बसंत पंचमी को श्रीपंचमी और वागीश्वरी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी कहते हैं। इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। धार्मिक ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि इसी दिन शब्दों की शक्ति ने मनुष्य के जीवन में प्रवेश किया था। पुराणों में लिखा है सृष्टि को वाणी देने के लिए ब्रह्मा जी ने कमंडल से जल लेकर चारों दिशाओं में छिड़का था। इस जल से हाथ में वीणा धारण कर जो शक्ति प्रकट हुई वह सरस्वती देवी कहलाई. उनके वीणा का तार छेड़ते ही तीनों लोकों में ऊर्जा का संचार हुआ और सबको शब्दों में वाणी मिल गई।
शास्त्रों में बसंत पंचमी के दिन कई नियम बनाए गए हैं, जिसका पालन करने से मां सरस्वती प्रसन्न होती हैं। बसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्र पहनने चाहिए और मां सरस्वती की पीले और सफेद रंग के फूलों से ही पूजा करनी चाहिए।
बसंत पंचमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त-
बसंत पंचमी पूजा मुहूर्त: सुबह 7.15 बजे से दोपहर 12.52 बजे तक।
पंचमी तिथि प्रारंभ: मघ शुक्ल पंचमी शनिवार 9 फरवरी की दोपहर 12.25 बजे से शुरू।
पंचमी तिथि समाप्त: रविवार 10 फरवरी को दोपहर 2.08 बजे तक।
मां सरस्वती की पूजा विधि-
1.सुबह स्नान करके पीले या सफेद वस्त्र धारण करें।
- मां सरस्वती की मूर्ति या चित्र उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करें।
3.मां सरस्वती को सफेद चंदन, पीले और सफेद फूल अर्पित करें।
4.उनका ध्यान कर ऊं ऐं सरस्वत्यै नम: मंत्र का 108 बार जाप करें।
5.मां सरस्वती की आरती करें और दूध, दही, तुलसी, शहद मिलाकर पंचामृत का प्रसाद बनाकर मां को भोग लगाएं।
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। सरस्वती मां ज्ञान और बुद्धि देती हैं। मान्यता है कि सरस्वती मां की पूजा करने से आज्ञानी व्यक्ति भी ज्ञानी बन जाता है। इनकी आराधना करने से व्यक्ति को हर प्रकार का ज्ञान, कला, संगीत और वाणी का वरदान मिल जाता है। आपको अगर पढ़ाई में दिक्कतें आती हैं या पढ़ाई में मन नहीं लगता है तो बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की उपासना से लाभ होगा। बसंत पंचमी के दिन राशि अनुसार अलग-अलग रंग की कलम मां सरस्वती को चढ़ाने से विद्या की अधिक प्राप्ति होती है।