नवरात्र के समय मां दुर्गा को सोलह शृगांर का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। मां की मूर्ति स्थापित करते समय शृगांर किया जाता है। साथ ही कान के पीछे काला टीका भी लगाया जाता ह ताकि मां को किसी की नजर न लगे। सोलह शृगांर की परंपरा हिंदुओं रीति रिवाज में दशकों पुरानी हैं। कहते हैं मां पार्वती शृगांर में इतना व्यस्त हो गई थी कि उन्हे खाने-पीने का याद ही नहीं रहा इसलिए करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। ये पर्व सुहागिनों के लिए होता है।

सोलह शृगांर को लेकर कई कहानियां हैं। कहा जाता है सोलह शृगांर करने से औरत की खूबरसूरती में चांद-चांद लग जाता है साथ ही पति की आयु लंबी रहती है।

पुरातन काल में महिलाओं को शृगांर करने की सलाह दी जाती थी इससे महिला का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। कहते हैं सुंदरता सबको आर्षित करती है। इसलिए जब पत्नी सोलह शृगांर में सदा रहती है तो पति उसे देखर खुश होता है। घर में सुख-शांति बनी रहती है। जिससे स्वास्थ्य पर अच्छा असर होता है।

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देवी पुराण के अनुसार मां को खुश करने के लिए सोलह शृगांर किया जाता है। इसमें सिंदूर, बिंदी, काजल, इत्र, झुमका, चूड़ी, पायल, नथिया,गजरा, कमरबंद, आलता, मेंहदी, बीछिया, मंगलसूत्र, अंगूठी आदि चीजे शामिल रहती हैं।

इसमें लाली, पावडर, नेल पेंट, आईलाइनर का कोई जिक्र नहीं किया गया है क्योंकि इसमे केमिकल होता है जिससे सेहत पर बुरा असर पड़ता है।

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नवरात्र में माता को सोलह शृगांर चढ़ाना शुभ होता है। इससे सुख और समृद्धि बढ़ती है और अखंड सौभाग्य भी मिलता है। देवी को सोलह सिंगार चढ़ाने के साथ ही महिलाओं को भी खुद सोलह शृगांर जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से मन प्रसन्न होता है और देवी कृपा भी मिलती है।

आज के जीवन में कहा जाता है, जब आप सुंदर दिखती हैं तो आत्मविश्वास बन रहता है। मन खुश रहता है। सोलह शृगांर करने का यही कारण है।

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