हिंदी सिनेमा और कश्मीर की जुगलबंदी – परदे पर कभी वादियों की खूबसूरती तो कभी आतंकवाद की कड़वी हकीकत

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Kashmir And Bollywood
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– श्वेता राय

नई दिल्ली। बेनज़ीर ,बेमिसाल Kashmir ,जिसकी वादियों में जन्नत है, जो हमारे देश का ताज है। जिसकी सुंदरता के बारे में कभी किसी फारसी कवि ने कहा था “गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त/ हमी अस्तो ,हमी अस्तो ,हमी अस्त” यानि कि धरती पर अगर कहीं फिरदौस यानि स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है। सचमुच में कश्मीर से दो चार होते ही ऐसा महसूस होता है कि ऐसी खूबसूरती तो कल्पनाओं में ही सोची जा सकती है। चारों ओर बिछी हुई बर्फ की सफेद चादर, देवदार, चीड़ के पेड़। उन पेड़ों की पत्तियों से धीमे-धीमे गिरते बर्फ के नन्हें-नन्हें टुकड़े यहां आने वालों को नई दुनिया का आभास कराते हैं। जिधर नजर दौड़ाएं, बस बर्फ ही बर्फ की सफेद अनछुई चादर बिछी दिखती हैं।

कम ही लोग जानते होंगे कि कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि के नाम पर रखा गया था। सुप्रसिद्ध कवि, नाटककार और इतिहासकार कल्हण ने ‘राजतरंगणी’ में कश्मीर का इतिहास लिखा है । कश्मीर की खूबसूरती और दिलकश अंदाज इसकी आबोहवा में घुल सा गया है।

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कश्मीर की वादियों में जन्नत का एहसास होता है

Bollywood और Kashmir का रिश्ता

कश्मीरियत से रंगे पुते लोग कश्मीर के एहसास को दोगुना कर देते हैं । कश्मीर की लोक संस्कृति, सदियों से अनेक तहजीबों के मेल से बनी है जिसे आज हम कश्मीरियत कहते हैं वो बेहद निराली है। कश्मीर में ऐसी कई जगहें हैं जहां दुनिया भर के कोने-कोने से आए सैलानी इसकी खूबसूरती निहारने आते हैं। चश्मा-ए-शाही, शालीमार बाग, डल झील, गुलमर्ग, पहलगाम, सोनमर्ग और अमरनाथ की पर्वत गुफा तथा जम्मू के निकट वैष्णो देवी मंदिर,पटनी टाप यहां के प्रमुख पर्यटन केंद्र हैं। गुलमर्ग में आइस स्केटिंग केन्द्र, जो बारामूला के दक्षिण में पीर पंजाल श्रेणी में स्थित है और पहलगाम, जो लिद्दर नदी के किनारे स्थित है। कश्मीर आने वाला हर पर्यटक एक बार डल झील की बोट सवारी का मौका लेने से नहीं चूकता। कभी आप भी डल झील की सैर करिए और इस जगह के नजारों का लुत्फ उठाइए।

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बॉलीवुड सितारों की पहली पसंद हुआ करती है कश्मीर

कश्मीर और बॉलीवुड का पहला संपर्क…

हमारा बॉलीवुड भी कश्मीर की इन वादियों से कैसे महरूम रहता। उसे तो इस जन्नत में आना ही था और तो और वो इस जन्नत की खूबसूरती के बेमिसाल रंगों को दर्शकों के सामने लेकर आया जिसमें कश्मीर का वो नजारा था जिसमें हर कोई खो जाना चाहता था,कभी ये लोगों के इश्क का गवाह बना तो कभी जन्नत की वो हकीकत बना जिसने लोगों की पहली चाहत में उन्हें कश्मीर ही दिखा दिया। फिल्में हमेशा से ही हमारे समाज का दर्पण रही हैं। यह अमूमन ही होता है कि अपनी थकान और चिंता को दूर करने के लिए आदमी किसी सुंदर मनोहारी जगह की सैर करता है और उसे सुकून मिलता है।

कश्मीर की खूबसूरती को बॉलीवुड ने सबके सामने रखा

इस बात को ध्यान में रखते हुए फिल्मों के निर्माता निर्देशकों को यह ख्याल आया कि सिनेमा हॉल पहुंचे दर्शकों को उनकी परेशानी दूर करने के लिए प्राकृतिक नजारों के अच्छे गीत-संगीत से सुकून पहुंचाया जाए। या यूं कहें कि चल फिल्मों की शुरुआत से ही निर्देशकों ने दर्शकों की इस नब्ज को पकड़ लिया था और एक से बढ़कर एक खूबसूरत दृश्यों को सिनेमा के कैमरे में कैद करना शुरू कर दिया। ऐसे में कश्मीर की खूबसूरती सिनेमा के निर्देशकों, कलाकारों आदि से कैसे बचती और कब तक बचती और इस तरह फिल्मों से कश्मीर से संबंधों की शुरुआत हुई।

1963 में आयी ”आज और कल” फिल्म का वो खूबसूरत गाना ”ये वादियां ये फिजाएं बुला रही हैं” जो कश्मीर की हसीं वादियों में फिल्माया गया। साहिर की कलम से निकला गीत और रफी की आवाज में जैसे कह रहा हो कि खामोशियों की सदाए बुला रही हैं तुम्हें। फिर तो सिलसिला चल पड़ा। हिन्दी फिल्मों का हर निर्माता निर्देशक अपनी फिल्मों के लिए आउटडोर शूटिंग लोकेशन की लिस्ट में कश्मीर का नाम सबसे उपर रखते। गर्मियों में जब पूरे हिंदुस्तान में चिलचिलाती गर्मियों होती हैं तो उस वक्त कश्मीर उस गर्मी से बिलकुल अछूता रहता है। ऐसे में सितारों की विशेष डिमांड होने लगी कि उनकी आउटडोर शूटिंग कश्मीर में ही हो। इसका फायदा भी हुआ।

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कहीं बर्फ की चादरें तो कहीं हरे-भरे घास के मैदान

कश्मीर में फिल्माए गए दृश्य फिल्मों की जान होते थे। गाने जो कश्मीर की डल झील में फिल्माए गए या फिर उसके सदाबहार बागों में फिल्माए जाते उसे देखते वक्त दर्शकों को लगता था मानो मुफ्त में कश्मीर की सैर पे आए हों। ऐसी फिल्में हिट भी काफी हुई। ”कश्मीर की कली” का गाना ”दीवाना हुआ बादल” और ”चांद सा रोशन चेहरा” देखकर तो हर किसी का दिल कश्मीर के नजारों में खो जाने के लिये मचलने लगा तो वहीं ”जब-जब फूल खिले” का गाना ”ये समां समां है प्यार का”। नये जोड़े की पहली तमन्ना बन गया कि वो अपने नये जीवन की शुरूआत इन्हीं हसीं और खूबसूरत वादियों से करें। बॉलीवुड में एक वक्त तो ऐसा आया कि हर दूसरी फिल्म का थोड़ा या ज्यादा हिस्सा कश्मीर की खूबसूरत वादियों में जरूर फिल्माया जाने लगा। इससे कश्मीर का पर्यटन भी काफी फला-फूला। भारतीय सिनेमा को तो फायदा हुआ ही।

इस तरह सिनेमा ने देश के अन्य हिस्से के लोगों को भी कश्मीर और कश्मीरियत से अनायास ही जोड़ दिया। दर्शकों के दिलो दिमाग में कश्मीर की खूबसूरती का आलम ही था कि एक दौर वह भी आया कि हर नया शादीशुदा जोड़ा हनीमून के लिए कश्मीर जाने लगा। 60-से 70 के दशक में कश्मीर के हर नजारे को अपने कैमरे में कैद करने के लिये बॉलीवुड हमेशा ही बेताब दिखा। उस समय के सभी डायरेक्टर्स की पहली पसन्द ही कश्मीर की खूबसूरत वादियां ही हुआ करती थीं। ”जंगली” ,”कश्मीर की कली” कई ऐसी कई फिल्में आयी जिसमें न केवल वहां की वादियों को बल्कि कश्मीर की रवायतों और वहां के बर्फीले हुस्न को दिखाने की भी कामयाब कोशिश की गयी जो ओस की बूंद की तरह खूबसूरत और नायाब था लेकिन जिस डायरेक्टर ने कश्मीर की हर फिजा में प्यार की रूमानियत को घोला वो थे यश चोपड़ा।

उन्होंने कश्मीर को उस शायर की गज़ल की तरह पेश किया जो बेनजीर और बेमिसाल थी।

कश्मीर की घाटियों का हर कोई हो जाता है दिवाना

सत्तर के दशक में बॉलीवुड में रुमानियत का काफी जोर रहा। रोमांस पर आधारित फिल्मों का बोलबाला शुरू हो गया। राजेश खन्ना जैसे सुपर स्टार इसी दौर की पैदाइश रहे। रोमांटिक फिल्में बनाने वाले भी एक से एक धुरंधर हुए। यश चोपड़ा को तो परदे पर प्यार के अलग-अलग पहलुओं को फिल्माने में महारत हासिल थी और ऐसे सभी फिल्मकारों की पसंदीदा जगह कश्मीर ही थी। इस दौर की शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो जिसकी यूनिट कश्मीर में शूटिंग करने ना पहुंची हो।

यश चोपड़ा को तो कश्मीर का एक्सपर्ट माना जाने लगा। नूरी फिल्म का गाना “आजा रे नूरी” ने सभी के दिलों के छुआ और बेहद हिट रहा। सत्तर के दशक के दौर में ही जब रोमांटिक फिल्में चरम पर थी उसी दौर में अमिताभ की एंट्री हुई। एक एंग्री यंग मैन के रूप में परदे पर आग बरसाती अमिताभ की छवि ने सिनेमा के नए प्रतिमान गढ़े। लेकिन कहानी की डिमांड हो या पूरी फिल्म ही हो, दो दिलों के प्यार के उतार-चढ़ाव को दर्शाने वाली फिल्म हो तो परदे पर अमिताभ रोमांस भी जबरदस्त करते और उनके ऐसे दृश्यों में इस दौर में भला कश्मीर कैसे दूर रहता।

साहिर का “कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है” गाना जब अमिताभ और राखी पर फिल्माया गया तो हर कोई वहां के रोमांटिक नजारों का मुरीद हो गया और हर युवा की कल्पनाओं का संसार मानों जैसे साहिर के अल्फाजों और कश्मीर के नजारों को बुनने लगा। फिल्म ”सिलसिला” का गाना ”ये कहां आ गए हम” में अमिताभ और यश चोपड़ा के करिश्माई मेल ने कश्मीर के लोकेशनों की प्रसिद्धि को चरम पर पहुंचा दिया।

श्री देवी जो अब हमारे बीच नहीं है को भी कश्मीर की खूबसूरती खूब रास आती थी। उन्होंने भी यश चोपड़ा के साथ कई फिल्मों में काम किया था और कहते हैं कि वो काम इस शर्त पर करती थीं कि फिल्मों की अधिकांश शूटिंग कश्मीर में ही की जाएगी। आज यह सच है कि चोपड़ा की चांदनी जैसी फिल्म यदि कश्मीर में शूट नहीं होती तो अधूरी सी लगती। इस दौर में हालांकि कई निर्माता निर्देशक और कुछ नए की तलाश में विदेश जाने लगे लेकिन बॉलीवुड में कश्मीर के प्रति क्रेज जरा भी कम नहीं हुआ।

पूरी की पूरी फिल्म यूनिट्स यहां पहुंचती रही। रणवीर कपूर और दीपिका पादुकोण जैसे नई पीढ़ी के कलाकार भी कश्मीर की खूबसूरती के कायल हो गए हैं और कई फिल्मों के गाने यहाँ फिल्माए गये। हम कह सकते है कि कश्मीर और इसकी खूबसूरती एक शराब की पुरानी बोतल की तरह है, जो जितनी पुरानी होते जाती है , सुरूर उतना ही खूब चढ़ता है।

कश्मीर की फिज़ा में आतंकवाद का ज़हर…

हिंदी फिल्मों की कश्मीर के साथ इस प्रेम कहानी में खलनायक की एंट्री भी हुई ।80 के दशक तक आते- आते कश्मीर में धीरे-धीरे आतंकवाद ने पैर पसारना शुरू कर दिया और इसका असर कश्मीर के साथ-साथ बॉलीवुड में भी दिखना शुरू हो गया। अब लोगों के सामने कश्मीर की एक अलग तस्वीर थी जो बेहद खतरनाक और डरावनी थी यहां के मासूमों को कुछ नापाक इरादों ने गलत राह दिखाकर यहां की फिज़ा में आतंकवाद का जहर घोलना शुरू कर दिया और इसी के साथ शुरू हुई उस स्वर्ग को खत्म करने की गहरी साजिश,हमारी फिल्मों ने इस पहलू को भी दिखाया और लोगों को ये संदेश देने की कोशिश की कि नफरत और हिंसा से कभी भी सही रास्ता नहीं मिलता है।

रास्ता अगर मिलता है तो वो शान्ति और सही राह पर चलने से ही मिलता है। कश्मीर और कश्मीरियत का शेष भारत के साथ घुलना-मिलना पाक में बैठे कुछ इस्लाम के ठेकेदारों को रास नहीं आ रहा था और फिर उनके नापाक इरादों ने कश्मीर की फिजा में जहर घोलने की शुरुआत की। जैसा कि हम आपको शुरुआत में ही बता चुके है कि बॉलीवुड की फिल्में हमेशा से समाज की सच्चाई को सामने लाती रही हैं। ऐसे में बदलते कश्मीर की तस्वीर भी बॉलीवुड के फिल्मों के जरिए दर्शको के सामने आने लगी।

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कश्मीर जाने वाला हर टूरिस्ट एक बार डल लेक जरूर जाता है

इस कड़ी में जो सबसे पहले फिल्म हमारे जेहन में आती है वो है मणि रत्नम की रोजा। वैसे ”रोजा” थी तो एक लव स्टोरी लेकिन इसमें कश्मीर में पैर पसारते आतंकवाद की जो झलक दिखाई गई उससे देशवासियों का दिल दहल गया। रोजा के बाद फिजा, मिशन कश्मीर जैसी फिल्में भी बड़ी गहराई और शिद्दत से आतंकवाद से लहूलुहान हुए कश्मीर के छलनी सीने को हमारे सामने दिखाती रहीं। इन सब के बीच कश्मीरियत कहीं खोता हुआ नजर आयी।

इस्लाम के नाम पर अलग कश्मीर की मांग उठने लगी। पाकिस्तान ने कश्मीर के भोले-भाले नौजवानों को भारत के खिलाफ भड़काना जारी रखा। कश्मीर में माहौल खराब करने के लिए अपने इलाके में इन नौजवानों के लिए कैंप भी लगाए। ऋतिक रौशन और संजय दत्त की फिल्म”मिशन कश्मीर”कश्मीर के बिगड़ते हालात के इस पहलू को बखूबी बयान करती है । फिल्‍म तहानका जिक्र भी ज़रूरी है जिसमें कश्‍मीर की एक कड़वी सच्‍चाई सामने आती है जब फिल्‍म का हीरो 8 साल का बच्‍चा आतंकियों के षडयंत्र का हिस्‍सा बन जाता है।

ये फिल्म इस बात को काफी करीब से दिखाती है कि कश्मीर के नाम पर भले ही वहां पर राजनैतिक सियासत काफी लम्बे वक्त से चली आ रही हो पर कश्मीर में बच्चों को आतंकवाद की क्या कीमत चुकानी पड़ रही है ये इस फिल्म के ज़रिये समझा जा सकता है, आतंकवाक की लड़ाई में मासूम बच्चों को आतंकवादी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। आमिर खान और काजोल की फिल्‍म ‘फना’ भी एक कश्‍मीर के आतंकी की कहानी है जो एक कश्‍मीरी अंधी लड़की के प्‍यार में बदलने लगता है। आमिर खान और काजोल देवगन की इस फिल्म में कश्मीरी युवा और फिदायीन आतंकवाद को दिखाया गया है। कुछ इसी तरह की हकीकत बयां करती फिल्म लम्हा भी थी जिसमें कश्मीर की समस्या को बड़ी गहराई से दिखाया गया है और यही नहीं कश्मीर में सेना के प्रति नफरत फैलाने वालों की सच्चाई को भी यहाँ फिल्म में बड़ी गहराई से दिखाया गया है कई बार तो ऐसा लगा कि कश्मीर में क्या कभी अमन शांति भी आएगी लेकिन भारतीय सेना का जज्बा कहिए या जूनून।

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सच में धरती पर जन्नत है कश्मीर

पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को हर बार रणनीति बना कर ईंट का जवाब पत्थर से दिया गया। भारतीय सेना के इस पहलू को भी हमारी सिनेमा में बखूबी दिखाया गया। जान देकर भी उन्होंने कश्मीर की एक एक इंच भूमि की रक्षा की। कारगिल फिल्म हो या लक्ष्य सभी में हमारे जांबाज़ सेना के शौर्य औऱ बलिदान को बखूबी दिखाया गया ।यह हमारी सेनाओं का ही मनोबल है कि अब फिर से कश्मीर में कई फिल्म निर्देशक आउटडोर शूटिंग करने आ रहे हैं। अब कश्मीर की फिजाओं में रौनक लौट रही है। धीरे-धीरे हमारी सरकार और सेना के अथक प्रयासों के जरिये आतंकवाद पर लगाम लगाने की कोशिश की जा रही है और यही वजह है कि फिल्मों में फिर से कश्मीर की खूबसूरत वादियों के खूबसूरत नज़ारों को एक बार फिर से देखने का मौका मिल रहा है जिसमें कश्मीर में लोगों के प्रति सबकी सोच भी बदल रही है अब वहाँ देशभर से डायरेक्टर अपनी फिल्मों को शूट करने आ रहे हैं और कश्मीर के उस अमनो चैन को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं जो कभी वहाँ की फिज़ाओं और वादियों में सुनाई दे रहा था।

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कश्मीर की खूबसूरती है कई गानों में लगे हैं चार चांद

इसी के साथ एक बार फिर हम बेनज़ीर बेमिसाल कश्मीर से रूबरू हो रहे हैं वाकई में ये तार्रूफ ही असली कश्मीर की पहचान है जहाँ पर कश्मीर की कश्मीरियत आज भी ज़िन्दा है। 2018 मे आयी मेघना गुलज़ार की फिल्म राज़ी ने एक बार फिर कश्मीर की वादियों के उस पहलू से लोगों को रूबरू कराया जिसमें अपने वतन के लिये जज़्बा है मोहब्बत है। इसकी कहानी एक स्पाई थ्रिलर की है की जिसमें दिखाया गया है कि आज भी कश्मीर के लोगों को अपने वतन भारत से बेहद प्यार है और इसके लिये वो कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं वहीं बजरंगी भाईजान में भी फिल्म का क्लाईमेक्स सोनमर्ग में शूट किया गया ।जो दिखाता है कि इंसानियत का रिश्ता सबसे बड़ा है ।रॉक स्टार का खूबसूरत गाना एक बार फिर हमें उसी पुराने कश्मीर की याद दिलाता है जो आज भी हमारी यादो में बसा हुआ है।

हालांकि यश चोपड़ा आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी फिल्म ”जब तक है जान” का जिक्र तो लाजिमी है 2012 में बनी ”जब तक है जान” फिल्म में एक बार फिर यश चोपड़ा का वो मैजिक दिखा जिसके लिये लोग उन्हें जानते हैं और इसके लिये भी उन्होने उसी खूबसूरत वादियों का सहारा लिया जिसकी फिज़ाओं में इश्क की अलग रोमानियत नज़र आती है 2012 में आयी फितूर में भी कश्मीर की खूबसूरत वादियों में बेपनाह मोहब्बत के सुरूर को जवाँ होते हुये दिखाया गया है जिसमें कश्मीर के नज़ारे तो लोगों का दिल जीत लेते हैं इसी के साथ कई और फिल्में हैं जो कश्मीर की फिज़ाओं में शूट हुयी और हिट भी रही। जिनमे ये जवानी है दिवानी ,हाईवे ,अय्यारी, students of the year फिल्में खास तौर से हैं।

जिन्होने एक बार फिर कश्मीर की उन्हीं खूबसूरत वादियों में खो जाने के लिये और बर्फ की सफेद चादर में लिपट जाने के लिये मजबूर कर देती हैं और पुराने दिनों की याद दिलाती है कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो वो कश्मीर है तो कई ऐसी फिल्में भी रहीं जिन्होनें कश्मीर के दर्द और उस हिस्से को दिखाया जिसे पूरे विश्व को जानना ज़रूरी था।

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कई फिल्मी गानों को हिट करने में कश्मीर की घाटियों का है सहयोग

विवेक अग्निहोत्री की The Kashmir Files और विदू विनोद चोपड़ा की फिल्म ”शिकारा” में कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार और नरसंहार को बड़े मार्मिक तरह से दिखाया गया है कि किस तरह आतंकवाद के दंश ने कई हंसते खेलते परिवार को तबाह कर दिया । आज कश्मीर में एक बार फिर से पुराने दिन लौट रहे हैं और वहाँ की फिज़ा में इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत की सुगंध पूरे कश्मीर में महकेगी।

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