कंगना रनौत बंगले की तोफड़फोड़ को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने जमकर बीएमसी की क्लास लगाई। कोर्ट ने कहा कि कोई व्यक्ति विशेष कुछ भी मूर्खतापूर्ण बात कहे। राज्य द्वारा समाज पर बाहुबल का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। साथ ही कोर्ट ने बंगले में हुई नुकसान की भरपाई के भी आदेश दिए हैं।

बंगले की तोड़फोड़ को लेकर कोर्ट ने स्वीकार किया है कि ये तोड़फोड़े कंगना को डराने-धमकाने के मकसद से की गई है। महाराष्ट्र सरकार के इस हरकत को कोर्ट ने गैरजिम्मेदराना करार दिया है।
कोर्ट ने कहा कि कंगना को हर्जाना दिए जाने के लिए दफ्तर में हुई तोड़फोड़ का मूल्यांकन किया जाए और इस मूल्यांकन की जानकारी कंगना और बीएमसी दोनों को होनी चाहिए।
हर्जाना जो भी हो उसकी भरपाई बीएमसी को करनी होगी। कोर्ट के अनुसार ऑफिस को दोबारा बनाने के लिए कंगना बीएमसी से आवेदन करेंगी। कोर्ट ने ये भी कहा कि वह बीएमसी को इस बात का भी आवेदन दे सकती हैं कि दफ्तर के जो हिस्से टूटे नहीं हैं उन्हें दोबारा से सुव्यवस्थित किया जाए। कोर्ट का ये फैसला दफ्तर में हुई तोड़फोड़ के बाद करीबन 2 महीने तक चली बहसों के बाद सुनाया गया है।
कंगना के बयान पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, कंगना द्वारा दिए गए बयानों का कोर्ट समर्थन नहीं करता है। कंगना को सोच समझ कर बोलना चाहिए। पर यहां बात टूटे हुए बंगले की हो रही है। ट्वीट की बात नहीं हो रही है। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा की इस तरह के बयान गलत हैं पर इसे नजर अंदाज करना ही बेहतर होगा।

कोर्ट ने तस्वीरों और अन्य सामग्रियों का विश्लेषण किया जिनमें संजय राउत धमकी दे रहे हैं. सामना में छपी सामग्री और न्यूज चैनल पर चलाई गईं वीडियो क्लिप. इमारत को 40 प्रतिशत तक तोड़ा जाना और सामना द्वारा छापी गई हेडलाइन ‘उखाड़ दिया’ पर गौर किया. कोर्ट ने बीएमसी को जमकर फटकार लगाई है।