Independence Day Special: देश अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे कर चुका है। इस उपलक्ष में पूरा देश ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है। इस आजादी के लिए जानें कितने ही वीरों ने अपने जान की आहुति दी है। इतना ही नहीं भारत का सफर आजादी के बाद भी आसान न था। भारत के दो पड़ोसी देश हमेशा इसपर बुरी नजर बनाए रखते हैं। आजादी के बाद भी भारत ने पांच युद्ध लड़े थे।
इस युद्ध में देश के कई वीर सपूत वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इस खबर में हम आपको देश के उन 10 वीर सैनिकों के बारे में बताएंगे जिन्होंने मुश्किल घड़ी में भी दुश्मनों को अपने आगे झुका लिया था, जिन्होंने अपनी आखिरी सांस तक उनका डंटकर सामना किया था। साथ ही कुछ ऐसे वीर सैनिकों के बारे में बताएंगे जिन्होंने मौत को करीब से देखा और फिर भी उठ खड़े हुए।
Independence Day Special: कैप्टन अनुज नायर
कैप्टन अनुज नायर का जन्म 28 अगस्त, 1975 को दिल्ली में हुआ था। इन्होंने बचपन से ही सेना में शामिल होने के लिए तैयारी करना शुरू कर दिया था। एनडीए में शामिल होने के बाद भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) से जून 1997 में 17वीं बटालियन, जाट रेजिमेंट में कमीशन हासिल किया और भारतीय सेना के अधिकारी बन गए।
इन्हें 1999 के कारगिल युद्ध में शामिल होने के लिए भेजा गया था जहां अदम्य साहस दिखाते हुए 7 जुलाई, 1999 को वे जंग में शहीद हो गए। इन्हें मरणोपरान्त इनके साहस और पराक्रम के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
Independence Day Special: ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव
योगेंद्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर्स के साथ कार्यरत कमांडो प्लाटून ‘घातक’ का हिस्सा थे। इस प्लाटून ने 4 जुलाई, 1999 के शुरुआती घंटों में टाइगर हिल पर तीन सामरिक बंकरों पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद योगेंद्र सिंह यादव अपनी मर्जी से चट्टानों पर चढ़ गए और मौके को देखते हुए वहां पर रस्सी बिछा दी। लेकिन दुश्मनों को इस बात की भनक लग गई थी। जिसके बाद उन्होंने गोलीबारी शुरू कर दी, इसमें भारतीय सेना के 2 जवान शहीद हो गए थे। लेकिन योगेन्द्र सिंह ने सीने पर 2 और कंधे पर एक गोली लगने के बावजूद चलते रहने की ठानी।
उसी घायल अवस्था में वे दुश्मनों के बंकर में घुस गए और ग्रेनेड से चार पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद बटालियन के बाकी सिपाहियों को चट्टान पर चढ़ने का मौका मिल गया और टाइगर हिल पर कब्जा करने में भारतीय सेना कामयाब हो गई थी। इस साहस के लिए 4 जुलाई, 1999 को उच्चतम भारतीय सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से इन्हें सम्मानित किया गया था। यह पहले फौजी थे जिन्हें महज 19 साल की उम्र में यह पुरस्कार मिला था।
Independence Day Special: लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे का जन्म 25 जून, 1975 को उत्तर प्रदेश में हुआ था। मनोज का दाखिला पुणे के पास खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में हो गया था।
इसके बाद इन्हें 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंट का पहला वाहनी अधिकारी बनाया गया। 3 जुलाई, 1999 को कश्मीर में हो रहे कारगिल युद्ध के दौरान वे वीरगति को प्राप्त हो गए। इनकी वीरता के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से इन्हें सम्मानित किया गया था।
Independence Day Special: ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाता था। दरअसल, भारत-पाक के विभाजन के समय इन्होंने मुस्लिम अधिकारियों के साथ पाक जाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद वो अपने आखिरी सांस तक भारतीय सेना में बने रहे। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ते हुए 3 जुलाई, 1948 को शहीद हो गए थे।
इसके बाद उन्हें दुश्मन के सामने असाधारण बहादुरी दिखाने के लिए भारत के दूसरे सैन्य पदक महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। जानकारी के अनुसार यदि युद्ध के दौरान यह शहीद न हुए रहते तो यह देश के पहले मुस्लिम सेनाध्यक्ष होते।
Independence Day Special: अर्जन सिंह
मार्शल ऑफ द एयर फोर्स अर्जन सिंह का पूरा नाम अर्जन सिंह औलख था। 1964 से 1969 तक यह भारतीय वायुसेना के प्रमुख पद पर आसीन रहे थे। 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान सफलतापूर्वक वायुसेना की कमान संभालने के लिए इन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
इसके बाद 1966 में इन्हें एयर चीफ मार्शल बना दिया गया था। वायु सेना से रिटायर होने के बाद वे सरकार के राजनयिक और परामर्शदाता रहें, इसी के साथ 1989 से 1990 तक यह दिल्ली के उपराज्यपाल के पद पर भी आसीन रहें। 16 सितंबर, 2017 को 98 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया।
Independence Day Special: अब्दुल हमीद
वीर अब्दुल हमीद भारतीय सेना की 4 ग्रेनेडियर में एक सिपाही थे। 1965 में जब पाकिस्तानी सेना ने भारत के एक गांव आसल उत्ताड़ पर हनला कर दिया था तब भारतीय सेना के पास कोई बड़ा हथियार या टैंक न था। ऐसे में वीर अब्दुल हमीद ने अपनी गन माउन्टेड से पाकिस्तान के पैटन टैंक को तबाह कर दिया जिसे उस समय में अजेय समझा जाता था।
बताया जाता है कि वीर अब्दुल हमीद ने अपनी गन माउन्टेड से पैटन टैंकों की कब्रगाह बना दी थी। सभी पाकिस्तानी वहीं से भागने लगे थे तभी इनकी जीप पर एक गोला आ गिरा और यह जख्मी हो गए। इनको इलाज के लिए भर्ती कराया गया जहां 8-9 सितम्बर की रात इनका निधन हो गया।
Independence Day Special: फील्ड मार्शल मानेक शॉ
फील्ड मार्शल मानेक शॉ का पूरा नाम सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मासेकशॉ था। इन्हें 1969 में सेनाध्यक्ष बनाया गया था। इसके बाद 1971 में इनके नेतृत्व में भारत-पाक के युद्ध में भारत की शानदार जीत हुई। इस जीत के बाद बांग्लादेश बना। भारतीय सेना को अपनी जिंदगी का अहम पल देने के बाद वे वृद्धावस्था के दौरान कोमा में चले गए जिसके बाद 27 जून, 2008 को इनका स्वर्गवास हो गया।
Independence Day Special: ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी का परिवार काफी लंबे समय से भारत की सेवा कर रहा था। इनके दो चाचा भी भारतीय वायुसेना के ऑफिसर थे। कुलदीर सिंह ने 1962 में वायुसेना ज्वाइन की। उन्होने ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेदमी, चेन्नई से कमीशन प्राप्त किया और पंजाब रेजिमेन्ट की 23वीं बटालियन में शामिल हुए। 1965 के युद्ध में उन्हें पश्चिमी सेक्टर में तैनात किया गया था।
इन्होंने लोंगावाला के प्रसिद्ध युद्ध का नेतृत्व किया जिसके लिए इन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। इन्हें महावीर चक्र के साथ परमवीर चक्र और विशिष्ट सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया है। बॉलीवुड की मशहूर फिल्म ‘बॉर्डर’ में अभिनेता सन्नी देओल ने ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह का किरदार निभाया है।
Independence Day Special: कैप्टन विक्रम बत्रा
कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे। विक्रम बचपन से ही आर्मी ऑफिसर बनना चाहते थे। विक्रम सीडीएस के द्वारा भारतीय सेना में शामिल हो गए। दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण खत्म हो जाने पर उन्हें 6 दिसम्बर, 1997 को जम्मू के सोपोर इलाके में सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त किया गया था। 1 जून, 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया था।
Independence Day Special: हम्प और राकी नाब जीतने के बाद इन्हें लेफ्टिनेंट से कैप्टन बनाया गया था। जिसमें इनकी वीरता को बखूबी दर्शाने का प्रयास किया गया है। कारगिल युद्ध के दौरान इन्हें ‘शेरशाह’ कोड नेम दिया गया था। 7 जुलाई, 1999 को मैदान-ए-जंग में यह शहीद हो गए। इन्हें मरणोपरान्त भारत के सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। बॉलीवुड में इनपर आधारित फिल्म ‘शेरशाह’ बनाई गई है जिसमें इनकी बहादुरी को बखूबी दर्शाने की कोशिश की गई है।
Independence Day Special: कैप्टन हनीफुद्दीन
कैप्टन हनीफुद्दीन का जन्म 23 अगस्त, 1974 को दिल्ली में हुआ था। कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन घुसपैठियों को रोकने के लिए 6 जून, 1999 को मिशन थंडरबॉल्ट शुरू किया गया था। इसे 11वीं राजपुताना राइफल्स की एक टुकड़ी ऑपरेट कर रही थी जिसे कैप्टन हनीफुद्दीन लीड कर रहे थे।
Independence Day Special: लद्दाख के तुरतुक एरिया में 18,500 फीट की सर्द हवाएं भी इनके साहस को कमजोर न कर सकी। इनके मिशन का दुश्मनों को पता लग गया, वे लगातार हनीफुद्दीन पर गोलियां बरसाने लगे। गोलियां लगने के बावजूद वे आगे बढ़ते रहे। अपनी टीम को सुरक्षित स्थान पर भेजकर वे दुश्मनों का ध्यान भटकाते रहे और इसी दौरान लड़ते-लड़ते वे शहीद हो गए। महज 25 साल की उम्र में इन्हें इनके अदम्य साहस से टीम के सभी सदस्यों की जान बचाने और मिशन को सफल करने के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
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