Environment: एक अध्ययन में इस बात का दावा किया गया है कि प्रदूषण ने भारत में पिछले एक साल में 24 लाख लोगों की जान ले ली। द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में अध्ययन ने वैश्विक स्तर पर हर साल 90 लाख मौतों के लिए सभी प्रकार के प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया, जबकि ऑटोमोबाइल और उद्योगों से निकलने वाली दूषित हवा के कारण होने वाली मौतों में 2000 से 55% की वृद्धि हुई है।
शहरीकरण के साथ बढ़़ते उद्योग प्रक्रियाओं से वायु प्रदूषण में तेजी से इजाफा हुआ है। वैश्विक मृत्यु दर और प्रदूषण के स्तर पर वैज्ञानिकों के आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार वर्ष 2015 से 2019 तक प्रदूषण से संबंधित मौतों में 7% की वृद्धि हुई है।
Environment: सर्दियों में वायु प्रदूषण का स्तर अधिक
भारत में वायु प्रदूषण सर्दियों के महीनों में चरम पर होता है। पिछले साल दिल्ली शहर में केवल दो दिन देखे गए जब हवा को प्रदूषित नहीं माना गया था। चार वर्षों में यह पहली बार था जब यहां सर्दियों के महीनों के दौरान स्वच्छ हवा के दिन का अनुभव किया।
सेंटर फॉर साइंस एंड की एक निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा कि वायु प्रदूषण दक्षिण एशिया में मौत का प्रमुख कारण बना हुआ है, जो पहले से ही ज्ञात है, लेकिन इन मौतों में वृद्धि का मतलब है कि वाहनों और ऊर्जा उत्पादन से विषाक्त उत्सर्जन बढ़ रहा है।
Environment: आर्थिक रूप से कमजोर इलाकों में प्रदूषण से मौतें अधिक
सर्वे के दौरान पता चला कि आर्थिक रूप से कमजोर इलाकों में रहने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रदूषण की मार झेलते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे गरीब इलाकों में प्रदूषण से होने वाली मौतें बढ़ रही हैं।
यह समस्या दुनिया के उन क्षेत्रों में सबसे खराब है जहां जनसंख्या सबसे घनी है। प्रदूषण की समस्या का समाधान करने के लिए वित्तीय और सरकारी संसाधन सीमित हैं और स्वास्थ्य देखभाल उपलब्धता और आहार सहित कई चुनौतियों का समाधान करने के लिए नाकाफी हैं।
संबंधित खबरें