इस समय दुनियाभर में मंदी की आहट के बीच नई नौकरियों को लेकर पहले से ही उहापोह कि स्थिति के बीच बड़ी कंपनियों ने कर्मचारियों की छटनी (Layoff) भी शुरू कर दी है. वहीं दुनिया के सबसे दौतलमंद शख्स एलन मस्क ने ट्विटर (Twitter) चीफ बनते ही कंपनी में भारी छंटनी की है, वहीं मेटा (Meta) ने भी 11,000 लोगों को नौकरी से निकाल दिया है जिसका खामियाजा अब पूर्व कर्मचारियों को खासकर वीजा धारकों (H-1B Visa) को भुगतना पड़ रहा है.
मेटा (फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम) ने तो अपने कुल कार्यबल (Workforce) का 13 फीसदी यानी 11,000 लोगों को नौकरी से निकाल दिया है. ट्विटर और फेसबुक द्वारा बड़े स्तर पर की जा रही छटनी का असर सबसे ज्यादा अब अमेरिका में मौजूद विदेशी कर्मचारियों को पड़ रहा है.
अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन स्थित एक रिपोर्टर पैट्रिक थिबोडो ने सोमवार को ट्विटर पर लिखा कि फेसबुक की छंटनी से एच-1बी कर्मचारियों को भारी नुकसान हो सकता है. क्योंकि फेसबुक को एच-1बी “आश्रित” के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है कि उसका 15 फीसदी या उससे अधिक कार्यबल (Workforce) वीजा पर है. अगर हम सीधे शब्दों में कहे तो फेसबुक के 15 फीसदी से अधिक कर्मचारी विदेशी हैं. जब ये वीजा धारक अपनी नौकरी खो देते हैं, तो उन्हें जल्दी से एक नया नियोक्ता (EMPLOYER) खोजना पड़ता है ऐसा न होने की स्थिति में उन्हें अमेरिका छोड़ना पड़ सकता है.
कहां है समस्या?
लगातार आ रही रिपोर्टस के मुताबिक, ट्विटर, मेटा और अन्य बड़ी कंपनियो द्वारा कि जा रही छंटनी से विदेशी नागरिक खासकर H-1B वीजा वाले कर्मचारियों पर अमेरिका में रहने की समस्या खड़ी हो गई है. अमेरिका में रह रहे H-1B वीजाधारक के पास अब बस 60 दिन का वक्त मौजूद है, नियमों के मुताबिक H-1B वीजाधारी लोगों को अगर 60 दिनों के अंदर कोई नौकरी नहीं मिली तो उन्हें अमेरिका से बाहर जाना होगा.
क्या है H-1B वीजा?
अमेरिका द्वारा दिया जाने वाला H-1B वीजा एक नॉन-इमिग्रेंट वीजा है जो विशेष व्यवसायों में विदेशी कर्मचारियों को सीमित समय अवधि (3+3 वर्ष) के लिए अमेरिका में रहने और काम करने की अनुमति प्रदान करता है. H-1B वीजा को पाने के लिए एक विदेशी कर्मचारी के पास अमेरिका की किसी कंपनी में काम होना जरूरी है. प्रौद्योगिकी कंपनियां भारत और चीन जैसे विकाशशील देशों से हर साल हजारों कर्मचारियों को काम पर रखने के लिए इस वीजा पर निर्भर रहती हैं.
तीन तरह के वीजा जारी करता है अमेरिका
अमेरिका, विदेशी नागरिक को काम करने के लिए तीन तरह का वीजा जारी करता है जिनमें H-1B, L-1 या O-1 वीजा के तहत काम करते हैं. ये सभी अलग-अलग नियमों के साथ आते हैं.
अमेरिका के विश्वविद्यालयों (Universities) में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पूर्णकालिक स्नातक छात्रों का 74 फीसदी और कंप्यूटर और सूचना विज्ञान में 72 फीसदी छात्र बाहरी देशों के हैं. एलन मस्क, जिन्होंने हाल ही में ट्विटर का अधिग्रहण किया था भी एक अंतरराष्ट्रीय छात्र के रूप में अमेरिका आए और बाद में एच -1 बी वीजा प्राप्त किया ताकि वह अमेरिका में काम कर सकें.
H-1B वीजा और भारत
अमेरिका ने 2015 के मध्य से लगभग 1,71,000 एच-4 वीजा धारकों को रोजगार प्राधिकरण के लिए मंजूरी दी है यानी ये लोग अमेरिका में काम कर सकते हैं. जिनमें से एक बड़ा हिस्सा भारतीयों का है. वित्त वर्ष 2021 में, भारतीयों ने सबसे अधिक H-1B वीजा प्राप्त किया था, यानी कुल H-1B वीजा आवंटन का 74 फीसदी से भी अधिक. USCIS द्वारा कुल स्वीकृत 4.07 लाख H1-B वीजा में से 3.01 लाख भारतीयों को दिए गए हैं जबकि 50,000 चीनियों को वीजा प्राप्त हुआ.
यूनाइटेड स्टेट्स सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, H-1B वीजा धारकों की बड़ी संख्या तकनीकी क्षेत्र में काम करती है. 2019 में, एजेंसी ने बताया था कि देश के 3,87,492 H-1B वीजा धारकों में से, जिनके व्यवसाय ज्ञात थे में से 2,56,226 लोग यानी 66 फीसदी “कंप्यूटर से संबंधित क्षेत्रों” में काम कर रहे थे.
अमेरिका में भी इस बात की शिकायत की जाती है कि H-1B वीजा भारत के नागरिकों को अनुपातहीन रूप से जारी किया जाता है, जैसे की 2019 में 71.7 फीसदी H-1B वीजा का कोटा भारतीय को जारी किया गया था. भारत के बाद सबसे ज्यादा H-1B वीजी चीन के नागरिकों को जारी किया गया था, जिनके पास 2019 में H-1B वीजा का 13 फीसदी था. कनाडा 1.2 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर आया. और किसी भी अन्य देश के नागरिकों के पास कुल का 1 फीसदी से अधिक H-1B वीजा नहीं थे.
एक अमेरिका संस्था द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि एच-1बी वीजा श्रेणी आर्थिक विकास को गति देती है, अमेरिकी श्रमिकों के लिए रोजगार सृजित करती है और उच्च वेतन वाली नौकरियों की ऑफशोरिंग को धीमा करती है.