“मंजिलें उन्हें हीं मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। यूं ही पंख होने से कुछ नहीं होता। हौसलों से उड़ान होती है”। इस लाइन के एक-एक शब्द को सही साबित कर रहे हैं, पौड़ी गढ़वाल के कोटलमण्डा गांव निवासी तीन नेत्रहीन भाई-बहन। एक मुफलिसी और दूजा प्रकृति से मिले जन्मजात कष्ट को धता बताते हुए ये ने तीनों अपने मजदूर माता-पिता का सहारा बन चुके हैं। तीनों में गजब की प्रतिभा है। अंगुलियों के दम पर धुन निकालना इनके लिये किस कदर आसान है ये आप खुद ही देख और सुन लीजिये। जन्मजात प्रतिभा इनके आंखें न होने के रास्ते में चट्टानी बाधा बनने जरूर आई लेकिन इन्होंने उसे अपनी प्रतिभा तले हमेशा के लिये दबा दिया। कोटद्वार से तकरीबन 45 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर बसे कोटलमण्डा गांव के इस परिवार को आसपास के इलाकों में इनका पता हर कोई जानता है। ये परिवार संगीत के दम पर सुर्खियों में रहता है। दिव्यांग संगीत साधक निर्मल सिंह के पिता उमेश सिंह बच्चों की प्रतिभा के कायल हैं।

ईश्वर ने इन्हें आंखें भले नहीं दीं लेकिन इस परिवार की एक बेटी और दो बेटे अपने मन की आंखों से संगीत की दुनिया और लोगों के दिलों को जीत रहे हैं। हौसलों में दम पर तीनों सुर और ताल का संगम बहा रहे हैं। इनकी कला को देख हर कोई इनकी प्रतिभा का दीवाना हो चला है। कोई गायिकी में तो कोई वाद्य यंत्रों में निपुण है। बिना किसी गुरु के तीनों वाद्य यंत्र बजाने में माहिर है। हाथों से लेकर कंठ तक सरस्वती का वास है। हारमोनियम और ढोलक बजाते हुए तीनों आपको अपनी आवाज का दीवाना न बना लें तो कहियेगा।

इंसान चांद पर दशकों पहले पहुंच चुका। आधुनिकता का लबादा ओढ़े समाज में आज भी निःशक्तता को अभिशाप समझा जाता है।लेकिन इसी दिव्यांगता को ये तीनों भाई-बहन आज अपने जीवन की मजबूती छत बना चुके हैं। अपने माता पिता को भी सम्मान दिला रहे हैं। तीनों कलाकार भाई-बहन जगह-जगह अपनी प्रस्तुति देते है। बच्चों की प्रतिभा देख माता-पिता की आंखें भावनाओं के आवेग में खुद को नहीं रोक पातीं। उम्मीद है कि सरस्वती के सच्चे साधन तीनों भाई बहन भविष्य में संगीत की दुनिया में अपना लोहा मनवाएंगे। थाली बजाकर गाने और गुनगुनाने से शुरू हुआ संगीत साधना का सफर आज इन्हें समाज में शानदार पहचान दिला चुका है।

पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ ही आधुनिक वाद्य यंत्रों को बखूबी अपनी अंगुलियों और गले से साधते हैं। जाहिर है, प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती, बाधाएं जरुर उसका रास्ता रोक कर परीक्षाएं लेती हैं। लेकिन कोटद्वार के कोटलमण्डा गांव निवासी इन भाई-बहन की लगन और प्रतिभा देख हर कोई दंग है। इनके दिल में अपनी मंजिल पाने की चाहत है। लेकिन, क्या त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार सभी वाद्य यंत्रों को बजाने में माहिर इन प्रतिभाशाली कलाकारों पर अपनी नजरें इनायत करेगी।

ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन

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