पिछले दिनों भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जेलों में बंद बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदियों (Undertrial Prisoners) की दयनीय स्थिति का मुद्दा उठाया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म ने संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित चर्चा में बोलते हुए कहा था कि न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था।
राष्ट्रपति मुर्म ने कहा था कि गंभीर अपराधों के आरोपी मुक्त हो जाते हैं, लेकिन गरीब कैदियों जो हो सकता है किसी को थप्पड़ मारने के लिए जेल गए हों, को रिहा होने से पहले वर्षों जेल में बिताने पड़ते हैं। राष्ट्रपति ने कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका से लोगों की समस्याओं को कम करने के लिए एक प्रभावी विवाद समाधान तंत्र विकसित करने का आग्रह करते हुए कहा था कि न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया को सस्ती बनाने की जिम्मेदारी हम सभी पर है।
वर्ष 2017 में, भारत के विधि आयोग ने सिफारिश की थी कि जिन विचाराधीन कैदियों ने सात साल तक के कारावास के अपराधों के लिये अपनी अधिकतम सज़ा का एक तिहाई हिस्सा पूरा कर लिया है, उन्हें ज़मानत पर रिहा कर देना चाहिये।
कौन होते हैं विचाराधीन कैदी? Undertrial prisoners
भारत में अगर व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा चल रहा है या जिसे मुकदमे की प्रतीक्षा करते हुए रिमांड पर रखा गया है या न्यायालय में विचाराधीन है को विचाराधीन कैदी कहा जाता है। केंद्र सरकार द्वारा बनाये जाने वाले विधि आयोग ने अपनी 78वीं रिपोर्ट में ‘विचाराधीन कैदी’ की परिभाषा में जांच के दौरान न्यायिक हिरासत (Judicial Custody) में रखे गए व्यक्ति को भी शामिल किया गया है।
क्या है भारत में विचाराधीन कैदियों की स्थिति?
हर साल जारी होने वाली राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो (National Crime Report Bureau – NCRB) के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में, जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है जो वर्ष 2021 में रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई है। 2010 में जहां विचाराधीन कैदियों की संख्या दो लाख चालीस हजार थी जो 2021 में बढ़ कर चार लाख तीस हजार हो गई।
NCRB की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में देश की सभी जेल में कैद, कैदियों में से लगभग 76 फीसदी विचाराधीन थे। इसके अलावा इन 76 फीसदी में से लगभग 68 फीसदी या तो निरक्षर (Illiterate) थे या स्कूल छोड़ने (School Dropout) वाले थे। सभी विचाराधीन कैदियों में से लगभग 27 फीसदी निरक्षर थे तो वहीं 41 फीसदी ने दसवीं कक्षा से पहले ही पढ़ाई छोड़ दी थी।
दिल्ली एवं जम्मू और कश्मीर में जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या सबसे ज्यादा 91 फीसदी थी तो वहीं बिहार और पंजाब में 85 फीसदी एवं ओडिशा में 83 फीसदी ऐसे थे जिनके उपर अभी मुकदमा चल रहा था।

क्या कहते हैं Undertrial prisoners को लेकर आंकड़े?
देश में कैदियों को लेकर जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार 2020 के मुकाबले वर्ष 2021 में गिरफ्तार होने वाले लोगों की संख्या में 13 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में कुल 1,319 जेलें हैं, जिनमें साल 2021 में कुल 5,54,034 कैदी बन्द थे जबकि पिछले वर्ष 2020 में इनकी संख्या 4,88,511 थी।
रिपोर्ट में कहा गया था कि इन 1,319 जेलों में इनकी क्षमता का 30 फीसदी से अधिक कैदी बंद हैं। यानी की 10 कैदियों की जगह 13 कैदी बन्द हैं। इनमें भी उत्तराखंड में सबसे ज्यादा 180 और राजस्थान में सबसे कम 100 हैं।
रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत में केवल अंडमान निकोबार, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम व त्रिपुरा ही ऐसे राज्य या केन्द्र शासित क्षेत्र हैं, जहां विचाराधीन कैदियों की संख्या नहीं बढी है। इन सब राज्यों को छोड़कर शेष सभी राज्यों में ऐसे कैदियों की संख्या में 60 फीसदी की वृद्धि हुई है।
एक गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी की गई इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में 24,003 ऐसे विचाराधीन कैदी हैं, जो पिछले तीन से पांच वर्ष से विचाराधीन ही बने हुए हैं। जबकि 11,490 पर मुकदमा पिछले पांच वर्ष से भी ज्यादा समय से चल रहा है। सबसे ज्यादा विचाराधीन कैदी उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र में हैं।
वो बड़ी चुनौतियां जिनसे पार नहीं पा रहे Prisoners
देश की जेलों में कई ऐसे गरीब और संसाधनहीन विचाराधीन कैदी हैं जिन्हें गलत तरीके से गिरफ्तार किया जा रहा है, नियमित रूप से जेलों में न्यायिक हिरासत में भेजा जा रहा है। इस तरह के कैदी को या तो आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण या बाहर सामाजिक कलंक के डर से जमानत लेने और सुरक्षित करने में असमर्थ हैं।
अधिकांश जेलों में भीड़भाड़ और कैदियों को सुरक्षित एवं स्वस्थ परिस्थितियों में रखने के लिये पर्याप्त जगह की कमी की बड़ी समस्या है। ऐसी परिस्थितियों में लोग एक-दूसरे के साथ तंग होकर रहते हैं, जिससे संक्रामक और संचारी रोग आसानी से फैल जाते हैं।
कई बार कैदी का परिवार गरीबी में मजबूर हो जाता है जिससे बच्चों को अच्छी शिक्षा और जरूरी चीजें नहीं मिल पाती है जिसके कारण बच्चे अकसर रास्ता भटक जाते हैं। वहीं, परिवार को सामाजिक कलंक और सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ता है, जिससे परिस्थितियां परिवार को अपराध और दूसरों द्वारा शोषण की ओर प्रेरित करती हैं।
विचाराधीन कैदियों के लिए किये गए संवैधानिक प्रावधान
भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II की प्रविष्टि 4 के तहत ‘जेल / उसमें हिरासत में लिये गए व्यक्ति’ राज्य का विषय है। इसके साथ ही जेलों का प्रशासन और प्रबंधन संबंधित राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। लेकिन, केंद्रीय गृह मंत्रालय जेलों और कैदियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों को लेकर राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को नियमित मार्गदर्शन एवं सलाह देता है।
अनुच्छेद 39A
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39A के अनुसार राज्य को यह सुनिश्चित करना है कि वो कानूनी प्रणाली का संचालन समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देगा इसके अलावा विशेष रूप से जरूरी कानून या योजनाओं द्वारा या किसी अन्य तरीके से निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करेगा, ताकि सबके लिए सामान अवसरों को सुनिश्चित किया जा सके। इसी अनुच्छेद में कहा गया है कि आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण कोई भी नागरिक न्याय प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जाए। निःशुल्क कानूनी सहायता या निःशुल्क कानूनी सेवा का अधिकार संविधान द्वारा दिया गया गारंटीकृत आवश्यक मौलिक अधिकार है।
अनुच्छेद 21
भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत कहा गया है कि “कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा”।
जेल सुधारों को लेकर अमिताभ रॉय समिति की सिफारिशें
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अमिताभ रॉय समिति ने जेलों में सुधार के लिये कई सिफारिशें की गई थी जिनमें भीड़भाड़ की घटनाओं को कम करने के लिये तीव्र ट्रायल (Fast Trial) को सबसे कारगर माना गया है। इसके अलावा औसचन प्रत्येक 30 कैदियों के लिये कम-से-कम एक वकील होना जरूरी है, जबकि वर्तमान में ऐसा नहीं है।
समिति ने ये भी कहा था कि पांच वर्ष से अधिक समय से लंबित छोटे-मोटे अपराधों से निपटने के लिये विशेष फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिये। इसके अलावा जिन अभियुक्तों पर छोटे-मोटे अपराधों का आरोप लगाया गया है और जिन्हें जमानत दी गई है, लेकिन जो जमानत की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं, उन्हें व्यक्तिगत पहचान (PR) बॉण्ड पर रिहा किया जाना चाहिये। इसके अलावा समिति ने ये भी कहा था कि उन मामलों में स्थगन नहीं दिया जाना चाहिये, जहां गवाह मौजूद हैं।
ये भी देखें –