Allahabad HC: HC ने कहा, अधिकारी के खिलाफ केस चलाने की स्वीकृति सरासर गलत

कोर्ट ने खादी और ग्रामोद्योग विभाग सचिव के निर्देश पर पूर्व प्रबंधक के खिलाफ मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा अभियोजन चलाने की दी गई स्वीकृति को गलत माना।

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Allahabad HC: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि सरकारी सेवक के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति का निर्णय स्वतंत्र और स्वविवेक पर आधारित होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ऐसा निर्णय किसी बड़े अधिकारी के निर्देश पर लेना सरासर गलत है। कोर्ट ने खादी और ग्रामोद्योग विभाग सचिव के निर्देश पर पूर्व प्रबंधक के खिलाफ मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा अभियोजन चलाने की दी गई स्वीकृति को गलत व मनमानीपूर्ण मानते हुए रद्द कर दिया है।

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Allahabad High Court

Allahabad HC: आदेश पर पुनर्विचार करें

ये आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने अभय कुमार त्रिपाठी की याचिका पर दिया है। पूर्व में मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने 27 फरवरी 2006 को अभियोजन की स्वीकृति से मना कर दिया था।
वकीलों का कहना था कि जब एक बार सक्षम प्राधिकारी ने आदेश पारित कर अभियोजन स्वीकृति से मना कर दिया, तो दोबारा उसी पद पर आसीन दूसरे अधिकारी को यह अधिकार नहीं है, कि वह अपने पूर्ववर्ती अधिकारी के आदेश पर पुनर्विचार करे। अभियोजन स्वीकृति का निर्णय स्वतंत्र व स्वविवेक पर आधारित होना चाहिए, न कि शीर्ष अधिकारी के निर्देश पर।

Allahabad HC: माही पाल के खिलाफ धोखाधड़ी केस बरेली से गाजियाबाद अदालत में स्थानांतरित

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जिला न्यायाधीश बरेली को निर्देश दिया है, कि विचाराधीन आपराधिक केस संख्या 4190 वर्ष 2019 राज्य बनाम माही पाल को गाजियाबाद की जिला अदालत में स्थानांतरित करें। कहा, कि जिला न्यायाधीश गाजियाबाद इसे क्षेत्राधिकार रखने वाली अदालत सुनवाई के लिए नामित करें।यह आदेश न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा ने माही पाल की स्थानांतरण अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है।

अर्जी पर वकील यज्ञदेव शर्मा ने बहस की। इनका कहना है कि बरेली की जिला अदालत में धारा 406, 420, 504 व 506 के अंतर्गत याची के खिलाफ आपराधिक केस चल रहा है। जिसे नोएडा गौतमबुद्ध नगर स्थानांतरित करने की मांग की गई। बहस के दौरान दोनों पक्षों में गाजियाबाद में स्थानांतरित करने पर सहमति बनी।जिसपर कोर्ट ने न्याय हित में केस बरेली से गाजियाबाद जिला अदालत में स्थानांतरित करने का आदेश दिया है।

यूनिवर्सल पब्लिसर लेक्सिस-नेक्सिस को कारण बताओ नोटिस जारी

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हरियाणा के गुरुग्राम स्थित यूनिवर्सल पब्लिसर लेक्सिस-नेक्सिस को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने पूछा, क्यों न बार सदस्यों को अधूरा प्रकाशन कर भ्रमित करने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने 7 दिसंबर 21 के आदेश से सक्षम प्राधिकारी को निर्णय लेने का निर्देश दिया था, अब अंतिम निर्णय लेने से रोक दिया है। मामले की अगली सुनवाई 12 अप्रैल को होगी। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की खंडपीठ ने आर्यन विद्या सभा मुजफ्फरनगर की प्रबंध समिति की विशेष अपील की सुनवाई करते हुए दिया।

धारा 4 बी नहीं छापी गई
मालूम हो कि राज्य सरकार ने सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम 1860 की धारा 14 में 2013 में संशोधन कर धारा 14बी जोड़ा है। जिसके तहत सोसाइटी की सामान्य सभा सदस्य विवाद को धारा 25 में संदर्भित किया जा सकता है, लेकिन सहायक निबंधक स्वतंत्र रूप से तय नहीं कर सकता। कोर्ट में पब्लिशर कंपनी का वेयर एक्ट जो वर्ष 2020 में प्रकाशित किया गया है, उसमें धारा 4 बी नहीं छापा गया है। जबकि वर्ष 2013 में ही संशोधन कानून पारित हो चुका है। कोर्ट को दूसरी पब्लिकेशन की किताबें मंगाकर देखने में समय बर्बाद करना पड़ा कि उनमें भी छपा है या नहीं।
धारा 4बी प्रकाशित न कर कंपनी ने बार सदस्यों को भ्रमित किया है।

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