Qutub Minar की होगी खुदाई, जानें क्यों लिया गया फैसला?

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के प्रवक्ता विनोद बंसल ने दावा किया था कि Qutub Minar वास्तव में 'विष्णु स्तम्भ' था और संरचना का निर्माण 27 हिंदू-जैन मंदिरों को ध्वस्त करने के बाद प्राप्त सामग्री से किया गया था।

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Qutub Minar: ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के बाद दिल्ली की कुतुब मीनार को लेकर विवाद शुरू हो गया है। अब दावा किया जा रहा है कि कुतुब मीनार हिंदू सम्राट राजा विक्रमादित्य द्वारा बनाया गया था। इस बीच, संस्कृति मंत्रालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को कुतुब मीनार में मूर्तियों की खुदाई और प्रतिमा का संचालन करने का निर्देश दिया है। बता दें कि एएसआई के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक धर्मवीर शर्मा ने दावा किया कि कुतुब मीनार का निर्माण सूर्य की दिशा का अध्ययन करने के लिए राजा विक्रमादित्य ने करवाया था, न कि कुतुब अल-दीन ऐबक।

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Qutub Minar: संस्कृति मंत्रालय ने दिए निर्देश

संस्कृति मंत्रालय ने भी एएसआई को अपनी उत्खनन रिपोर्ट सौंपने को कहा है। मीनार के दक्षिण में मस्जिद से 15 मीटर की दूरी पर खुदाई शुरू की जा सकती है। संस्कृति मंत्रालय के सचिव, गोविंद मोहन ने 3 इतिहासकारों, 4 एएसआई अधिकारियों और शोधकर्ताओं के साथ साइट का दौरा किया। एएसआई के अधिकारियों ने सचिव को बताया कि कुतुब मीनार परिसर में 1991 के बाद से खुदाई का काम नहीं हुआ है।

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विहिप के प्रवक्ता ने Qutub Minar को “विष्णु स्तम्भ” बताया

बता दें कि इससे पहले, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के प्रवक्ता विनोद बंसल ने दावा किया था कि कुतुब मीनार वास्तव में ‘विष्णु स्तम्भ’ था और संरचना का निर्माण 27 हिंदू-जैन मंदिरों को ध्वस्त करने के बाद प्राप्त सामग्री से किया गया था। इसके बाद कई हिंदू समूहों ने विरोध प्रदर्शन किया, हनुमान चालीसा का जाप किया और कुतुब मीनार का नाम बदलकर विष्णु स्तंभ करने की मांग की, क्योंकि कुतुब मीनार के अंदर भगवान नरसिंह की 1200 साल पुरानी मूर्ति, भगवान गणेश और भगवान कृष्ण की मूर्तियां मिली थीं।

क्या हिंदू मंदिर को तोड़कर हुआ निर्माण?

गौरतलब है कि ASI ने 1871-72 के सर्वेक्षण में पाया था कि कुतुब मीनार और परिसर में बने मंदिरों को एक साथ, एक ही समय मे बनवाया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, कुतुब मस्जिद में स्पष्ट साक्ष्य मौजूद हैं कि इसका निर्माण हिंदू मंदिर को तोड़ कर किया गया था। सर्वेक्षण के दौरान यह पाया गया था कि 12वीं-13वीं शताब्दी में जब आधुनिक इंजिनीरिंग मौजूद ही नहीं थी तब मौजूदा मस्जिद से कुछ ही दूरी पर इतनी बड़ी मीनार खड़ा कर वो भी अगल बगल की इमारतों को नुकसान पहुंचाये बिना असंभव है। वैसे भी बर्बर मुगलों के बस की बात ही नही थी।

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