नेपाल के साथ भारत के संबंध कब से हैं और अतीत में कैसे रहे हैं, यह किसी को बताने की जरुरत नहीं है। लेकिन ताजा कुछ हालातों ने भारत की पेशानी पर बल ला दिए हैं। कहा जा रहा है कि यह नेपाल की आंतरिक राजनीति में चीनी हस्तक्षेप का नतीजा है। ताजा घटना क्रम में नेपाल के निचले सदन में विवादित मानचित्र संशोधन विधेयक पास हो गया है। इस विवादित मानचित्र में नेपाल ने भारत के लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को भी शामिल किया है। नेपाल की इस हरकत पर भारतीय सरकार ने कहा है कि नेपाली सरकार ने निचले सदन में ये संवैधानिक संशोधन विधेयक पास करके सीमा मुद्दे का राजनीतिकरण किया है।

इस पूरे घटनाक्रम पर आज भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की टिप्पणी सामने आई है। ताजा सीमा पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बातचीत की वकालत की है। सिंह ने सोमवार को कहा कि नेपाल को कुछ ‘गलतफहमी’ है जिसे बातचीत से सुलझाया जाएगा। वह उत्‍तराखंड के बीजेपी कार्यकर्ताओं को ‘जन सम्‍वाद‘ कार्यक्रम के तहत संबोधित कर रहे थे, जब उन्‍होंने नेपाल का मुद्दा उठाया। उत्‍तराखंड से लगती सीमा पर ही नेपाल ने तनाव पैदा कर दिया है। रक्षा मंत्री ने कहा कि ‘भारत-नेपाल के बीच असाधारण संबंध हैं, हमारे बीच रोटी-बेटी का रिश्ता है और दुनिया की कोई ताकत इसे तोड़ नहीं सकती।’

नेपाल भारत के पांच राज्यों- सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड- के साथ 1850 किमी लंबी सीमा साझा करता है। अनूठे मैत्री संबंधों के अनुरूप लोगों की मुक्त आवाजाही की दोनों देशों की लंबी परंपरा रही है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक करीब 80 लाख नेपाली नागरिक भारत में रहते हैं। दोनों देशों के बीच मजबूत रक्षा संबंध हैं। भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। नेपाल से आए करीब 32 हजार गोरखा सैनिक भारतीय सेना में हैं।

भारत सरकार के सूत्रों ने कहा कि बातचीत से मामले को सुलझाने के लिहाज से नेपाल सरकार ने जरा भी गंभीरता नहीं दिखाई बल्कि सीमित राजनीतिक एजेंडे के तहत अदूरदर्शी कदम उठाया। भारत ने हमेशा राजनयिक संवाद के माध्यम से सीमा मुद्दे के समाधान पर जोर दिया है। सूत्रों ने बताया कि भारत ने नेपाली पक्ष को सकारात्मक जवाब दिया और वार्ता को अनुकूल वातावरण और पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तारीख पर आयोजित करने की इच्छा जताई थी। सरकार के सूत्रों ने कहा कि नेपाल सरकार ने संवैधानिक संशोधन को पारित कराने में जल्दबाजी की है, नेपाल के पास अपना दावा मजबूत करने के लिए कोई ऐतिहासिक तथ्य या सबूत नहीं है।

विदेश मामलों के जानकार इसके पीछे एक नहीं, कई कारण गिनवाते हैं।उनका मानना है कि नेपाली घरेलू राजनीति में उथल-पुथल, उसकी बढ़ती आकांक्षाएं, चीन से मजबूत आर्थिक सहयोग के कारण बढ़ रही हठधर्मिता और बातचीत करने में भारत की शिथिलता ने विवाद के कॉकटेल का काम किया। बहरहाल भारत को ऐसे मामले में बड़े भाई की समझ दिखाते हुए नेपाल – भारत संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिशें करनी होंगी। वरना कुछ ऐसी ताकतें दिन-रात भारत औऱ नेपाल संबंधों में कड़वाहट घोलने को तैयार हैं। ऐसी देश विरोधी ताकतें भारत औऱ नेपाल दोनों ही देशों में मौजूद है। जरुरत है उन्हें पहचान कर यथोचित कार्रवाई करने की।

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