Bangladesh के स्वतंत्रता संघर्ष में Mukti Bahini के ‘स्वतंत्रता सेनानियों’ का बहुत बड़ा हाथ था। या अगर हम यह कहें कि बांग्लादेश आज जिस खुली हवा में सांस ले रहा है उसका सारा श्रेय मुक्ति बाहिनी को जाता है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा।

तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान के जुझारू लड़ाकों ने गुरिल्ला युद्ध के जरिये Bangladesh के मुक्ति आंदोलन को ऐसी धार दी कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान और Zulfikar Ali Bhutto को शेख मुजीबुर्रहमान के सामने घुटने टेकने पड़े।

Bangladesh कैसे बना
पूर्वी पाकिस्तान के सामान्य नागरिकों ने पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के खिलाफ भारत के सहयोग से मुक्ति युद्ध लड़ा। जिसके कारण पाकिस्तान ने 16 दिसंबर 1971 को हथियार डाल दिये और इस तरह से पूर्वी पाकिस्तान Bangladesh में बदल गया।

पाकिस्तान के अत्याचारों से त्रस्त आकर 7 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को चौतरफा संघर्ष के लिए ललकार लगाई। तब Mukti Bahini यानी आजाद सेना या फिर बांग्लादेश फोर्सेज का गठन हुआ। पाकिस्तान आज भी इसे एक आतंकी संगठन मानता है क्योंकि इसी मुक्ति बाहिनी के कारण साल 1971 में उसे पूर्वी पाकिस्तान को खोना पड़ा था और उसकी जगह नया देश Bangladesh अस्तित्व में आया।

दरअसल इस संघर्ष के पीछे सबसे बड़ी कहानी यह है कि पश्चिमी पाकिस्तान में 97 फीसदी ऊर्दू भाषी मुस्लिम थे जबकि पूर्वी पाकिस्तान में 85 फीसदी बांग्लाभाषी मुसलमान थे। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में गतिरोध की नींव तब पड़ी जब साल 1947 में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने एक भाषण में कहा कि पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा उर्दू होगी।

जिन्ना के इस भाषण से पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लाभाषी मुसलमानों को परेशानी होने लगी क्योंकि उनकी तादात वहां बहुत ज्यादा थी। अंत में पूर्वी पाकिस्तान के बंगाली मुसलमानों ने इससे परेशान होकर बड़े पैमाने पर इसका विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। जिसके कारण पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच की दूरियां बढ़ने लगीं।

लगभग दो दशक के बाद बांग्लादेश यानी उस समय के पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने 1970 के राष्ट्रीय आम चुनावों में शेख मुजिबुर्रहमान के नेतृत्व वाली अवामी लीग पार्टी को 313 सीटों में से 167 सीटों पर जीत दिलाकर पाकिस्तान की बागडोर सौंपने का फैसला किया लेकिन जुल्फ़िकार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी जो कि केवल 88 सीटें ही जीत पाई थी। भुट्टों ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या ख़ान के साथ मिलकर एक षणयंत्र रचा। जिसके तहत राष्ट्रपति याह्या खान ने देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया।

मार्शल लॉ के तरह पाकिस्तान ने शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ़्तार कर मियांवाली जेल में बंद डाल दिया। पश्चिमी पाकिस्तानी ने पूर्वी पाकिस्तान में मुजिब के समर्थकों को दबाने के लिए “ऑपरेशन सर्चलाइट” के नाम पर 25 मार्च 1971 की रात 11:30 बजे बड़े पैमाने पर नरसंहार किया।

Bangladesh में बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ
उस नरसंहार में करीब 3 लाख बांग्लादेशियों की हत्या हुई, हजारों महिलाओं के साथ अमानवीय अत्याचार हुआ। जिसके कारण वहां की स्थिति बहुत ही घातक हो गई। बंगालियों पर पाकिस्तानी सेना द्वारा किये जा रहे उत्पीड़न के चलते पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में बंगालियों ने वहां से पलायन किया और करीब 1 करोड़ के आसपास की संख्या में लोग भारत की सीमा में प्रवेश कर गये।

इंदिरा गांधी जो कि उस समय देश की प्रधानमंत्री थीं। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस मसले को उठाया लेकिन विश्व के अन्य देशों ने इस मामले में कोई रूचि नहीं दिखाई। अंत में हारकर पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के बढ़ते अत्याचार से दुखी होकर भारतीय फौज ने 3 दिसंबर, 1971 को हमला बोल दिया था।

उससे पहले अप्रैल 1971 को इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश फोर्सेज के लिए आर्थिक और मिलिट्री सपोर्ट की मंजूरी दे दी थी। उसके बाद Bangladesh की प्रांतीय सरकार की तरफ से कोलकाता में एक सचिवालय भी स्थापित किया गया।

इंदिरा गांधी की इस पहल के बाद भारत की थल, वायु और नौसेना ने भी अपने सैन्य क्षेत्रों को पूर्वी पाकिस्तान की Mukti Bahini के लिए खोल दिए।

Mukti Bahini के लड़ाकों को भारतीय सेना ने ट्रेनिंग दी
इतना ही नहीं भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मसलन बिहार, अरुणाचल प्रदेश, असम, नागलैंड, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में मुक्ति बाहिनी के लड़ाकों को ट्रेनिंग देने के लिए कैंप भी लगाये गये। साथ ही Mukti Bahin को भारत की सीमा में बिना रोकटोक आने की मंजूरी भी दे दी गई।

साल 1965 के युद्ध के बाद यह दूसरा मौका था, जब भारत-पाकिस्तान की फौजें आमने सामने थीं। इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान से Bangladesh को अलग करने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन की धमकियों को भी अनदेखा कर दिया।

अमेरिका ने पाकिस्तान के पक्ष में बंगाल की खाड़ी में अपना परमाणु बम से लैस नौसेना का 7वां बेड़ा भारत की ओर बढ़ा दिया लेकिन दूसरी ओर से भारती ओर से जैसे ही रूस ने अपनी आंखें दिखाई। अमेरिका तुरंत खामोश हो गया।

भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध Bangladesh लिबरेशन वॉर के रूप में शुरू हुआ था। 13 दिनों तक चले युद्ध के बाद पाकिस्तानी सेना से 16 दिसंबर को हथियार डाल दिए।

भारतीय फौज ने करीब 90 हजार पाक सैनिकों को बंदी बना लिया था। इसे सबसे कम समय तक चले युद्ध के तौर पर भी देखा जाता है।

पाकिस्तान ने 8 जनवरी 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान को रिहा किया। इसके बाद शेख मुजीबुर्रहमान इंग्लैंड गये, जहां वो दो दिन रुकने के बाद दो घंटे के लिए दिल्ली पहुंचे और फिर Bangladesh चले गये। उनका ये दिल्ली दौरा सिर्फ दो घंटे का था, लेकिन इस दौरे ने उन्हें बंगबंधु के तौर पर स्थापित कर दिया।

इस युद्ध में मुंह की खाने वाली पाकिस्तानी सेना का आत्मसमर्पण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था। पाकिस्तान के सरेंडर के फौरन बाद भारत पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में मान्यता दे दी।

इसके साथ ही भारत ने संयुक्त राष्ट्र से बांग्लादेश को सदस्य बनाने की भी मांग कर दी लेकिन यूएन में वोटों के आधार पर चीन, पाकिस्तान और अमेरिका ने भारत के इस प्रस्ताव का विरोध कर दिया।

जिसके बाद इंदिरा गांधी ने साल 1972 में पाकिस्तान के साथ शिमला समझौत किया। इस समझौते के मुताबिक पाकिसातन ने शर्त रखी कि यही भारत पाकिस्तानी युद्ध कैदियों को रिहा करता है तो बदले में पाकिस्तान बांग्लादेश को मान्यता दे देगा। जिसे भारत ने स्वीकार कर लिया।

उस समय भारत में करीब 90,000 पाकिस्तानी युद्धबंदी थे, जिन्हें रिहा कर दिया गया। इसके साथ ही भारत ने युद्ध के दौरान पाकिस्तान की जो 13,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया था उसे भी पाकिस्तान को वापस कर दिया। हालांकि भारत ने 804 वर्ग किलोमीटर के कुछ महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्रों को अपने पास ही रखा।

वैसे शिमला समझौते से भारत की जनता बहुत खुश नहीं थी लेकिन उसके बावजूद तत्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की लोकप्रियता अपने शीर्ष पर पहुंच गई थी। साल 1971 में हुए पाकिस्तान के खिलाफ इस युद्ध में जीत के बाद हर साल भारत 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाता है।
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