High Court : सु्प्रीम कोर्ट (SC) के जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने गुरुवार को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में कार्यरत महिला जज के इस्तीफे को स्वीकार करने का आदेश रद्द कर दिया। उन्हें बाकायदा मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh HC) में एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर नियुक्त करने का आदेश भी दिया।
हालांकि उन्हें इस अवधि के लिए वेतन एवं भत्ते प्राप्त करने का अधिकार नहीं होगा। याचिकाकर्ता महिला जज ने कोर्ट को बताया था कि मामले की जांच के लिए गठित समिति ने वर्ष 2017 में जांच के दौरान उनके इस्तीफे के कारणों की अनदेखी की। उन्होंने 15 जुलाई 2014 को एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज के पद से इस्तीफा दे दिया था।
High Court : पूर्व महिला जज ने लगाया था यौन उत्पीड़न का आरोप
वर्ष 2014 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (High Court) की एक पूर्व जज ने हाई कोर्ट के जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। हालांकि ये जांच में गलत साबित हुआ था। इसके बाद पिछले माह इसी मामले की सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कोर्ट को दलील दी थी, कि उनके आरोप गलत पाए जाने के चार वर्ष बाद वह इस्तीफा देने को मजबूर हुईं।
देरी से उठाया था मामला
इस मामले के संदर्भ में हाईकोर्ट रजिस्ट्रार जनरल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने साफ कहा कि ये मामला उन्होंने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के चार वर्ष बाद उठाया है। जबकि महिला ने कामकाज के प्रतिकूल माहौल को इस्तीफे का आधार बताते हुए इस्तीफा देने की बात कही।
मेहता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस मंजुला चेल्लूर और वरिष्ठ अधिवक्तका केके वेणुगोपाल की तीन जजों की जांच समिति ने मामले से जुड़े हर पहलु को ध्यान से देखा। उन्होंने कहा कि आरोप तय समय से नहीं बल्कि देरी से लगाए गए थे। ऐसे में महिला का तर्क कि वह यौन उत्पीड़न की वजह से दबाव में थी, यह सिद्ध नहीं हो सका।
High Court : याचिकाकर्ता के वकील ने मजबूरी में इस्तीफा दिए जाने की दी दलील
इस पूरे मामले में नया मोड़ तब देखने को मिला, जब कोर्ट में याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पूर्व महिला जज अपनी बेटी और उनके भविष्य के बीच किसी एक को चुनने को मजबूर थी। ऐसे में उन्हें मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा। उनकी दूसरी गुहार थी, कि उनका कम से कम श्रेणी ए के बजाय बी शहरों में तबादला किया जाए। जहां उनकी बेटी के लिए कॉलेज हो, कोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया गया। दूसरा आवेदन खारिज होने के बाद मजबूरी के बीच उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि उनका इस्तीफा मजबूरन नहीं बल्कि स्वैच्छिक था। ऐसे में इसे खारिज करने की अनुरोध किया।
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