Mallikarjun Kharge
Mallikarjun Kharge

कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष के लिए 24 साल बाद चुनाव हुए और इस चुनाव के बाद पार्टी को एक गैर गांधी अध्यक्ष पार्टी को मिला है। मल्लिकार्जुन खड़गे. खड़गे जी 80 साल के हैं, कांग्रेस का दलित चेहरा हैं…और विपक्ष की मुखर आवाज रहे हैं। उनके चुनाव जीतने से कांग्रेस को एक उम्मीद जगी है – बेहतर भविष्य की….पार्टी को एकजुट करने की ….अपनी खोइ जमीन वापस पाने की। लेकिन नए नवेले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की राह में रोड़े कम नहीं हैं। भविष्य में मल्लिकार्जुन खड़गे यदि एक एक कर इन मुश्किलों को दूर कर पाएं तो उनके साथ साथ , कांग्रेस पार्टी के लिए यह चीज संजीवनी का काम करेगी।

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तस्वीर में गांधी जी, सुभाष चंद्र बोस से बातें करते हुए, सरदार वल्लभ भाई पटेल भी साथ में हैं

देश को जब 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली तब महात्मा गांधी ने इच्छा जताई थी कि कांग्रेस का अध्यक्ष कोई दलित हो। उनका मानना था कि इससे देश में दलितों विषयक मुद्दों पर बेहतर काम हो सकेगा। हालांकि, उस समय ऐसा नहीं हुआ। लेकिन आजादी के करीब दो दशक बाद 1970 में बाबू जगजीवन राम पहले दलित थे जो कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। अब 1970 के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे के रुप में कांग्रेस को फिर से एक दलित अध्यक्ष मिला है। ऐसे में एक बार फिर कांग्रेस दावा कर सकती है कि उसने ऐसा करके महात्मा गांधी का सपना पूरा किया है। वैसे कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के संघर्ष की कहानी आप सुनेंगे तो दंग रह जाएंगे। एक दिन का नहीं है उनका संघर्ष। बचपन से संघर्ष औऱ विपरीत परिस्थितियों को झेल कर उन्होंने यह मंजिल पाई है।

खड़गे कर्नाटक के जिस गांव में पैदा हुए, वहां आजादी के पहले कर्नाटक में निजाम की हुकूमत थी। बंटवारे के बाद उनके गांव वरवट्टी में भी हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क गए। इस गांव के एक घर में एक पांच साल के बच्चे के सामने उसकी मां को जला दिया गया। बच्चा देखता रह गया था। बच्चे के पिता उसे बचाकर गांव से दूर लेकर चले गए। महीनों जंगलों में रहे। बाद में मजदूरी करके अपने बच्चे को पाला पोसा और पढ़ाया। बच्चा बड़ा होकर अपने जिले का पहला दलित वकील बना। फिर यूनियन लीडर, फिर विधायक, कर्नाटक सरकार में मंत्री, फिर सांसद, केंद्र सरकार में मंत्री और अब कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष। मल्लिकार्जुन खड़गे ने तमाम बाधाओं को पार कर यह मुकाम हासिल किया है।

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ल्लिकार्जुन खड़गे की एक पुरानी तस्वीर, तब कोट-पैंट पहनना उन्हें पसंद था

लेकिन कांग्रेस अधयक्ष बनना भी आज की तारीख में बडी चुनौती है। नए अध्यक्ष की सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है, पार्टी पर अपनी धाक जमाना। राजनैतिक हलकों में मानना है कि असली ताक़त गांधी परिवार के हाथों में ही रहेगी, अध्यक्ष का ‘रिमोट कंट्रोल’ सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी के पास होगा। रिमोट कंट्रोल वाली बात इसलिए भी की जा रही है क्योंकि मल्लिकार्जुन खड़गे गाँधी परिवार के क़रीबी माने जाते हैं । अध्यक्ष पद के चुनाव से पहले लोगों का कहना था कि अध्यक्ष पद का चुनाव केवल एक मज़ाक़ है और खड़गे… गाँधी परिवार के केवल एक ‘दरबारी’ हैं। वर्तमान में मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए इस छवि को तोड़ना सबसे बड़ी चुनौती है।

खड़गे जी के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है कांग्रेस पार्टी से जिन दलितों का मोहभंग हो गया है उनकी फिर से वापसी। 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के सबसे प्रमुख दलित चेहरों में से एक हैं और अक्सर पार्टी की ओर से दलित मुद्दों पर प्रखर आवाज बनते रहे हैं। उनसे पार्टी को उम्मीद होगी कि उनके अध्यक्ष बनने के बाद दलित वोट बैंक पार्टी से जुड़ेगा। अगर मल्लिकार्जुन खड़गे अब कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं तो उनकी पूरी कोशिश होगी कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से रूठे दलित वोटों की वापसी करवाई जाए. आजादी के बाद कई सालों तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही… दलित वोट का भी बड़ा हिस्सा पार्टी के खाते में गया. लेकिन फिर राजनीति ने करवट ली, जमीन पर समीकरण बदले और काशीराम, मुलायम, मायावती जैसे नेताओं ने यूपी की सियासत में अपनी पकड़ मजबूत की. फिर दलित वोटबैंक पर मायावती का दबदबा रहा…ऐसे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को उम्मीद है कि उनके अध्यक्ष बनने से दलित और पिछड़े समाज के वो लोग जो देश की राजनीति में मायावती और अन्य दलित नेताओं के उभार से पार्टी छोड़ कर चले गए थे, वो वापस लौट जाएँगे। यदि ऐसा हुआ तो यह खड़गे की बड़ी उपलब्धि होगी और कांग्रेस पार्टी के लिए भी शुभ संकेत माना जाएगा।

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मल्लिकार्जुन खड़ेगे गांधी-मूर्ति को माला पहनाते हुए

खड़गे जी की चुनौती यह भी है कि युवाओं को वो आगे कैसे लेकर आते हैं और पार्टी से परिवारवाद के तमगे को कैसे दूर करते हैं। सवाल अब यह है कि खड़गे संगठन में क्या परिवर्तन करेंगे…. कांग्रेस की एक डिसीजन मेकिंग बॉडी है, जिसको कांग्रेस कार्य समिति कहते है, तो क्या CWC के लिए भी चुनाव होगा? क्या राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी चुनाव किए जाएंगे? क्या जो विभिन्न संगठन है, जैसे महिला कांग्रेस है, युवा कांग्रेस है क्या इनमें भी चुनाव कराया जाएगा? लोग इन पर खड़गे जी की राय जानना चाहेंगे कि वो क्या करना चाहते हैं?

निकट भविष्य में होने वाले राज्यों में चुनाव को लेकर मलिकार्जुन खड़गे के सामने जो चुनौतियां हैं वह भी कम बड़ी नहीं हैं…. राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव एक तरह से कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा के माफिक हैं… कर्नाटक तो खड़गे जी का गृह प्रदेश है। राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के तहत वहां पर एक महीने से पद यात्रा भी कर रहे हैं। वहां अच्छा करने की खड़के जी के ऊपर एक बड़ी चुनौती है। राजस्थान में भी अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच आलाकमान की तमाम कोशिशों के बावजूद सुलह की कोई गुंजाइश नहीं दिखती है ….. अब मलिकार्जुन खड़गे जी की काबिलियत और अनुभव पर यह निर्भर करता है राजस्थान के विवाद को किस तरीके से सुलझा पाते हैं….. गुजरात में चुनाव की गहमागहमी शुरु हो गई है लेकिन पार्टी लग रहा है रेस बाहर है…. कांग्रेस पार्टी के लिए न सिर्फ गुजरात में बल्कि पूरे देश में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी एक बड़ी चुनौती बनते जा रही है…. ऐसे में इन सारी चुनौतियों के बीच खड़गे साहब का अनुभव है, लंबा करियर है, इतने बड़े नेता हैं, देखने वाली बात यह होगी की इन सब चीजों को लेकर वो कांग्रेस को कितना आगे बढ़ाते हैं।

कुछ पुराने कांग्रेसियों को आज भी यह कहते सुना जा सकता है कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद कांटो भरा ताज है…नए नवेले अध्यक्ष बने मलिकार्जुन खड़गे के सामने जिस तरीके से एक से बढ़कर एक चुनौतियां हैं उन से पार पाना.. सचमुच कांटो भरे ताज पर बैठने जैसा है। अब यह मलिकार्जुन खड़गे जी की काबिलियत ही होगी कि वह अपने राजनीतिक अनुभव, अपने सहयोगियों और शुभचिंतकों के बूते अपनी पार्टी की खोई हुई जमीन को फिर से हासिल कर पाएं।

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