धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है। इस भगवान के नाम पर प्राकट्य उत्सव मनाया जाता है। 2020 में ये त्योहार 12 नवंबर को मनाया जाएगा। आयुर्वेद के जनक धनवंतरि को भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है।

आज के दिन भगवान के साथ-साथ औषधियों की भी पूजा की जाती है। भारत के दो कोने उत्तर और दक्षिण में ऐसे दो मंदिर हैं जो औषधियों से जुड़े हैं। ।देश के दक्षिणी कोने यानी केरल में भगवान विष्णु का ऐसा मंदिर है जहां मूर्तियां औषधियों से बनी हैं। वहीं, उत्तराखंड का एक शक्तिपीठ जहां प्रसाद के रूप में रोगनाश करने वाली औषधि मिलती है। ये दोनों ही मंदिर अपने आप में अद्भुत हैं।

ये अनोखा मंदिर कासरगोड जिले के अनंतपुर गांव में है। जो कि 302 वर्ग किमी में फैली झील के बीच में बना है इसलिए इसे लेक टेंपल भी कहा जाता है। लेक टेंपल का नजारा देखकर मन खुश हो जाता है। जानकारी के अनुसार ये मंदिर करीब 1100 साल पुराना है। यहां जितनी भी मूर्तियां मौजूद हैं वे किसी धातु या पत्थर से नहीं बनी हैं बल्कि, इनका निर्माण 70 से ज्यादा विशेष औषधियों के मिश्रण से हुआ है, जिन्हें कादुशर्करा योगं कहा जाता है।

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इस मंदिर के मंडप की छत पर लकड़ी की बेहद खूबसूरत नक्काशी की गई है। ये नक्काशियां भगवान विष्णु के दस अवतारों की कथा बताती है। इस मंदरि की रंगाईपोताई भी प्राकृतिक तरह से की गई है। गर्भगृह के दोनों ओर लकड़ियों से जय और विजय नाम के द्वारपाल बनाए गए हैं। मान्यता है कि यहां साक्षात भगवान विष्णु आए थे और गुफा मार्ग से तिरुवनंतपुरम गए थे।

उत्तराखंड में मसूरी रोड पर कद्दूखाल कस्बे से करीब डेढ़ किमी पैदल चढ़ाई चढ़ कर सुरकंडा माता मंदिर पहुंचा जाता है। ये तीर्थ देवी दुर्गा को समर्पित है। सुरकंडा देवी मंदिर 51 शक्ति पीठ में से भी एक माना जाता है।

मंदिर के पुजारी के अनुसार यहां सुरकुट पर्वत पर देवी सती का सिर गिरा था। इसलिए इसे सुरकंडा मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में रोगनाश करने वाली देवी कालिका की मूर्ति है। इस तीर्थ का जिक्र स्कन्दपुराण में भी मिलता है | ये मंदिर ठीक पहाड़ की चोटी पर है और घने जंगलों से घिरा हुआ है

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इस मंदिर की खास बात ये है कि, यहां पर आने वाले भक्तों को प्रसाद में रौंसली की पत्तियां दी जाती हैं, ये पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। इनका वानस्पतिक नाम टेक्सस बकाटा है। डॉ. गुलाटी के मुताबिक अपने औषधीय गुणों के कारण ये पत्तियां फेफड़ों के कैंसर को रोकने में भी कारगर मानी जाती हैं।

धार्मिक मान्यता के मुताबिक इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि भी आती है। ये पत्तियां हिमालय के जंगलों में ही मिलती हैं। इसे देववृक्ष का दर्जा हासिल है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी का इमारती या व्यावसायिक रूप से भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

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