Uttarakhand Legislative Election: उत्तराखंड में 70 विधानसभा सीटों में चुनाव सोमवार यानी 14 फरवरी को होंगे। सत्ताधारी पार्टी बीजेपी एक बार फिर सत्ता में वापसी करने के लिए अपना पूरा जोर लगा रही है तो वहीं कांग्रेस पार्टी भी सरकार बनाने के लिए पूरी तैयारियों में जुटी है। बता दें कि आगामी विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की भी नजर है।
सोमवार को वोटिंग सुबह 7 बजे शुरू होगी जो शाम 5 बजे तक चलेगी। बता दें कि 70 विधानसभा सीटों में 682 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कांग्रेस, बीजेपी, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपने प्रत्याशी उतारे हैं।
AAP ने अपने मुख्यमंत्री का चेहरा Ajay Kothiyal को बनाया है जो गंगोत्री विधानसभा सीट से अपनी उम्मीदवारी पेश कर रहे हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कांग्रेस की कमान संभाली है। रावत लाल कुआं विधानसभा सीट से मैदान में उतरे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। तो चलिए चुनाव से 1 दिन पहले आपको बताते हैं उत्तराखंड बनने के बाद राज्य की राजनीति का इतिहास।
राज्य का 2000 में हुआ था गठन
2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड का गठन हुआ था। गठन होने के बाद इसका नाम उत्तरांचल था। राज्य का गठन होने से पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा में इसके 30 विधायक थे। 2000 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और राज्य के मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह थे। राज्य का गठन होने के बाद विधानसभा में बीजेपी के ही सबसे ज्यादा विधायक थे और उत्तरांचल के पहले मंत्री बने बीजेपी के नित्यानंद स्वामी।
हालांकि मुख्यमंत्री बने हुए स्वामी को 1 साल भी नहीं हुए थे तभी पार्टी आलाकमान ने उनसे उनका इस्तीफा मांग लिया और उनकी जगह उनकी कैबिनेट में मंत्री रहे भगत सिंह कोश्यारी को राज्य का दूसरा मुख्यमंत्री बनाया गया। जी हां वही भगत सिंह कोश्यारी जो वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। माना जाता है कि स्वामी को मुख्यमंत्री के पद से इसलिए हटाया गया था क्योंकि जिन लोगों ने उत्तराखंड बनाने की लड़ाई लड़ी थी वो मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें नहीं देखना चाहते थे।
पहले Uttarakhand Legislative Election में कांग्रेस की जीत
2002 में उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव होते हैं। 70 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस पार्टी को 36 सीटों के साथ बहुमत मिलता है। वहीं उत्तराखंड बनने के बाद राज्य की सत्ता में आने वाली बीजेपी सरकार से बाहर हो जाती है। चुनाव में बीजेपी को 70 में से मात्र 19 सीटें मिलती हैं। वहीं बसपा के 7 विधायक जीत के आए थे।
बताया जाता है कि यह चुनाव कांग्रेस पार्टी ने हरीश रावत के चेहरे को आगे करके लड़ा था। वो उस समय उत्तराखंड कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। हालांकि गुटबाजी के चलते सोनिया गांधी ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता एन डी तिवारी को राज्य का तीसरा मुख्यमंत्री बनाया था। बता दें कि नारायण दत्त तिवारी यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं और वो उत्तराखंड के एकमात्र मुख्यमंत्री हैं जिसने 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया है।
दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत
21 फरवरी 2007 को उत्तराखंड के दूसरे विधानसभा चुनाव होते हैं। इस चुनाव में 70 में से 35 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनती है और उत्तराखंड क्रांति दल और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बीजेपी की सरकार बन जाती है। वहीं 21 सीटों के साथ कांग्रेस पार्टी विपक्ष की भूमिका निभाती है। चुनाव के बाद भुवन चंद्र खंडूरी उत्तराखंड के चौथे मुख्यमंत्री बनते हैं। हालांकि 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद खंडूरी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दिया जाता है और रमेश पोखरियाल निशंक को राज्य का 5वां मुख्यमंत्री बनाया गया था।
2010 में जब निशंक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तब उस समय उनका नाम जमीन घोटाले में आया था। अपनी सरकार पर लगे जमीन घोटाले के आरोपों के चलते उन्होनें मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद सितंबर 2011 को विधानसभा चुनाव से 5 महीने पहले खंडूरी की मुख्यमंत्री के तौर पर एक फिर वापसी होती है।
2012 के Uttarakhand Legislative Election में कांग्रेस की सरकार
30 जनवरी 2012 को प्रदेश में विधानसभा के तीसरे चुनाव हुए। चुनाव में 32 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी। कांग्रेस ने बीएसपी, उत्तराखंड क्रांति दल और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से एक डेमोक्रेटिक फ्रंट बनाकर राज्य में अपनी सरकार बना ली। वहीं इस विधानसभा चुनाव में 31 सीटें पाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष की भूमिका निभाई। विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी ने एक ब्राह्मण चेहरे विजय बहुगुणा को राज्य का छठवां मुख्यमंत्री बनाया। बता दें कि बहुगुणा के पिता एच बहुगुणा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी थे जो असहयोग आंदोलन में भी शामिल हुए थे।
2013 में उत्तराखंड में बहुत ही भयंकर तबाही आई और उस समय विजय बहुगुणा राज्य के मुख्यमंत्री थे। बहुगुणा पर आरोप लगे कि उन्होंने स्थिति को अच्छी तरह से नहीं संभाला और आलोचना के चलते 2014 में उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद राज्य के 7वें मुख्यमंत्री बने हरीश रावत। 2014 से लेकर 2016 तक रावत ने अपनी सरकार चलायी। फिर 18 मार्च 2016 को कांग्रेस के 9 विधायकों ने रावत से बगावत कर दी जिसके बाद 27 मार्च 2016 को केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला किया था।
हालांकि 11 मई 2016 को विधानसभा में हरीश रावत ने अपना बहुमत साबित कर दिया और वो उत्तराखंड के एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए।
चौथी विधानसभा में भाजपा ने बनाए 3 मुख्यमंत्री
2017 का Uttarakhand Legislative Election कांग्रेस ने हरीश रावत के नेतृत्व में लड़ा और पार्टी चुनाव हार गई। खुद रावत हरिद्वार शहर और किच्छा से अपना चुनाव हार गए थे। 2017 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 70 में से 56 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया था। वहीं चुनाव से राज्य की सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस पार्टी को मात्र 11 सीटें मिली थीं।
2017 में बीजेपी की विजय के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) उत्तराखंड के 8वें मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने 4 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया और चुनाव से मात्र एक साल पहले 10 March 2021 को उनकी जगह Tirath Singh Rawat ने ले ली। हालांकि 4 July 2021 को तीरथ सिंह रावत की भी कुर्सी चली गई। जिसके बाद राज्य के 10वें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) बने।