मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन की भड़की हिंसा की चिंगारी बुझने का नाम नहीं ले रही है। मंगलवार को राज्य के होशंगाबाद जिले के सियोनी मालवा गांव में कर्ज में दबे एक किसान ने खुदकुशी कर ली जबकि सोमवार को रेहटी तहसील के जाजना गांव के एक किसान ने छह लाख रुपए के कर्ज से तंग आकर जहर खा लिया। दरअसल किसानों के कर्ज माफी का मुद्दा हमेशा ही भारतीय राजनीति के शीर्ष पर रहा है और लगभग सभी पार्टियों ने इसको वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया हैं।
उधर, एमपी के मंदसौर से भड़की किसान आंदोलन की लपटें अब पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से लेकर दक्षिण भारत के कर्नाटक तक पहुंच चुकी है। सोमवार को पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के गृह जिले पटियाला समेत कई जगहों पर किसानों ने प्रदर्शन किया। जबकि राजस्थान स्थित बूंदी में कलेक्ट्रेट दफ्तर के बाहर किसानों ने जमकर हंगामा किया। यूपी में किसानों की कर्जमाफी के ऐलान के बाद अब पड़ोसी राज्यों के किसान भी इस मुद्दे पर अपने राज्यों की सरकारों से ठोस कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। किसानों के कर्ज माफी करने का अर्थ है कि उस कर्ज की भरपाई विभिन्न टैक्स से होने वाली आय के माध्यम से की जाएगी, जो जनता के माध्यम से आता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो टैक्स और कर्ज काफी का सीधा ताना-बाना किसी भी आम आदमी से जुड़ता हैं।
मंगलवार की दोपहर 2 बजे एपीएन न्यूज के विशेष कार्यक्रम मुद्दा में किसानों की कर्जमाफी और उनकी बदहाली के मुद्दे पर चर्चा हुई। जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ गोविंद पंत राजू (सलाहकार संपादक एपीएन), शिवराज सिंह (किसान नेता), बालेश्वर त्यागी (नेता बीजेपी), सरबत जहां फातिमा (प्रवक्ता कांग्रेस), प्रो. अरुण कुमार (अर्थशास्त्री) और अनिल दुबे (प्रवक्ता आरएलडी) शामिल थे। शो का संचालन एंकर अक्षय ने किया।
अनिल दुबे का मत है कि सत्ता में आने के बाद केंद्र सरकार ने किसान कर्जमाफी पर अपना पल्ला झाड़ लिया है। आज वृत्तमंत्री व पूर्व अर्थशास्त्री अरुण जेटली ने साफ तौर पर कहा कि हमें राज्यों के किसानों के कर्जमाफी से कोई लेना देना नहीं है! यह राज्य सरकार का काम है। सत्ता में रही बीजेपी सरकार ने न तो किसानों के हित में उन्हे एक बड़ा बजार दिया है, न उचित मूल्य और न स्वामीनाथन आयोग का वादा।
शिवराज सिंह का कहना है कि पीएम मोदी ने किसानों को पांच हजार रुपए पेंशन, प्रधान कर्ज, स्वामीनाथन रिपोर्ट के नाम पर ठगा है। देश का पीएम झूठा है और जिस देश का पीएम झूठा हो उस देश का विकास नहीं हो सकता। आज सरकारी कामकाजों, विधायकों की पेंशन, सरकारी पेंशन बढ़ाने के नाम पर सरकार के खजाने भर जाते है लेकिन देश के अन्नदाताओं के लिए ये खजाने रिक्त हो जाते है।
गोविंद पंत राजू का ने कहा कि चुनाव के दौरान बीजेपी ने घोषणापत्र तैयार कर लिया लेकिन सत्ता में आने के बाद उसे एक माह इस बात को विचार करने में लग गए कि कर्जमाफी कैसे किया जाए? योगी सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में ऋणमाफी का ऐलान तो कर दिया लेकिन राज्य के राजकोष पर नजर नहीं डाली जो रिक्त पड़ी हैं।
सरबत जहां फातिमा का मत है कि कांग्रेस किसानों के लिए सदैव हितकर रही है, किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए कांग्रसे ने FDI की शुरुआत की लेकिन बीजेपी इसका भी विरोध करती रही।
बालेश्वर त्यागी ने कहा है कि सरकार को इस देश की अर्थव्यवस्था की ‘नैया पार लगानी’ है तो उन्हे कर्जमाफी से जुड़े मुद्दे पर किसान भाईयों की मदद करनी पड़ेगी। अब वह मदद चाहे केंद्र करे या राज्य सरकार? दूसरी बात आज किसानों की लागत उनके उत्पादन मूल्य से कही ज्यादा है जिस कारण किसानों को कर्ज लेना पड़ता है इसलिए ऋणमाफी अस्थाई समाधान है न की स्थाई।
प्रो. अरुण कुमार का कहना है कि भारत भले विश्व के औद्योगिक क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा हो लेकिन कृषि क्षेत्र में आज भी पिछड़ा हुआ है। अगर सरकार को एक अच्छा इकनॉमिक ढाचा तैयार करना है तो इसके लिए सरकार को एक अच्छी राजनीति भी करनी पड़ेगी। सरकार किसानों के 9 लाख करोड़ का ऋण ऐसे ही माफ नहीं कर सकती है इस समस्या का समाधान स्वामीनाथन रिपोर्ट का लागू करना है।