हाल ही में किए गए शोध के अनुसार इस सदी के अंत तक दुनिया की 47 प्रतिशत से ज्यादा की आबादी के भयानक गर्मी का श़िकार होने की संभावना जतायी गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार 80 साल के अंदर दुनिया को गर्मी के कारण बेहद घातक लू व उमस का सामना करना पडेगा। ऐसा जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वाँर्मिंग के कारण होगा। लगातार जलवायु परिवर्तन व बढ़ते ग्लोबल वाँर्मिंग के कारण मानव जीवन के भविष्य पर ख़तरा होने की आशंका है।
वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी
वैज्ञानिकों की मानें तों यदि ऐसे ही ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जारी रहा तो वो दिन दूर नही जब दुनिया की लगभग तीन-चौथाई आबादी भयंकर लू की चपेट में होगी। सबसे परेशान करने वाली बात तो यह है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाने कि हरसंभव कोशिश के बावजूद भी 2100 तक विश्व की तकरीबन 47 फीसदी से ज्यादा की आबादी को भयानक लू का शिकार होना पड़ेगा।
1980 से लेकर अब तक विश्व के 1,900 अलग-अलग हिस्सों में गर्मीं और उमस के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु दर्ज की गईं हैं।
शोधकर्ताओं ने किया सचेत
शोधकर्ताओं ने अपने शोध में बताया कि ,1995 में शिकागो के अंदर गर्मी और उमस से लगभग 740 लोगों की जान चली गई। साल 2000 में दुनियाभर में बड़ी तादाद में लोग कई दिन तक गर्मी के कारण बेहद जानलेवा स्थिति के शिकार हुए । 2003 में पेरिस में करीब 4,900 लोग गर्मी और उमस के कारण मारे गए। साल 2010 में मॉस्को के अंदर गर्मी के कारण 10,800 लोगों की मौतें दर्ज की गई थी।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु इतनी तेजी से परिवर्तित रही है कि इतने कम समय में बढ़े हुए तापमान के प्रति इंसानों की प्रतिरोधक क्षमता बेहतर नहीं हो सकती है।