Allahabad High Court ने District Court के आदेश को बदला, बच्ची के साथ रेप का आरोपी बरी

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Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी को बरी कर दिया है। अभियुक्त नाजिल पर आरोप था कि उन्होंने 6 वर्ष की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म करने के बाद जला कर मार दिया था। केस की सुनवाई करते हुए सत्र अदालत (District Court) ने आरोपी को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। जिसके बाद आरोपी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से पुन: इस मामले पर सुनवाई की मांग की थी।

इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामपुर के चर्चित 6 वर्ष की मासूम बच्ची का रेप व हत्या के आरोपी नाजिल को सबूत के आभाव में फांसी की सजा देने की पुष्टि से इंकार कर दिया है। और सत्र अदालत के सजा को निरस्त करते हुए उसे बड़ी कर दिया है।

Allahabad High Court ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने विफल रहा कि पीड़िता को अंतिम बार आरोपी के साथ देखा गया था। साथ ही आरोपी के खिलाफ कोई चिकित्सकीय साक्ष्य भी नहीं हैं। बता दें कि यह निर्णय न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा एवं न्यायमूर्ति समीर जैन की पीठ ने नाजिल की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।


Allahabad High Court
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गौरतलब है कि कोर्ट ने रेप व हत्या के आरोपी को अलग-अलग धाराओं में सुनाई गई सजा से भी बरी कर दिया है,और तत्काल जेल से रिहा करने का निर्देश दिया है। Allahabad High Court ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट साक्ष्यों को समझने में विफल रही। अपराध साबित नहीं हो सका है। इकबालिया बयान को छोड़कर पुलिस के पास कोई ऐसा साक्ष्य नहीं है जो घटना को साबित करने में मदद करता हो। कोर्ट ने कोई स्वतंत्र गवाह और घटनास्थल पर आपत्तिजनक साक्ष्य न मिलने से अभियोजन के सभी तर्कों को नजरअंदाज कर दिया।

Allahabad High Court: अपीलार्थी बरी होने का हकदार


Allahabad High Court ने मृत्युदंड की पुष्टि के लिए भेजा गए पॉक्सो कोर्ट का संदर्भ खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी के खिलाफ कोई अन्य मामला न होने पर सीआरपीसी की धारा 437 (ए) के प्रावधानों के तहत उसे अविलंब जेल से रिहा किया जाए। रामपुर के इस मामले में अपीलार्थी पर आरोप था कि उसने 6 वर्ष की बच्ची के साथ दुराचार कर उसकी हत्या कर दी। बता दें कि बच्ची का शव काशीराम कॉलोनी स्थित एक अर्धनिर्मित मकान में पाया गया था। पॉक्सो कोर्ट ने मुकदमे के ट्रायल के बाद अपीलार्थी को आईपीसी की धारा 363, 376 एबी, 302 व पॉक्सो एक्ट की धारा छह के तहत दोषसिद्ध पाते हुए फांसी की सजा सुनाई थी।

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