देश में विधानसभा चुनावों का दौर चल रहा है। बड़े-बड़े नेता अपनी चुनावी रैलियां, जनसभाएं, रोड शो कर रहे है। जनता से अनेक वादे भी किए जा रहे है। उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल कुछ ज्यादा ही गर्म दिखाई दे रहा है। हर पार्टी अपने-अपने मैनिफेस्टो से जनता का दिल जीतना चाहती है। यूपी की सत्ताधारी पार्टी समाजवादी पार्टी ने भी अपना घोषणा पत्र जारी किया। सपा के इस बार के मेनिफेस्टो में हर बार की तरह किसानों और युवाओं के लिए कई वादे पेश किए गए है। इस घोषणा पत्र और काम बोलता है का नारा लिए अखिलेश यादव दावा कर रहे है कि समाजवादी ही सबसे आगे है।
बहुजन समाजवादी पार्टी की सुप्रीमो मायावती भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 11 फरवरी को होने वाले चुनाव को सफल करने के लिए पूरा जोर लगा रही है। मायावती अखिलेश यादव और कांग्रेस के गठबंधन पर तंज कसते हुए जनता से बड़े-बड़े चुनावी वादे कर रही हैं। दूसरी तरफ बीजेपी भी रैलियों और दावों में पीछे नहीं है। एक के बाद एक भाजपा नेता रोजाना रोड शो, जनसभाएं और रैलियां कर रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह तमाम बड़े नेता बड़े-बड़े वादों की लंबी लिस्ट जनता के सामने रख रहे है साथ ही वर्तमान सरकार पर यूपी की कानून व्यवस्था को बदहाल करने का आरोप भी लगा रहे हैं।
यूपी चुनाव में सियासी दलों की रणनीतियों पर विश्लेषण करने वाले दिग्गजों का कहना है कि सभी राजनीतिक दलों को पश्चिमी उत्तर प्रदेश, गन्ना, किसान और दंगें पीड़ितों की याद चुनाव के वक्त में ही आती है। चुनाव के बाद सभी पार्टी और दल इन मुद्दों को भूल जाते है। ऐसे में जनता के मन में असमंजस बना रहता है कि वे अपने मताधिकार का प्रयोग किस दल के लिए करें। हालांकि इस बार के चुनाव में साफतौर पर इन मसलों का असर पड़ने की उम्मीद जताई जा रही है। इसलिए सियासी सूरमाओं को किसानों और दंगे पीड़ितों की याद आ रही है। खैर, किस राजनीतिक पार्टी के वादों का जनता पर कितना असर पड़ेगा यह तो 11 मार्च को ही तय होगा।