी है। गोवा में लोगों के किसी भी तरह के नागरिक अधिकार थे ही नहीं।
Lohia गोवा के मडगांव में घोड़ागाड़ी से पहुंचे थे, टैक्सी वालों ने मना कर दिया था
Lohia ने 15 जून 1946 को पंजी में एक सभा बुलाई, जिसमें तय हुआ 18 जून से पुर्तगाली शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा प्रारम्भ होगा। 18 जून को लोहिया गोवा के मडगांव सभा स्थल पर घोड़ागाड़ी से पहुंचे, गोवा पुलिस ने सभी टैक्सी वालों को मना कर दिया था कि वो लोहिया को लेकर प्रदर्शन स्थल नहीं जाएंगे।
लोहिया जब वहां पहुंचे तो घनघोर बारिश हो रही थी लेकिन हजारों की संख्या में जुटे लोग आशा की निगाह से लोहिया की ओर देख रहे थे। Lohia को लोगों का बल मिला और वो मशीनगन लिए हुए पुर्तगाली फौज के सामने गरजने लगे। उन्होंने गोवा के लोगों को पुर्तगालियों के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया। डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने आंदोलन की अगुवाई करते हुए नारा दिया ‘Portuguese Go Back’। उनके नारा देते ही मडगांव में गगनचुम्बी गूंज उठी ‘Portuguese Go Back’।
इस बीच Lohia के ऊपर पुर्तगाली फौज ने पिस्तौल तान दी लेकिन अपार जनसमूह के समर्थन के आगे पुर्तगाली शासन को झुकना पड़ा। गोवा के इतिहास में गुलामी के लगभग 450 सालों के इतिहास में पहली बार गूंजा था आजादी का नारा। पुर्तगाली सिपाहियों ने लोहिया को तुरंत गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद तो पूरा गोवा जंग का मौदान बन गया।
पुलिस Lohia को पंजी थाने ले गई, जहां जनता ने धावा बोल कर उन्हें छुड़ाने का प्रयास किया। पुर्तागली शासन को लोहिया से इतना भय हो गया कि आखिरकार 21 जून को गोवा के गवर्नर ने आदेश जारी किया कि आमसभा और भाषण के लिए सरकारी आदेश लेने की आवश्यकता नहीं है। लोहिया को पुलिस ने आजाद कर दिया और उन्होंने वहां झण्डा फहराया। उसके बाद लोहिया ने पुर्तगाली शासन को गोवा की आजादी के लिए तीन माह की नोटिस दिया और वहां से लौट गये।
Lohia की गिरफ्तारी के विरोध में गांधी जी ने ‘हरिजन’ में लेख लिखा था
जब लोहिया को पुर्तगाली पुलिस ने गिरफ्तार किया तो स्वंय महात्मा गांधी ने अपनी पत्रिका ‘हरिजन’ में लेख लिख कर उनकी गिरफ्तारी का पुरजोर विरोध किया। रिहा होने के तीन महीने के बाद बाद Lohia फिर गोवा के मड़गांव जाने लगे उन्हें रास्तें में कोलम के पास पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। पुर्तगाली शासन ने लोहिया को 29 सितम्बर से 8 अक्टूबर तक आग्वाद के किले में बंदी बनाकर रखा।
उसके बाद पुर्तगाली शासन ने Lohia को अनमाड़ के छोड़ दिया। इस बीच 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी ने लार्ड बेवेल के सामने लोहिया की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाया था और उन्होंने कहा कि पुर्तगाली शासन जल्द से जल्द लोहिया को रिहा करे। गांधी जी के दबाव में पुर्तगाली शासन ने लोहिया को रिहा तो कर दिया लेकिन शर्त रख दी कि वो 5 साल तक गोवा में प्रवेश नहीं करेंगे।
पुर्तगाली शासन के इस प्रतिबंध का अब कोई असर नहीं होने वाला था क्योंकि Lohia ने गोवा मुक्ति आंदोलन को ऐसी धार दे दी थी कि गोवा के हिंदुओं और कैथोलिक ईसाइयों ने खुद को संगठित करके पुर्तगाली शासन के खिलाफ बगावत कर दिया और गोवा के आजादी के संघर्ष को अपने खून लाल कर दिया। गोवा के इस संघर्ष में पुर्तगालियों से टक्कर लेने में गोवा का एक क्रांतिकारी दल सबसे आगे था।
उस क्रांतिकारी दल का नाम था, ‘आज़ाद गोमांतक दल’। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया से प्रेरणा लेकर गोवा के विश्वनाथ लवांडे, नारायण हरि नाईक, दत्तात्रेय देशपांडे और प्रभाकर सिनारी ने इसकी स्थापना की थी। गोवा के इन महान क्रांतिकारियों में से कईयों को पुर्तगाली सेना ने गिरफ़्तार किया। गिरफ्तार किये गये कुछ क्रांतिकारियों को तो पुर्तगाल शासन इतना खतरनाक मानती थी कि उन्हें अफ़्रीकी के अंगोला जेल भेज दिया था।
आचार्य नरेंद्र देव और मधु लिमये ने गोवा की आजादी के लिए संघर्ष किया था
साल 1954 में लोहिया की प्रेरणा से गोवा विमोचन सहायक समिति बनी, जिसने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के आचार्य नरेंद्र देव ने अगुवाई की और सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा के आधार पर पुर्तगालियों के खिलाफ चलने वाले इस आंदोलन का नेतृत्व किया। बाद में Lohia के कई समाजवादी शिष्यों ने गोवा की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिनमें मधु लिमये प्रमुख थे। जिन्होंने गोवा की आज़ादी के लिए साल 1955 से 1957 के बीच दो साल गोवा की पुर्तगाली जेल में बिताए।
उसके बाद गोवा की जनता पर हो रहे अत्याचार की खबरों ने पंडित नेहरू को हिलाकर रख दिया औऱ अंततः 19 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय अभियान’ चलाया और गोवा, दमन-दीव के साथ नगर हवेली को पुर्तग़ालियों के कब्जे में आजाद करा लिया।
19 दिसंबर 1961 को आजाद हुए गोवा का भारत सरकार ने 30 मई 1987 को विभाजन किया और गोवा का अलग राज्या का दर्जा देते हुए दमन और दीव को केंद्रशासित प्रदेश बना दिया। Goa Liberation Day की कहानी बिना Lohia के अधूरी रहेगी। जब जब गोवा की बात आयेगी Lohia खुद-ब-खुद बहस के केंद्र में होंगे।
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