Nitish Bhardwaj : 90 के दशक में दूरदर्शन के सुप्रसिद्ध धारावाहिक महाभारत में अपनी कला का लोहा मनवा चुके नीतीश भारद्वाज एक बार फिर प्रसिद्ध हिंदी नाटक “चक्रव्यूह” में नजर आ रहे हैं। द फिल्म एंड थिएटर सोसाइटी अपने बहुचर्चित नाटक “चक्रव्यूह” के साथ दिल्ली वापस आ गए हैं।इस नाटक में नीतीश भारद्वाज, जो बी आर चोपड़ा की ‘महाभारत’ में भगवान कृष्ण की अविस्मरणीय भूमिका अदा कर पूरे देश में कृष्ण रूप के पर्याय बन गए थे। एक बार फिर भगवान श्रीकृष्ण के रूप में मंच पर कमाल का प्रदर्शन किया।यह शो पूरे देश के विभिन्न शहरों और कई प्रतिष्ठित समारोहों में लगभग सौ बार प्रदर्शित किया जा चुका है।
नीतीश भारद्वाज की शानदार प्रस्तुति और डॉयलाग सुनकर दर्शकों ने खूब तालियां बजाई।नाटक महाभारत के भीषण युद्ध के 13वें दिन की कहानी है। यह नाटक “चक्रव्यूह” को केवल एक युद्ध-कला तक सीमित न करके इसे दर्शन के स्तर तक ले जाता है।
नाटक चक्रव्यूह में अभिमन्यु की हत्या के प्रकरण और उससे जुड़े सभी प्रश्नों, मिथकों, विचारधाराओं और विश्वासों की कई स्तरों पर व्याख्या करता है। छंद-रूप में लिखित और प्रदर्शित यह नाटक इतिहास और वर्तमान के बीच एक सेतु का काम करता है और इतिहास तथा वर्तमान को “कर्म” और “धर्म” की चिरकालीन अवधारणाओं से जोड़ता है।
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Nitish Bhardwaj :बेहतरीन अभियन ओर निर्देशन की झलक
मौलिक नाट्य-लेखन और मंच पर शानदार दृश्य-प्रदर्शन के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध अतुल सत्य कौशिक ने इस नाटक के जरिये अपना बेहतरीन प्रदर्शन करने का बखूबी प्रयास किया है।ये नाटक पूरी तरह से एक नए अवतार में लिखा और निर्देशित किया है।
नाटक में पूरी तरह से श्रीकृष्ण के दृष्टिकोण से महाभारत की कहानी प्रस्तुत की गई है।कैसे श्रीकृष्ण प्रकट होते हैं और उपस्थित लोगों के सभी प्रश्नों, मिथकों और गलतफहमियों को सुलझाते हैं।
अतुल सत्य कौशिक श्रीकृष्ण कर्म के शाश्वत संदेशों को आगे बढ़ाते हुए बताते हैं कि “कोई भी मनुष्य अपने चक्रव्यूह से कभी बाहर नहीं आ पाया है अपितु यह पूरा जीवन एक चक्रव्यूह के अलावा और कुछ नहीं है। चक्रव्यूह में युद्ध करना हमारा कर्म है और उससे बाहर निकलना उस कर्म का फल है जिस पर हमारा वश कभी नहीं हो सकता। जीवन भर उनसे लड़ना है।”
Nitish Bhardwaj : भारतीय इतिहास ने हमेशा आकर्षित किया
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लेखक और निर्देशक अतुल सत्य कौशिक कहते हैं, “भारतीय इतिहास ने हमेशा मुझे आकर्षित किया है। मैंने हमेशा इतिहास की व्याख्या कुछ इस तरह से करने की कोशिश की है कि उन प्रसंगों को एक नया अर्थ मिले।
जिन्हें हम यूं ही अनगिनत बार सुनते आए हैं। इस विचार मात्र से कि महज 16 साल का एक बाल-योद्धा, जिसके पास विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर की विरासत है, पृथ्वी के इतिहास के सात सबसे महाबली योद्धाओं से एकल युद्ध करता है।
निस्संदेह मेरे रोंगटे खड़े हो गए लेकिन मैं इस कहानी से इससे भी अधिक कुछ चाहता था। इसीलिए मैंने श्रीकृष्ण के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि इस बात पर शोक क्यूं मनाया जाए कि “अभिमन्यु” चक्रव्यूह से बाहर नहीं आ सका? जबकि कोई और भी कभी ऐसा नहीं कर पाया।
यह पूरा जीवन ही एक “चक्रव्यूह” है और वे सात योद्धा दरअसल हमारे ही भीतर स्थित सात बुराइयां। हम सभी “अभिमन्यु” हैं और ये पूरा जीवन इन बुराइयों से लड़ते इसी चक्रव्यूह में बीतना है।
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