Himachal Election Result: हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में वोटों की गिनती आज सभी 68 सीटों पर हो रही है। इस पहाड़ी राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी पार्टी को 35 सीटों पर जीत की जरूरत होती है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना शुरू होने के 6 घंटे से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी बीजेपी पिछड़ती नजर आ रही है। कुछ समय पहले, कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी को पीछे छोड़ दिया। कांग्रेस फिलहाल 40 सीटों पर आगे चल रही है। इस बीच, निर्दलीय उम्मीदवार पांच सीटों पर आगे चल रहे हैं और संभावित रूप से सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। नतीजे अपने पक्ष में आता देख कांग्रेस नेता भूपेश बघेल, भूपेंद्र हुड्डा और राजीव शुक्ला अब पहाड़ी राज्य की ओर जा रहे हैं। हालांकि, सवाल अब ये उठता है कि गुजरात में शानदार प्रदर्शन करने वाली भाजपा, पहाड़ी राज्य में क्यों पिछड़ रही है? हिमाचल में कैसे फंसा पेंच? क्यों हिमाचल का रिवाज नहीं बदल पाई बीजेपी? आखिर हिमाचल में क्यों नहीं चला मोदी मैजिक?
बागियों को संभाल नहीं पाई बीजेपी
कभी प्रधानमंत्री की बागियों से चुनाव में बैठने की अपील, कभी केंद्रीय मंत्री का भावुक होकर आंसू बहाना, तो कहीं मंच पर स्थानीय नेताओं का अपना दर्द बयान करना और कहीं ‘मुझे याद रखना’ जैसे पोस्टर से सियासत करना। बाग़ियों को रिझाने वाले ऐसे तमाम पल पिछले एक महीने में हिमाचल की राजनीति में देखने को मिले। प्रदेश में प्रत्याशियों के एलान के बाद सबसे ज्यादा बगावत भारतीय जनता पार्टी में दिखी। भाजपा के 21 बागियों ने निर्दलीय ही चुनावी मैदान में ताल ठोक दी थी। कुछ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में भी चले गए। इसके चलते बीजेपी के वोटों में बड़ी सेंधमारी हुई। इसका फायदा सीधे तौर पर कांग्रेस को हुआ है।
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नेताओं से नाराज थे वोटर
जनता के बीच स्थानीय नेताओं को लेकर काफी नाराजगी थी। बड़ी संख्या में लोगों का कहना था कि नेता उनकी बातें नहीं सुनते। क्षेत्र में कभी-कभी आते। इसके बावजूद पार्टी ने टिकट दिया। कुछ प्रत्याशियों पर परिवारवाद का भी आरोप लगा। जैसे- मनाली के प्रत्याशी और शिक्षामंत्री गोविंद ठाकुर हैं। गोविंद के पिता भी बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे हैं। ऐसे में स्थानीय लोग उनसे काफी नाराज रहे। कहीं न कहीं कांग्रेस को इससे भी फायदा हुआ है।
बेरोज़गारी बना अहम मुद्दा
कई सालों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे छात्र भी बीजेपी सरकार से निराश थे। हिमाचल प्रदेश में बीते पांच साल में सिर्फ़ एक बार आयोग ने वैकेंसी निकाली जो कि सरकार की नाकामी है। इतना ही नहीं हिमाचल में सरकारी स्कूलों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। शिक्षकों की कमी से अधिकतर स्कूल जूझ रहे हैं। कुछ जगहों पर गांव के लोगों ने ही निजी शिक्षकों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने के लिए रखा है। एक यह भी कारण है जिससे स्थानीय लोग भाजपा के वादा खिलाफी से परेशान हुए हैं।
OPS भी बड़ी वजह
हिमाचल में वर्तमान में पेंशन के लिए वार्षिक 7500 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। यदि सरकार ने पुरानी पेंशन बहाल की तो 2030 में सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों के लिए पेंशन पर होने वाला खर्च 25 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। 2004 में OPS लागू होने के बाद डेढ़ लाख कर्मी सरकारी विभागों में भर्ती हुए। सरकारी कर्मचारियों के अलावा हिमाचल में 30 हजार से ज्यादा आउटसोर्स कर्मचारी हैं यानी ठेके पर रखे गए हैं। ये आउटसोर्स कर्मचारी भी बीजेपी से खुश नही हैं।
अब तक के रुझान और नतीजे बताते हैं कि यहां कांग्रेस ने भाजपा को बहुमत हासिल करने से रोक दिया है। 68 सीटों वाले हिमाचल में सरकार बनाने के लिए 35 का आंकड़ा चाहिए। हिमाचल में कांग्रेस का वोट शेयर 42 फीसदी के साथ यथावत है। नुकसान भाजपा को हुआ है। उसका वोट शेयर 43 फीसदी के आसपास है, जो पिछली बार के 49 फीसदी से कम है।
हिमाचल में क्या बागियों के भरोसे बनेगी सरकार?
चलते-चलते बता दें कि भाजपा ने इस बार 11 विधायकों के टिकट काट दिए थे। इनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया था। कई नेता टिकट मांग रहे थे। भाजपा से 21 नेता बागी हो गए थे, वहीं कांग्रेस से भी सात बागी उम्मीदवार थे। किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में चुनाव जीतने वाले बागियों के पास सत्ता की चाबी रहेगी।
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