इसी महीने की 12 तारीख को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने जिन मुद्दों को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ ठीक नही चल रहा है। अब इसकी परतें खुल रही हैं और केंद्र में हैं इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस एस एन शुक्ला। जस्टिस शुक्ला पर आरोप है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक बेंच की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने 2017-18 के शैक्षणिक वर्ष में छात्रों को प्रवेश देने के लिए निजी कॉलेजों को अनुमति दे दी थी। उनका यह कदम प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ के पारित आदेश का उल्लंधन था। इस संबंध में जस्टिस शुक्ला के खिलाफ दो शिकायतें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा से की गईं। मीडिया के सामने आए चार वरिष्ठतम जजों ने भी इस मामले का उल्लेख किया था।

मेडिकल ऐडमिशन घोटाले में शामिल होने के प्रमाण मिलने के बाद तीन जजों की इन-हाउस कमिटी ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को जस्टिस शुक्ला को पद से हटाने की सिफारिश की है। समिति की सिफारिशों और आंतरिक प्रक्रिया के तहत अनुच्छेद 7 के अनुसार कार्रवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने जस्टिस शुक्ला को इस्तीफा देने या फिर स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति लेने का भी विकल्प दिया था लेकिन जस्टिस शुक्ला ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद जस्टिस शुक्ला से सभी न्य़ायिक कामकाज वापस ले लिया गया है।इस कदम से जस्टिस शुक्ला को पद से हटाने का भी रास्ता साफ हो गया है। पद से हटने के बाद सीबीआई जस्टिस शुक्ला के ऊपर केस दर्ज करेगी।

इस मामले में यूपी के एडवोकेट जनरल ने पिछले साल एक सितंबर को प्रधान न्यायाधीश को शिकायत भेजी थी। मामले की जांच के लिए बनी समिति में मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एस के अग्निहोत्री और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पी के जायसवाल शामिल थे।

कमिटी ने अपनी जांच में माना कि जस्टिस शुक्ला ने न्यायिक मूल्यों को क्षति पहुंचाई है। उन्होंने एक जज की भूमिका को ठीक प्रकार से नहीं निभाया और अपने ऑफिस की सर्वोच्चता, गरिमा और विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाने वाला काम किया है। अब प्रधान न्यायाधीश अपने फैसले की जानकारी पीएम और राष्ट्रपति को देंगे और जस्टिस शुक्ला को पद से हटाने की सिफारिश करेंगे।

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