गुवाहाटी के नीलाचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर में शुरू हो गया ‘अंबुवासी मेला’। इस मेले को पूर्वोत्तर का ‘कुंभ मेला’ भी कहा जाता है। इस मेले में देश के कोने- कोने से साधकों, पंडितों और भक्तों की भीड़ जमा हो जाती है। इस मेले का आयोजन आज से प्रारंभ हो गया है। खूब सज-संवर कर बैठी कामाख्या नगरी में कल दोपहर 1 बजकर 15 मिनट पर अंबुवासी की प्रवृत्ति होगी। ऐसे में नीलाचल के कोने-कोने में तांत्रिकों,साधुओं,पंडितों का जमावड़ा लग जाएगा और हवन कुंड जल उठेंगे।
कामाख्य मंदिर का महत्व?
इस मंदिर को देवी के सभी शक्तिपीठों में से बहुत खास माना जाता है, क्योंकि धर्म ग्रथों के अनुसार, यहां पर देवी सती का योनि अंग गिरा था। यहां पर देवी की मूर्ति नहीं बल्कि योनि अंग की ही पूजा होती है, जिसे हमेशा फूलों से ढ़ककर रखा जाता है। दरअसल, मां सती के पिता दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। मां सती यह जानकर भी भगवान शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। किंतु दक्ष ने सती के सामने उनका व उनके पति भगवान शिव का बहुत अपमान किया। यह सब मां सती बर्दाश्त नहीं कर पाई और अपमानित महसूस कर यज्ञ कुंड में अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव को जब यह बात पता चली तो वो क्रोधित हो गए और उन्होंने दक्ष का सिर काट दिया लेकिन उसके बावजूद उनका मन शांत नहीं हुआ और वह मां सती को लेकर तांडव करने लगे जिससे पूरी सृष्टि में प्रलय आ गया। तब भगवान विष्णु ने अपन चक्र से मां सती के शरीर के खंड-खंड कर दिए जिससे मां का योनि अंग नीलाचल पहाड़ी पर गिरा जहां आज कामाख्या मंदिर स्थापित है।
क्या है मान्यता?
मान्यता है कि यदि अंबुवासी मेले के दौरान मंदिर में पाठ किया जाए तो फल तुरंत मिलता है क्योंकि मेले के दौरान मां भगवती खुद नीलाचल पर्वत पर विरजमान रहती हैं। मां अपने किसी भी भक्त या साधक को मुसीबत में नहीं देख सकती हैं और तुरंत उसकी मनोकामना पूरी करती हैं।
बता दें कि कामाख्या धाम स्थित दशनामी अखाड़े में आज विधि विधान के साथ धर्म ध्वजा फहराया गया। इस बार दसनामी अखाड़े से नीचे उतर कर साधु-संतों ने शंख की ध्वनि के बीच कामाख्या मंदिर की परिक्रमा की। जानकारी के मुताबिक कल शाम तक श्रद्धालुओं और भक्तों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी होगी।