Amrish Puri जैसे खलनायक सदियों में पैदा होते हैं

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Amrish Puri
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हिंदी सिनेमा के अमर खलनायकों में Amrish Puri का नाम अव्वल दर्जे में लिया जाता है। हिंदी सिनेमा की कल्पना बिना विलेन के कभी नहीं की जा सकती। सिनेमा के सफल होने का दारोमदार जितना हीरो के अभिनय पर निर्भर होता है उतना ही दमदार कैरेक्टर नेगेटिव रोल में भी होना चाहिए।

मसलन अगर 50 के दशक में बनने वाले फिल्मों की बात करें तो ‘मदर इंडिया’ में कन्हैया लाल, फिल्म ‘प्यासा’ में रहमान या फिल्म ‘आवारा’ में केएन सिंह ने जो विलेन के किरदार अदा किये वो आज भी जहन में उन फिल्मों में हीरो की अदाकारी से कम नहीं जान पड़ते हैं।

वहीं अगर हम 70 के दशक की बात करें तो ‘शोले’ के गब्बर यानी अमजद खान और फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ में रहमत खान का किरदार निभाने वाले अमरीश पुरी को भला कौन भूल सकता है।

Amrish Puri
Amrish Puri

हिंदी सिनेमा का विलेन फिल्म में ऐसा चरित्र होता है जिसकी क्रूरता, धूर्तता, गद्दारी, धोखेबाजी, बेईमानी, लालच, दुष्टता और चालाकी पर्दे पर वहशीपन को जन्म देती है, जिसके खिलाफ हीरो खड़ा होता है और दर्शकों का चहेता बन जाता है।

लेकिन सोचिए अगर हम फिल्मों से थोड़ा हटकर बात करें तो रामचरित मानस में तुलसी दास ने अगर हमारे सामने रावण की क्रूर और खल छवि का वर्णन नहीं किया होता तो क्या हम राम के विराट स्वरूप की कल्पना कर पाते।

Amrish Puri
Amrish Puri

असल में हीरो भी तभी बड़ा और महान होता है जब उसके सामने का विलेन भी उतना ही नीच और भ्रष्ट हो। सिनेमा में या कहें कि जीवन में अच्छाई का अस्तित्व तभी समझ में आता है जब उसके सामने उतनी ही असरदार बुराई भी मौजूद हो।

हिंदी सिनेमा के निर्माताओं ने शुरूआत से ही बात को बखूबी समझा है कि सिनेमा में केवल हीरो का होना काफी नहीं है, सिनेमा की सफलता के लिए जरूरी है कि विलेन को सामने रखते हुए हीरो के किरदार सफल बनाया जाए।

हिंदी सिनेमा में नायकों के साथ खलनायकों को बराबर का स्थान मिला। यही कारण है कि हिंदी सिनेमा के इतिहास में कुछ ऐसे दमदार खलनायक उभरे, जिन्हें हम आज भी उतनी ही शिद्दत से याद करते हैं।

Amrish Puri
Amrish Puri

सिनेमा के गुजरे दौर की अगर हम आज कि फिल्मों की तुलना करें तो कहीं ना कहीं आज की फिल्में इस मामले में बीते दौर के फिल्मों से कमतर लगती हैं क्योंकि इसमें कोई संदेह नहीं कि आज फिल्मों में जीवन, प्राण, रंजीत, अजीत, मदन पुरी, प्रेम चोपड़ा, कुलभूषण खरबंदा, एमबी शेट्टी (डायरेक्टर रोहित शेट्टी के पिता) जैसे खलनायकों की एक्टिंग कहीं दिखाई नहीं देती।

उस दौर के खलनायक अपनी आंखों से, खामोशी से और हावभाव से सीन में ऐसी अनुभूति पैदा करते थे कि उनकी अदायगी किसी एक्टिंग स्कूल से कम नहीं लगती है। वहीं आज के खलनायक पर्दे पर भी गंदा काम बड़े ही शराफत से करते नजर आते हैं।

यही वजह है कि आज के फिल्मों हीरो और विलेन के बीच जो टक्कर होती है वो काफी कमजोर नजर आती है या उसमें रोमांच का कोई पुट नहीं नजर आता है।

हालांकि फिल्मों का वो बीता हुआ सुनहरा दौर अब गुजर चुका है और शायद आज की युवा पीढ़ी उन खलनायकों की आदाकारी की कल्पना भी न कर सके। वैसे हर दौर अपने आप में अगल होता है और हर दौर की आपनी अलग स्टाइल होती है मगर सिनेमा के विलेन की बात जब भी आयेगी वो पुराना दौर हमेशा याद किया जाएगा।

सोचिए कि जिस तरह रामायण के कारण आज भी किसी बच्चे का नाम ‘रावण’ नहीं रखा जाता, ठीक उसी तरह आजादी के बाद हिंदी सिनेमा के कारण लगभग 4 दशकों तक लोगों ने अपने घरों में बच्चों का नाम ‘प्राण’ नहीं रखा।

उफ्फ क्या बला की एक्टिंग होगी कि लोग आज भी ‘मदर इंडिया’ में कन्हैया लाल के निभाये किरदार ‘सुखी लाला’ को पानी पी पी कर गालियां देते हैं।

Kanhaiya Lal and Nagris in Mother India
Kanhaiya Lal and Nagris in Mother India

आज हम बात करेंगे फिल्मों के सदाबहार खलनायक और चरित्र अभिनेता अमरीश पुरी के बारे में। आज के ही दिन 12 जनवरी 2005 को मिस्टर इंडिया के ‘मोगेम्बो’ ने अपनी एक्टिंग स्कूल को हमेशा के लिए बंद कर दिया था।

Amrish Puri पंजाब के नवांशहर में पैदा हुए थे

सिनेमा के पर्दे पर जिस अमरीश पुरी को देख दर्शक मन में गालियां देते थे वो 22 जून 1932 को पंजाब के नवांशहर में पैदा हुए थे। इनके पिता का नाम निहाल पुरी और मां का नाम वेद कौर था।

अमरीश पुरी 50 के दशक के मशहूर विलेन मदन पुरी के छोटे भाई थे। हिंदी सिनेमा के महान गायक कुंदन लाल सहगल अमरीश पुरी के चचेरे भाई थे।

Kundan Lal Sehgal
Kundan Lal Sehgal

चूंकि भाई मदन पुरी को कुंदल लाल सहगल ने फिल्म इंडस्ट्री में इंट्री करवाई थी। इसलिए परंपरा को निभाते हुए मदन पुरी ने भी वही काम किया अमरीश पुरी के साथ। 50 के दशक में अमरीश पुरी अपने भाइयों चमन पुरी और मदन पुरी के पास आ गये बंबई (मुंबई) सिनेमा में हीरो बनने के लिए।

भाई मदन पुरी ने मदद की और अमरीश ने एक्टिंग के लिए साल 1954 में अपना पहला ऑडिशन दिया लेकिन सख्त शक्ल के कारण फेल हो गये।

Amrish Puri with his family
Amrish Puri with his family

इसी दरम्यान अमरीश पुरी को एक बाला से मोहब्बत हो गई और 5 जनवरी 1957 को उन्होंने उर्मिला दिवेकर से शादी कर ली। अमरीश पुरी जल्द ही दो बच्चों को पिता हो गये। उनके बेटे का नाम राजीव पुरी और बेटी का नाम नम्रता पुरी है।

एक्टिंग में रिजेक्ट होने के बाद खाली हाथ बैठे अमरीश पुरी अब क्या करें, भाईयों ने यहां भी मदद की और 60 के दशक में कर्मचारी राज्य बीमा निगम में अमरीश पुरी की नौकरी लगवा दी लेकिन अमरीश पुरी का सिनेमा के लिए जोश ठंडा नहीं हुआ।

Amrish Puri
Amrish Puri

उसी दौर में इन्हें साथ मिला नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) के संस्थापक सदस्यों में से एक इब्राहिम अल्का जी का। उनकी सलाह पर अमरीश पुरी ने पृथ्वी थिएटर में जाना शुरू किया। नाटकों के दौरान जानमाने रंगकर्मी सत्यदेव दुबे से Amrish Puri की मुलाकात हुई। सत्यदेव दुबे की निगरानी में अमरीश पुरी ने पृथ्वी थियेटर में अपने अभिनय को निखारा।

अमरीश पुरी ने जिंदगी के 40 बसंत केवल एक्टिंग के संघर्ष में काट दिये। दो बच्चों के पिता भी बन गये थे लेकिन एक्टिग में अभी भी हाथ खाली था। उसी दौर में अभिनेता सुनील दत्त एक फिल्म बना रहे थे, जिसमें वो खुद हीरो थे लेकिन विलेन के लिए उन्हें एक नये चेहरे की तलाश थी।

यह बात किसी तरह से मदन पुरी के कानों तक पहुंची। उन्होंने फौरन दत्त साहब के पास अमरीश पुरी को भेजा। सुनील दत्त ने अमरीश पुरी से पूछा, ‘काम पूरा करोगे न भागोगे तो नहीं’। अमरीश पुरी ने कहा कि उन्हें तो एक्टिंग करनी है वो भला क्यों भागेंगे।

Amrish Puri
Amrish Puri

इस तरह से सुनील दत्त ने Amrish Puri को पहला ब्रेक दिया फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ में। साल 1971 में अमरीश पुरी की बतौर खलनायक पहली फिल्म रिलीज हुई ‘रेशमा और शेरा’। वैसे हिंदी से सिनेमा से पहले साल 1967 में अमरीश पुरी एक मराठी फिल्म ‘शंततु! कोर्ट चालू आहे’ में कैमरे के सामने आ चुके थे।

Amrish Puri ने ज्यादातर फिल्मों में विलेन का रोल किया

अमरीश पुरी ने ‘रेशमा और शेरा’ में जो अभियन की शुरू किया वो बदस्तूर फिल्म ‘हलचल’, ‘काडु’, ‘हिंदुस्तान की कसम’, ‘डाकू’, ‘बंदे’, ‘हमारे तुम्हारे’, ‘कुली’, ‘हीरो’, ‘मशाल’, ‘जागीर’, ‘आवाज़’, ‘कसम पैदा करने वाले की’, ‘मोहब्बत’, ‘मेरी जंग’, ‘अघात’, ‘सल्तनत’, ‘जानबाज़’, ‘एक और शिकार’, ‘नसीब अपना अपना’, ‘नागिन’, ‘मेरा धर्म’ जानी दुश्मन’, ‘लखन’ जैसी फिल्मों में जारी रहा।

अमरीश पुरी हिंदी सिनेमा में स्थापित नाम तो हो चुके थे लेकिन इन्हें असली पहचान मिली साल 1983 में आयी गोविंद निहलानी की फिल्म ‘अर्धसत्य’ से।

अमरीश पुरी
Amrish Puri

फिल्म ‘अर्धसत्य’ का स्क्रीन प्ले जानेमाने लेखक विजय तेंदुलकर ने लिखा था। फिल्म में अमरीश पुरी के अलावा ओम पुरी, स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह, सदाशिव अम्रापुकार और इला अरुण ने भी अभिनय किया है।

इस फिल्म में ओमपुरी ने मुंबई पुलिस के अधिकारी अनंत वेलणकर की भूमिका निभाई है वहीं अमरीश पुरी ने ओम पुरी के पिता का किरदार निभाया है। वह अनंत वेलणकर को पुलिस फोर्स ज्वाइन करने के लिए दबाव डालते हैं जबकि अनंत वेलणकर लिटरेचर पढ़कर प्रोफेसर बनना चाहता था।

Amrish Puri ने फिल्म ‘अर्धसत्य’ में एक कठोर स्वाभाव के पिता की भूमिका अदा की है ठीक उसी तरह से जैसे ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ वो सिमरन (काजोल) के बाउजी का किरदार निभाते हैं या फिर फिल्म परदेस में गंगा (महिमा चौधरी) के बाउजी बनते हैं।

Amrish Puri in movie Dilwale Dulhania Le Jayenge
Amrish Puri in movie Dilwale Dulhania Le Jayenge

वैसे अर्धसत्य से पहले साल 1982 में अमरीश पुरी रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ में भी दादा अब्दुल्ला हाजी अदब का सफल किरदार निभा चुके थे। इसे अलावा साल 1984 में अमरीश पुरी ने विश्व के जानेमाने डायरेक्टर स्टीवेन स्पीलबर्ग की फ़िल्म ‘इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ़ डूम’ में एक्टिंग करके दर्शकों के बीच अपना लोहा मनवा चुके थे।

Amrish Puri ने समानांतर सिनेमा में भी गजब का काम किया

अमरीश पुरी ने मसाला फिल्मों के साथ समानांतर सिनेमा में समान रूप से काम किया। इसमें उनके हुनर को सबसे ज्यादा मौका श्याम बेनेगल ने दिया। श्याम बेनेगल की फिल्में ‘निशांत’, ‘मंथन’, ‘भूमिका’, ‘सूरज का सातवां घोड़ा’, ‘तमस’, ‘सरदारी बेगम’ और ‘जुबैदा’ में किये अपने सशक्त अभियन के कारण अमरीश पुरी आर्ट सिनेमा के भी प्रमुख स्तंभ बने रहे।

वैसे कामर्शियल सिनेमा की बात करें तो अमरीश पुरी ने फिल्म ‘विधाता’, ‘तेरी मेहरबानियां’, ‘आज का अर्जुन’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘दयावान’, ‘गंगा जमुना सरस्वती’, ‘शहंशाह’, ‘त्रिदेव’, ‘राम लखन’, ‘फूल और कांटे’, ‘सौदागर’, ‘विश्वात्मा’ में अपने किरदार को क्या खूब निभाया है।

इसके अलावा ‘दामिनी’, ‘करन अर्जुन’, ‘विरासत’, ‘कोयला’, ‘चायना गेट’, ‘ताल’, ‘तक्षक’, ‘बादशाह’, ‘बादल’, ‘चोरी चोरी चुपके चुपके’, ‘गदर-एक प्रेमकथा’, ‘नायक’, ‘जाल’, ‘द हीरो’, ‘गर्व’, ‘देव’, ‘मुझसे शादी करोगी’ जैसी फिल्में देकर दर्शकों का खूब मनोरंज किया।

अमरीश पुरी को साल 1979 में उनके नाटकों में किये अभिनय के लिए संगीत नाटक अवार्ड भी मिला था। फिल्मों में अभिनय के लिए अमरीश पुरी को तीन बार फिल्मफेयर का बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवार्ड मिला था। ये पुरस्कार उन्हें साल 1986 में ‘मेरी जंग’, साल 1997 में फिल्म ‘घातक’ और साल 1998 में फिल्म ‘विरासत’ के लिए मिला था।

Amrish Puri
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अमरीश पुरी का निधन 72 साल की उम्र में 12 जनवरी 2005 को सुबह 7.30 बजे मुंबई के हिन्दुजा अस्पताल में हुआ था। अमरीश पुरी को ब्लड कैंसर था, जिसकी वजह से उनके कई सारे ऑपरेशन्स भी हुए थे।

27 दिसंबर 2004 को जब Amrish Puri की तबियत ज़्यादा ख़राब होने लगी तो परिवार के लोग उन्हें हिंदुजा अस्पताल ले गये। जहां इलाज के दौरान 16 दिन बाद अमरीश पुरी का देहांत हो गया।

भारतीय सिनेमा को समर्पित अमरीश पुरी ने लगभ 400 फिल्मों में काम किया। सिनेमा का कभी कोई भी बड़ा अवॉर्ड नहीं मिलने के बावजूद वो फिल्म इंडस्ट्री के सबसे महंगे विलेन थे।

Amrish Puri
Amrish Puri

अमरीश पुरी ने अपने जीवन की अंतिम फिल्म सुभाष घई के साथ की और वो फिल्म थी ‘किसना’, जो अमरीश पुरी की मौत के बाद रिलीज हुई। Amrish Puri जैसे खलनायक सदियों में एक ही बार पैदा होते हैं, अगर यकीन न हो तो एक बार उनकी फिल्में देख लें।

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