Jallianwala Bagh Massacre: भारत को आजादी यूं ही नहीं मिली है, न जानें कितने ही निर्दोषों ने अपनी जान गंवाई है। इस पूरी आजादी के लड़ाई के सफर में कई ऐसे जख्म मिले हैं जो शायद कभी न भर पाएं। उन्हीं में से एक है जलियांवाला बाग हत्याकांड। इस हत्याकांड ने एक लंबे समय तक पूरे देश को शोक में डाल दिया था, जानें कितने ही बच्चों को अनाथ और औरतों को विधवा कर दिया था। आज जलियांवाला बाग हत्याकांड को 103 साल पूरे हो गए हैं। जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल, 1919 में हुआ था, जिसमें हजारों लोगों की क्रूरता से हत्या की गई थी।
रोलैक्ट एक्ट का हो रहा था विरोध
Jallianwala Bagh Massacre: ब्रिटिश हुकूमत भारत में अपने शासन के दौरान कई एक्ट पारित कर भारतीय लोगों को परेशान करता था। ऐसे ही ब्रिटिश ने रोलैक्ट एक्ट पारित करने का फैसला किया। इसे 10 मार्च, 1919 में पारित किया गया जिसे काला कानून भी कहा जाता था। पूरे देश में इसका विरोध होने लगा।
डॉ सत्यपाल मलिक और डॉ. सैफुद्दीन किचलू ने किया था विरोध
Jallianwala Bagh Massacre: इस एक्ट के पारित होते ही अमृतसर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। इसका नेतृत्व डॉ सत्यपाल मलिक और डॉ. सैफुद्दीन किचलू कर रह थे। लेकिन ब्रिटिश प्रशासन ने उन दोनों को धोखे से गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद दोनों को एक धर्मशाला में भेज दिया। इस बात का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी अमृतसर आ रहे थे लेकिन उनको भी वापस मुम्बई भेज दिया गया।
Jallianwala Bagh Massacre: डॉ सत्यपाल मलिक और डॉ. सैफुद्दीन किचलू की रिहाई के लिए 10 अप्रैल को अमृतसर के लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया। इस दौरान लगभग 50,000 लोग प्रदर्शन में शामिल थे जिनकी ब्रिटिश प्रशासन से मुठभेड़ हो गई। पथराव और गोलीबारियां भी हुई, जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी।
13 अप्रैल को रखी गई थी सभा
Jallianwala Bagh Massacre: इसके बाद डॉ सत्यपाल मलिक और डॉ. सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में सभा आयोजित की गई थी। बाग में हजारों लोग इकट्ठा हुए थे और ब्रिटिश अधिकारी जनरल ओ डायर ने बिना किसी चेतावनी के वहां इकट्ठा हुए निहत्थे लोगों पर गोली चलवा दी। बताया जाता है कि यह लगभग 10 मिनट तक अंधाधुंध गोलीबारी हुई थी, पूरे बाग में लाशें बिछ गई थी। कई लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे जिसके कारण भगदड़ में दबने की वजह से भी लोगों की मौत हो गई थी।
Jallianwala Bagh Massacre: जहां तक नजर जाती थी वहां तक लाशों की चादर सी बिछी दिख रही थी, एक के ऊपर एक लाशें नजर आ रही थीं। वहां मौजूद कुछ लोग तो जान बचाने के लिए कुएं में कूद गए जो इतना गहरा था कि वहां से निकलना असंभव सा था। इस घटना में हजारों निर्दोष लोग मारे गए थे। हालांकि, आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो इस घटना में 379 लोगों की मौत हुई थी लेकिन इतिहासकारों का कहना है कि इस घटना के दौरान कुल 1,650 राउंड गोलियां चली थीं। ये एक ऐसा दिन था जिसको कोई भारतीय शायद ही भूल सकता है।
21 साल बाद लिया Jallianwala Bagh Massacre का बदला
Jallianwala Bagh Massacre: इस हत्याकांड के बाद पूरी दुनिया में ब्रिटिश हुकूमत की निंदा की गई, जिसके बाद अंग्रेजी सरकार इस घटना की जांच करने के लिए हंटर समिति का गठन किया। हालांकि, इस हंटर समित ने अपनी रिपोर्ट में जनरल डायर को निर्दोष करार दिया था। इस हत्याकांड का बदला 21 साल बाद लिया गया।
Jallianwala Bagh Massacre: 1940 में उधम सिंह ने जो इस हत्यकांड के दर्दनाक मंजर को देख चुके थे, उन्होंने इसका बदला लिया। उधम सिंह ने 13 मार्च, 1940 को लंदन की Royal Central Asian Society में घुसकर माइकल ओ डायर की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके कारण उधम सिंह को गिरफ्तार कर 31 जुलाई, 1940 को हत्या के आरोप में फांसी की सजा दे दी गई।
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