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राम जन्मभूमि थाने के तत्कालीन एसएचओ वीर बहादुर सिंह ने टीवी चैनल से बातचीत में बताया, ‘घटना के बाद विदेश तक से पत्रकार आए थे। उन्हें हमने आठ लोगों की मौत और 42 लोगों के घायल होने का आंकड़ा बताया था। हमें सरकार को रिपोर्ट भी देनी थी तो हम तफ्तीश के लिए श्मशान घाट गए, वहां हमने पूछा कि कितनी लाशें हैं जो दफनाई जाती हैं और कितनी लाशों का दाह संस्कार किया गया है, तो उसने बताया कि 15 से 20 लाशें दफनाई गई हैं। हमने उसी आधार पर सरकार को अपना बयान दिया था।
हालांकि हकीकत यही थी कि वे लाशें कारसेवकों की थीं। उस गोलीकांड में कई लोग मारे गए थे। आंकड़े तो नहीं पता हैं, लेकिन काफी संख्या में लोग मारे गए थे।’ टीवी चैनल के इस सवाल पर कि कई लोग अपनों के बारे में पूछते हुए अयोध्या तक आए होंगे, उन्हें क्या बताया जाता था। पूर्व एसएचओ ने बताया, ‘हम उन्हें बताते थे कि ये लाशें (जिन्हें दफनाया गया है) उनके परिवार के सदस्यों की नहीं हैं।’ मुलायम सिंह यादव भी कई मौकों पर इस गोलीकांड को सही ठहराते रहे हैं। उन्होंने हमेशा कहा है, ‘हमने देश की एकता के लिए गोली चलवाई थी। आज जो देश की एकता है उसी वजह से है। हमें इसके लिए और भी लोगों को मारना पड़ता तो सुरक्षाबल मारते।’
वीएचपी के आह्वान पर साल 1990 के अक्टूबर महीने में लाखों कारसेवक अयोध्या में इकट्ठा हुए थे। मामला था कि विवादित स्थल पर मस्जिद को तोड़कर मंदिर का निर्माण किया जाए। जब हजारों की संख्या में लोग विवादित स्थल के पास की एक गली में इकट्ठा हुए उसी वक्त सामने से पुलिस और सुरक्षाबलों के बीच गोलीबारी हुई, इस हिंसा में कई लोग गोली से तो कई लोग भगदड़ से मारे गए और घायल हुए। हालांकि मौतों के आंकड़े कभी स्पष्ट नहीं हुए, ऐसे में तत्कालीन अधिकारी का यह खुलासा हैरान करने वाला आया है।