
Book Review: आज का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले पन्ने के तौर पर दर्ज है। आज रविवार (25 जून) को देश में आपातकाल लगाए जाने के 48 साल पूरे हो गए हैं। 1975 में आज ही के दिन से 21 महीने के लिए इमरजेंसी लागू हो गई थी। आपातकाल के दौर की उन यातनाओं और लोकतंत्र के उस काले अध्याय को लेकर बहुत कुछ लिखा गया है।
ऐसी ही एक किताब है लेखिका कूमी कपूर की ‘द इमरजेंसी’। जैसा कि लेखिका कूमी कपूर ने खुद ही किताब में साफ किया है कि ये उनके निजी अनुभवों पर आधारित है लेकिन दिवंगत अरुण जेटली के शब्दों में ही कहें तो यह एक ‘कीमती रिकॉर्ड’ है जो कि पढ़ा जाना चाहिए। किताब को कुल 15 चैप्टर में बांटा गया है और पहले चैप्टर में बताया गया है कि देशभर में चल रहे किन घटनाक्रमों के बीच इंदिरा गांधी ने इंटरनल इमरजेंसी की घोषणा की थी।

किताब में उन सारे अहम पहलुओं को छूने की कोशिश की गयी है जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को दागदार बनाया। कूमी कपूर ने बताया है कि कैसे इमरजेंसी के दौर में अखबारों को सीधे तौर पर सरकार की तरफ से निर्देश मिलने लगे थे और अधिकतर मीडिया हाउस ने सरकार के आगे घुटने टेक दिए थे। उस वक्त में इंडियन एक्सप्रेस और स्टेट्समैन जैसे अखबार ही थे, जो कि पत्रकारिता के अस्तित्व को बचाए हुए थे।
सरकार की ओर से की जाने वाली सेंसरशिप का विस्तृत वर्णन किताब में मिलता है। जो अखबार सरकार की सेंसरशिप के आगे नहीं झुकते उनको बंद कर दिया जाता था। संपादकों की नियुक्ति सरकार की पसंद से हुआ करती और पत्रकारों को जेल में सड़ाया जाता या उनको यातनाएं दी जातीं। कूमी कपूर के पति भी इसका ही शिकार हुए थे , जिसका उन्होंने किताब में जिक्र किया है।

लेखिका की इस किताब से आप खुद को इसलिए भी जोड़ पाएंगे क्योंकि उन्होंने खुद की आपबीती लिखी है कि कैसे आपातकाल के दौर ने उनकी जिंदगी पर गहरी छाप छोड़ी। न सिर्फ लेखिका के पति जेल में रहे बल्कि उनकी बहन के पति यानी सुब्रमण्यम स्वामी को भी इस दौर में खुद को सरकारी चंगुल से बचाना पड़ा और जगह-जगह छिपते रहना पड़ा। कई दिलचस्प किस्से आपातकाल के किताब में साझा किए गए हैं। मसलन जब सुब्रमण्यम स्वामी गुजरात पहुंचते हैं तो मोरारजी देसाई तक पहुंचाने के लिए उस समय के आरएसएस प्रचारक नरेंद्र मोदी स्वामी को लेने स्टेशन पहुंचते हैं। ऐसे ही बहुत से किस्से हैं जिसके बारे में लिखा गया है।

कूमी कपूर इमरजेंसी के दौर में इंडियन एक्सप्रेस में काम किया करती थीं। उन्होंने बताया कि कैसे रामनाथ गोयनका को इंडियन एक्सप्रेस के लिए जूझना पड़ा। उस समय में इंडियन एक्सप्रेस इकलौता विश्वसनीयता का स्रोत बन गया था। लेखिका ने इस चीज पर भी रौशनी डाली है कि कैसे इंदिरा गांधी अपने पद को बचाए रखने के लिए किस हद तक असुरक्षित थीं। सत्ता खोने का डर ही था जिसके चलते उन्होंने संविधान की धज्जियां उड़ा दीं। किताब में लोकनायक जयप्रकाश और इंदिरा गांधी के बीच के मतभेदों के बारे में लिखा गया है। कैसे जेपी, इंदिरा गांधी के खिलाफ विरोध का पर्याय हो गए।
जैसा कि सब जानते हैं कि आपातकाल के दौरान सत्ता इंदिरा गांधी के हाथ में नहीं बल्कि उनके बेटे संजय गांधी के हाथ में थी। संजय गांधी का सिरफिरापन कैसे देश के लोगों के लिए यातना बन गया, इसके बारे में किताब में पढ़ने को मिलेगा। संजय गांधी और उनके करीबियों का ही इमरजेंसी के दौरान बोलबाला हुआ करता था। संजय गांधी की जिद के आगे इंदिरा गांधी का भी कोई बस नहीं था और वे पूरी तरह से अपने बेटे के प्रभाव में थीं। संजय गांधी के कार्यक्रमों ने कैसे आम आदमी को आतंकित किया इसके बारे में भी किताब में बताया गया है।

किताब में बताया गया है कि देश में विपक्ष का एकजुट होना आसान नहीं था लेकिन विपक्ष के लिए भी यह आखिरी मौका था औैर दांव पर किसी एक राजनेता का करियर नहीं बल्कि पूरा लोकतंत्र था। विपक्ष के एकजुट होने की कहानी भी लेखिका ने कही है। सुब्रमण्यम स्वामी की तरह ही जॉर्ज फर्नांडीस के बारे में भी अलग से एक चैप्टर है। कैसे उस समय में फर्नांडीस के परिजनों को यातनाएं दी गयीं। फर्नांडीस ने अपने प्रतिरोध से इंदिरा गांधी सरकार की पैरों तले जमीन हिला कर रख दी थी।
आखिर में किताब में बताया गया है कि कैसे इंदिरा गांधी को लगा कि चुनाव कराना उनके लिए मुफीद साबित होगा। लेकिन मार्च 1977 में हुए चुनाव के नतीजे पूरी तरह से इंदिरा गांधी की उम्मीद के उलट थे। अरुण जेटली के ही शब्दों में कहें तो विपक्ष ने इंदिरा गांधी को नहीं हराया बल्कि जनता ने इंदिरा गांधी को हराया। किताब की सबसे बड़ी कमी ये है कि इसमें निजी पूर्वाग्रह है लेकिन इसके बावजूद ये किताब पढ़ी जानी चाहिए।
संबंधित खबरें:
- राजनीति से लेकर क्रांति तक… पढ़ें Baba Nagarjuna की लिखी 5 कविताएं
- Book Review: रेत समाधि की ‘मां’ पुरुषों की इस दुनिया में खुद का एक अलग रास्ता बनाना चाहती है, गीतांजलि श्री ने पितृसत्ता पर कसा है तंज