भारत में लगभग 20 साल के बाद कपास के बाद दूसरी जेनेटिकली मोडिफाइड (Genetically Modified) फसल सरसों (Mustard) DMH-11 की खेती को मंजूरी मिलने की संभावना बढ़ गई है. जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) की 18 अक्टूबर, 2022 को हुई 147वीं बैठक में देश में जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती को मंजूरी देने की सिफारिश दे दी गई है. विशेषज्ञों के अनुसार इससे देश में तिलहन की व्यावसायिक खेती का रास्ता खुलेगा.
इससे पहले केंद्र सरकार ने अबतक (वर्ष 2002 में) व्यावसायिक खेती के लिए केवल एक जीएम फसल, बीटी कपास को मंजूरी दी है.
क्या है पूरा मामला?
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEF&CC) के अंतर्गत स्थापित की गई जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) की 18 अक्टूबर, 2022 को हुई 147वीं बैठक में देश में Genetically Modified सरसों की व्यावसायिक खेती को मंजूरी देने की सिफारिश दे दी गई है.
हालांकि बैठक को लेकर विस्तृत जानकारी 26 अक्टूबर 2022 को जारी की गई जिसमें जीईएसी की सिफारिशों की जानकारी सामने आई. अगर इन सिफारिशों को केंद्र सरकार की मंजूरी मिल जाती है तो इसे चालू सीजन (2022-23) में ही उगाना संभव हो पाएगा.
डीएमएच-11
जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने 18 अक्टूबर को एक बैठक में आनुवंशिक रूप से संवर्धित जीवों के लिए ‘‘वाणिज्यिक स्तर पर जारी करने से पहले सरसों के हाइब्रिड डीएमएच-11 को मौजूदा आईसीएआर दिशानिर्देशों और अन्य मौजूदा नियमों / विनियमों के अनुसार पर्यावरणीय स्तर पर परीक्षण के लिए जारी करने की सिफारिश की है.

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने सरसों की जिस डीएमएच-11 हाइब्रिड किस्म के प्रयावरणीय मंजूरी की सिफारिश की है उसे दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ दिल्ली कैंपस स्थित सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) द्वारा विकसित किया गया है. इस टीम का नेतृत्व दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रह चुके प्रोफेसर दीपक पेंटल ने किया. पेंटल एक प्रसिद्ध शोधकर्ता और आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) के प्रोफेसर हैं.
लंबे समय से जारी है बहस
भारत में Genetically Modified सरसों को लेकर नीतिगत बहस सालों से जारी है. एक ओर जहां केंद्र सरकार जीएम फसलों को अनुमति देकर खाद्य तेलों में दूसरे देश से आयात में कमी के साथ आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करना चाहती है, वहीं इसका व्यापक विरोध भी किया जा रहा है.
कमेटी द्वारा की गई सिफारिश के बाद विशेषज्ञों के एक समूह जिसमें कृषि विशेषज्ञों के अलावा किसान संगठनों और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि भी शामिल हैं ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है, “भारत में जीएम फसल की खेती के किसी भी अनुमोदन का देश के नागरिकों द्वारा कड़ा विरोध किया जाएगा. जीईएसी दूसरी बार जीएम सरसों को मंजूरी देने की सिफारिश की जा रही है, जो पूरी तरह अवैज्ञानिक और गैर जिम्मेदारना है. इस निर्णय का कोई आधार भी नहीं है.

पहले भी की गई थी सिफारिश
जीएम सरसों को लेकर इससे पहले मई 2017 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), नई दिल्ली में परीक्षण को लेकर इसी तरह की सिफारिश की गई थी, लेकिन केंद्रीय जलवायु, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसे मंजूरी नहीं मिल पाई थी.
क्यों हो रहा है विरोध?
जीएम-मुक्त भारत के लिए बने गठबंधन ने बुधवार को जारी एक बयान में कहा कि, ‘‘यह गंभीर और आपत्तिजनक तरीकों से जैव सुरक्षा के मुद्दे से समझौता करता है, ओर हम सरकार से भारत में इस खतरनाक खरपतवार नाशक (हर्बिसाइड को सहन करने वाली) खाद्य फसल की अनुमति देने में आगे नहीं बढ़ने की मांग करते हैं.’’
गठबंधन ने 20 अक्टूबर 2022 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भुपेंद्र यादव को पत्र लिख कहा था कि ‘‘जीएम सरसों, सरसों जैसे पौधे में संकर फसल बनाने जैसे बहाने का इस्तेमाल करता है, लेकिन वास्तव में यह एक खरपतवार नाशक दवा के प्रति सहिष्णु फसल है. जीएम सरसों के अबतक के पूरे जैव सुरक्षा आकलन में इस तथ्य को ध्यान में नहीं रखा गया है.’’ इसके अलावा ‘‘नियामकीय परीक्षणों में भी इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया गया है कि इस जीएमओ के साथ ग्लूफोसिनेट जैसी घातक, खरपतवार नाशक का उपयोग किया जाएगा.” पत्र में कहा गया था कि, ‘‘यह हमारी नियामकीय व्यवस्था में बहुत गंभीर खामी को दर्शाता है.’’
बता दें कि सरकार ने अब तक साल 2002 में व्यावसायिक खेती के लिए केवल एक जीएम फसल बीटी कपास को मंजूरी दी है. जीईएसी ने 18 अक्टूबर को एक बैठक में जीएम सरसों डीएमएच-11 को वाणिज्यिक स्तर पर जारी करने से पहले पर्यावरणीय परीक्षण की सिफारिश की है.
क्या है जीएम तकनीक?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, जीएम वह तकनीक है जिसमें जंतुओं एवं पादपों (पौधे, जानवर, सुक्ष्मजीवियों) के डीएनए को अप्राकृतिक तरीके से बदला जाता है. अगर हम आसान भाषा में समझे तो जीएम तकनीक के तहत एक प्राणी या वनस्पति के जीन को निकालकर दूसरे असंबंधित प्राणी / वनस्पति में डाला जाता है. इसके बाद हाइब्रिड बनाने के लिये किसी जीव में नपुंसकता पैदा की जाती है, जैसे जीएम सरसों को प्रवर्धित करने के लिये सरसों के फूल में होने वाले स्व-परागण (सेल्फ पॉलिनेशन) को रोकने के लिये नर नपुंसकता पैदा की जाती है. फिर हवा, तितलियों, मधुमक्खियों और कीड़ों के जरिये परागण (Pollination) होने से एक हाइब्रिड तैयार होता है.
जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति
जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEF&CC) के तहत स्थापित किया गया है. इसका कार्य अनुवांशिक रूप से संशोधित सूक्ष्म जीवों और उत्पादों के कृषि में उपयोग को स्वीकृति प्रदान करना है.
जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों के लिये स्थापित किया गया भारत का सर्वोच्च नियामक (Top Regulator) है.