Environment News: कुमाऊं में नदियों के संरक्षण की थीम पर मनाया ‘Harela’, हरियाली और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है ये पर्व

Environment News: पूरे उत्‍तराखंड में करीब 15 लाख पौधे रोपे जाने का लक्ष्य रखा गया है। जिनमें 50 प्रतिशत फलदार पौधे होंगे। अभियान की शुरुआत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पौधरोपण कर की। नदियों के संरक्षण एवं नदियों के पुनर्जीवन थीम पर इस वर्ष हरेला पर्व मनाया जा रहा है।

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Environment News: Harela Festival.

Environment News: मशहूर कुमाऊंनी पर्व हरेला हालही में मनाया गया है। हरेला शब्‍द यानी हरियाली का प्रतीक। ये पर्व उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में नई फसल के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत मानसून के शुरू होते ही होती है। ये पूरे कुमाऊं क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।

देवभूमि उत्तराखंड में हरेला हर वर्ष सावन के शुभारंभ का भी संकेत देता है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हरेले के मौके पर दिल्‍ली और उत्‍तराखंड में विभिन्न समाजों, संघों और सरकार की ओर से पौधरोपण किया गया। हरेला पर्व पर पर इस बार पूरे उत्‍तराखंड में करीब 15 लाख पौधे रोपे जाने का लक्ष्य रखा गया है।

जिनमें 50 प्रतिशत फलदार पौधे होंगे। अभियान की शुरुआत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पौधरोपण कर की। नदियों के संरक्षण एवं नदियों के पुनर्जीवन थीम पर इस वर्ष हरेला पर्व मनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विकास एवं पर्यावरण में संतुलन होना जरूरी है।इस मौके पर मुख्यमंत्री ने समस्‍त प्रदेशवासियों हरेला पर्व की शुभकामनाएं दीं।इसके साथ ही लोगों को पर्यावरण संरक्षण को संस्कृति से जोड़ने का संदेश भी दिया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हरेला पर्व के तहत एक माह तक वृक्षारोपण अभियान चलाया जाएगा। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में निरंतर प्रयासों की जरूरत है। प्रत्येक जनपद में जल स्रोतों एवं गधेरों के पुनर्जीवन एवं संरक्षण के लिए कार्य किए जाएंगे। आने वाली पीढ़ी को शुद्ध पर्यावरण मिले, इसके लिए पर्यावरण संरक्षण सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। देवभूमि उत्तराखंड धर्म, अध्यात्म एवं संस्कृति का केंद्र है।

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Environment News: Harela Festival.

Environment News: पारंपरिक होने के साथ प्रकृति पूजा भी है हरेला

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संपूर्ण कुमाऊं क्षेत्र में हरेला मनाने की तैयारी करीब 10 दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। करीब 5 से 7 प्रकार के बीजों को साफ कर धोया जाता है। स्‍नान आदि से शुद्ध होने के बाद सभी अनाजों को छोटे पत्‍तलों से निर्मित टोकरियों में बोया जाता है। इसके बाद प्रतिदिन सिंचाई और कभी गुड़ाई भी की जाती है।

इस पर्व को सदैव अच्छी फसल और घरों में सुख-समृद्धि लाने की आशा के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्‍यता है कि टोकरी में अगर भरभरा कर अनाज उगा है तो इस बार की फसल अच्छी होगी। हरेला पर्व के दिन मंदिर की टोकरी में बोया गया अनाज काटने से पहले कई पकवान बनाकर देवी देवताओं को भोग लगाया जाता है। जिसके बाद पूजा की जाती है।

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Environment News: Harela Festival.

देखा जाए तो हरेला मानव और पर्यावरण के अंतरसंबंधों का अनूठा पर्व है। हरेला पर्व पर फलदार व कृषि उपयोगी पौधरोपण की परंपरा है। हरेला केवल अच्छी फसल उत्पादन ही नहीं, बल्कि ऋतुओं के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है। श्रावण माह में मनाये जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता ​है। जो कि एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। करीब 4 से 6 इंच लंबे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है। इसे पूजा जाता है और परिवार के सभी सदस्य अपने माथे में लेकर सम्मान करते हैं।

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