उत्तर प्रदेश में साल 2022 में 403 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने वाला है। पार्टियां वोट बैंक को साधने में जुट गई हैं। बहुजन समाज पार्टी ब्राह्मणों को साधने में जुट गई है। बसपा भारतीय जनता पार्टी की राह पर चल रही है। सत्ता के लोभ में मायावती की पार्टी ब्राह्मणों का सहारा ले रही है।

ब्राह्मणों को एकजुट करने के लिए सपा ने 23 जुलाई को अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन किया था। इस सम्मेलन से गदगद बसपा ने अब वाराणसी में भी इस तरह का सम्मेलन करने के लिए कहा है। साल 2022 में पार्टी ब्राह्मणों के सहारे सत्ता पाने की राह पर चल पड़ी है।

कभी तिलक तराजू लेकर विवादों में आने वाली बसपा का यह पैतरा नया नहीं है। साल 2007 में इस फॉर्मूले के साथ काम किया गया था। ब्राह्मणों और क्षत्रियों को लेकर बहुजन समाज पार्टी सत्ता के तख्त पर पहुंच गई थी। वक्त के साथ पार्टी का यह फॉर्मूला फेल होने लगा।

विधानसभा चुनाव 2017 में बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक में वर्ष 2007 की तुलना में 8.2 फीसदी की गिरावट हो गई। यह क्रमश: वर्ष 2012 में 25.95 फीसदी रहा था और वर्ष 2017 में 22.23 फीसदी के साथ सिर्फ 19 सीटें आई थीं।

बसपा अपने वोट फीसदी को बढ़ाने के लिए 75 जिलों में ब्राह्मण संम्मेलन करने का ऐलान किया है। पार्टी ने इसकी शुरुआत राम की नगर अयोध्या से की है। अब वाराणसी, मथुरा में भी करने जा रही है। ऐसे में बसपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा अयोध्या में रामलला के दर्शन करने की तरह ही अन्य मंदिरों में भी दर्शन कर कार्यक्रम शुरू करें तो हैरत नहीं।

बसपा के इस फॉर्मूले पर कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती को इस बात का एहसास हो गया है कि बेस मतदाताओं को जोड़े बिना पार्टी अपना वोट प्रतिश नहीं बढ़ा सकती है। साथ ही सत्ता को पाने का उसका सपना अधूरा रह जाएगा। लिहाजा अब यह नरम हिन्दुत्व या यूं कहें ब्राह्मण वोट कार्ड खेलकर भाजपा के वोटों में सेंधमारी की कोशिश की जा रही है।’

गौरतलब है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव कुछ दिन पहले ही चित्रकूट के दौरे पर गए थे। उन्होंने वहां मंदिरों के दर्शन किए और परिक्रमा भी की। अखिलेश कहते रहे हैं कि राम भाजपा के ही नहीं हैं बल्कि उनके तो राम और कृष्ण दोनों हैं। अपने वोट बैंक के साथ ही ब्राह्मणों को जोड़ने के लिए उन्होंने भी ब्राह्मण नेताओं को टिकट दिए। यही नहीं परशुराम जयंती का भी पार्टी मुख्यालय में आयोजन करवा कर उन्होंने संदेश देने की कोशिश की। 

चुनाव के मद्देनजर रखते हुए सभी पार्टियां मंदिर का चक्कर काटने लगी हैं। राहुल गांधी भी इस समय मंदिरों के आसपास ही नजर आरहे हैं।

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