शराब वैसे तो सेहत के लिए हानिकारक मानी गयी है, लेकिन यह कोई माने तब तो! इसे पीने वाले कहते हैं कि भाई अपनी-अपनी मर्जी है। दिल करे तो पियो नहीं तो कोई बात नहीं। वैसे आपने कभी सोचा है कि आखिरकार शराब का खम्भा 750ml का ही क्यों होता है? आइए आपको बताते हैं इसके पीछे की दिलचस्प कहानी…

750ml का होता है शराब का ‘खम्भा’
अपना देश हो या विदेश, हर जगह यह देखा जाता है कि शराब की ज्यादातर बोतलें 750ml की ही बनाई जाती हैं। शराब के पीने वाले यह भी कहते हैं कि उन्हें शराब की 750ml वाली बोतल का साइज ही सबसे अच्छा लगता है। बताते हैं कि शराब की ये बोतलें पहले ‘ग्लास ब्लोइंग’ तकनीक से बनाई जाती थी। इसी कारण से इनका साइज 750ml होती रही हैं।
क्या है ‘ग्लास ब्लोइंग’ तकनीक?
शराब को पसंद करने वाले शौकीनों के लिए ये साइज ‘ग्लास ब्लोइंग’ (glass boeing) तकनीक से बनाई जाती रही है। इस तकनीक का इस्तेमाल पुराने जमाने में किया जाता था। इसके आधार पर पाइप से फूंककर शीशे में गर्म हवा भरी जाती थी। इस दौरान 750 एमएल तक ही बोतल का साइज फूलता था, जिसे एक स्टैंडर्ड साइज मान लिया गया।
शराब निर्माता 750 एमएल को ही क्यों चुना स्टैंडर्ड साइज?
जानकारी के अनुसार यूरोप में 975 ई. में शराब बनाने वालों पर एक खास साइज में ही शराब बनाने का कानूनी जोड़ डाला गया। उनसे कहा गया कि वे एक विशेष साइज वाली बोतल में ही इसे पैक करें। वहीं जानकार मानते हैं कि इसके बाद से शराब निर्माताओं के साथ खरीदने और बेचने वाले दोनों ही 750 एमएल वाले साइज को स्टैंडर्ड मानने लगे।
375 और 180 एमएल की बोतलों में भी आने लगी है शराब
वैसे स्टैंडर्ड साइज यानी 750 एमएल (Liquor standard size) की डिमांड आज भी ज्यादा है, लेकिन समय के साथ अब 375 और 180 एमएल की शराब की बोतलें भी आने लगी हैं। लोगों को जिस साइज की शराब पीनी है, वे उस साइज की बोतलों में पी रहे हैं। इस साइज को क्वार्टर कहा जाता है।
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