महाराष्ट्र में सरकार चला रहे एकनाथ शिंदे गुट और पूर्व मुख्यमंत्री सह शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के बीच चल रहे पार्टी के दावे को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ (Constitutional Bench) सुनवाई कर रही है. शिवसेना बनाम शिवसेना मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली वाले पांच जजों की संविधान पीठ कर रही है.
पिछली सुनवाई में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि सवाल यह है कि इस मामले में चुनाव आयोग का दायरा तय किया जाएगा. लेकिन एक सवाल है कि क्या चुनाव आयोग को आगे बढ़ना चाहिए या नहीं, तो ऐसे में हम अर्जी पर विचार कर सकते है.
संविधान पीठ – Constitutional Bench
संविधान पीठ (Constitutional Bench) सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ होती है जिसमें पांच या पांच से ज्यादा न्यायाधीश शामिल होते हैं. हालांकि इन पीठों को नियमित तौर पर गठित नहीं किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट में चल रहे ज्यादातर मामलों की सुनवाई और फैसले दो न्यायाधीशों (जिन्हें डिवीजन बेंच कहा जाता है) और कभी-कभी तीन सदस्यों की पीठ द्वारा किया जाता है.
अनुच्छेद 145(3)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145(3) के अनुसार “इस संविधान की व्याख्या के रूप में या अनुच्छेद 143 के तहत किसी संदर्भ की सुनवाई के उद्देश्य से कानून के एक महत्वपूर्ण प्रश्न से जुड़े किसी भी मामले के निर्णयन के उद्देश्य से शामिल होने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पांच होगी”.
अनुच्छेद 143
जब राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत कानून के तहत सुप्रीम कोर्ट की सलाह मांगता है. इस प्रावधान के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति के पास सुप्रीम कोर्ट ऐसे प्रशनों को लेकर सलाह लेने की की शक्ति है, जिसे वह लोक कल्याण के लिये जरूरी मानते हैं.
सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति को सलाह देता है, हालांकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई इस तरह की सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है.
किसकी क्या दलील?
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान की दसवीं अनुसूची के मद्देनजर पार्टी में किसी गुट में फूट का फैसला चुनाव आयोग कैसे कर सकता है, यह एक सवाल है. वे आयोग के पास किस आधार पर गए हैं? कोर्ट को तय करना है कि जबतक विधायकों की अयोग्यता (Disqualification) को लेकर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला नहीं सुना देता है, चुनाव आयोग चुनाव चिन्ह पर फैसला कर सकता है या नहीं.
सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कपिल सिब्बल से पूछा कि एकनाथ शिंदे ने चुनाव आयोग में कब और किस हैसियत से अर्जी दी. महराष्ट्र की विधानसभा के सदस्य के तौर पर या फिर एक पार्टी के सदस्य के तौर पर? इसका जवाब देते हुए सिब्बल ने कहा कि चुने हुए सदस्य के तौर पर. सिब्बल ने आगे बताते हुए कहा कि पूरे विवाद की शुरुआत 20 जून से हुई जब शिवसेना का एक विधायक एक सीट हार गया, इसके बाद विधायक दल की बैठक बुलाई गई. इसके बाद उनमें से कुछ गुजरात और फिर असम के गुवाहाटी चले गए. पार्टी का ओर से उन्हें उपस्थित होने के लिए बुलाया गया था और एक बार जब वे उपस्थित नहीं हुए तो उन्हें विधानसभा में पद से हटा दिया गया था.
सिब्बल ने उद्धव गुट की ओर से कहा कि विधायकों को स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि अगर आप बैठक में शामिल नहीं होंगे तो आपको हटा दिया जाएगा और फिर उन्हें हटा दिया गया. इसके बाद हटाये गये विधायकों ने उल्टा हमें ही कहा की आप पार्टी के नेता नहीं हैं. 29 जून को हमने (शिवसेना) अयोग्यता की कार्यवाही की, तब वे वापिस आए.
वहीं, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल ने कहा कि चुनाव आयोग के सामने चुनाव चिन्ह को लेकर चल रही कार्रवाई का सुप्रीम कोर्ट में चल रही कार्रवाई से कोई लेना देना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में स्पीकर की शक्ति पर सुनवाई है जो चुनाव आयोग के सामने चल रही कार्रवाई से पूरी अलग है.
क्या है पूरा मामला?
शिवसेना में शिंदे और उद्धव गुट के विवाद की शुरूआत 20 जून 2022 से हुई, जब पार्टी के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में 20 विधायक गुजरात के सूरत होते हुए असम के गुवाहाटी चले गए थे. इसके बाद शिंदे गुट ने शिवसेना के 55 में से 39 विधायक के साथ होने का दावा किया, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
महाराष्ट्र के सियासी संकट का पूरा घटनाक्रम
20 जून को शिवसेना के 15 विधायक 10 निर्दलीय विधायकों के साथ पहले सूरत और फिर गुवाहाटी के लिए निकल गए. इसके बाद 23 जून को एकनाथ शिंदे ने दावा किया कि उनके पास शिवसेना के 35 विधायकों का समर्थन प्राप्त है, जिसके बाद 25 जून को डिप्टी स्पीकर ने 16 बागी विधायकों को सदस्यता रद्द करने का नोटिस भेजा. नोटिस के खिलाफ बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.
26 जून को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना, केंद्र, महाराष्ट्र पुलिस और डिप्टी स्पीकर को नोटिस भेजा. बागी विधायकों को राहत कोर्ट से राहत मिली. इसके बाद भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस की मांग पर 28 जून को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सीएम उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कहा.
29 जून को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत परीक्षण (Floor Test) पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. वहीं 30 जून को एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र ने मुख्यमंत्री ओर भाजपा के देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री के रुप मे शपथ ली.
3 जुलाई को विधानसभा के नए स्पीकर ने शिंदे गुट को सदन में मान्यता दे दी. अगले दिन शिंदे ने विश्वास मत हासिल कर लिया. मामले की सुनवाई करते हुए 3 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने 10 दिन के लिए सुनवाई क्या टाली आपने (शिंदे) सरकार ही बना ली. इसके बाद 4 अगस्त को कोर्ट ने कहा कि जब तक ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तब तक चुनाव आयोग चुनाव चिन्ह को लेकर कोई फैसला न ले.
4 अगस्त की सुनवाई के बाद मामले की सुनवाई तीन बार 8, 12 और 22 अगस्त को टल गई इसके बाद 23 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया गया. सात सितंबर से इस मामले की सुनवाई जस्टिस चंद्रचूड़ वाली संविधान पीठ कर रही है.