Shakti Samanta ने 70 के दशक में सिनेमा के पर्दे पर जिस तरह से इश्क को उकेरा, उसने राजेश खन्ना जैसे अभिनेता को सुपरस्टार बना दिया।
शर्मिला टैगोर को हिंदी सिनेमा में इंट्रोड्यूस कराने वाले शक्ति सामंत ने ‘आराधना’, ‘अमर प्रेम’, ‘कटी पतंग’, ‘अमानुष’ और ‘कश्मीर की कली’ जैसी सुपरहीट फिल्मों से हिंदी सिनेमा को समृद्ध बनाने में अपना जो योदगान दिया है, उसे सिनेमा के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।
60 के आखिरी दौर में हिंदी सिनेमा उद्योग को नई दिशा देने में वालों में फिल्म निर्देशकों में शक्ति सामंत का नाम प्रमुख तौर पर लिया जाता है।
वैसे मनमोहन देसाई को मसाला सिनेमा का जन्मदाता माना जाता है, जो शक्ति सामंत के ही समकालीन थे लेकिन शक्ति सामंत के सिनेमा में सामाजिक बुराई हो या घर-परिवार की उलझन हो, रिश्तों की टूटन हो या फिर कलह हो, विद्रोह हो या फिर प्रेम जैसे विषयों के साथ-साथ स्त्री केंद्र में रही। ऐसे विषयों को सिनेमा के पर्दे पर उतारने का माद्दा सिर्फ और सिर्फ शक्ति दा के ही पास था।
Shakti Samanta सिनेमा इंडस्ट्री में विमल राय और ऋषिकेश मुखर्जी सरीखे फिल्म डायरेक्टरों की श्रेणी में आते हैं, जिन्होंने बाग्लाभाषी होते हुए भी हिन्दी सिनेमा को आज के मारधाड़ और नंग्नदृश्यों से दूर रखते हुए प्रेम को मुख्य कथानक बनाया।
Shakti Samanta ने राजेश खन्ना को हिंदी सिनेमा का पहला सुपरस्टार बनाया
शक्ति दा की फिल्मों में संवाद के साथ-साथ संगीतमय गीत कुछ इस तरह से मिले होते थे जिन्हें हम आज भी गुनगुनाते हैं। उनकी फिल्मों में प्रेम कामुकता से परे भावनाओं की डोर से बंधी होती थी जिसे उस जमाने में लोग अपने परिवार के साथ जाकर सिनेमा हॉल में देखा करते थे।
जबकि अगर ध्यान से देखें तो उस दौर में प्रेम सामाजिक तौर पर स्वीकार्य नहीं था लेकिन फिर भी शक्ति सामंत की फिल्मों की कथा का मुख्य आधार ही प्रेम हुआ करता था।
Shakti Samanta का जन्म 13 जनवरी 1926 को बंगाल के बर्धमान जिले में हुआ, जो झारखंड के धनबाद से सटा जिला है।
आजादी के बाद देश के नव निर्माण को आधार देने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसी बर्धमान में दामोदर घाटी परियोजना की नींव रखी थी। तब कौन जानता था यही बर्धमान शक्ति सामंत के नाम से भी जाना जाएगा।
शक्ति दा के पिता इंजीनियर थे, जिनकी मृत्यु एक दुर्घटना उस वक्त हो गई थी जब शक्ति सामंत केवल डेढ़ साल के थे। पढ़ाई और अच्छे परवरिश के लिए शक्ति सामंत को आज के उत्तर प्रदेश और उस वक्त के संयुक्त प्रान्त में उनके चाचा के पास भेज दिया गया। शक्ति दा के चाचा बदायूं में रहते थे। चाचा ने उन्हें देहरादून से इंटर करवाया।
वो इंजीनियरिंग करना चाहते थे लेकिन किसी कारणवश कर न सके और थियेटर से जुड़ गये। चाचा को यह सब पसंद नहीं था, Shakti Samanta को बहुत डांट पड़ती थी। इससे तंग आकर 40 के दशक में शक्ति दा ने माया नगरी बंबई का रूख किया। लेकिन जेब में पैसे नहीं थे तो वह सीधे मुंबई नहीं गये।
शक्ति दा ने अपना ठिकाना बनाया माया नगरी बंबई से करीब 200 किलोमीटर दूर दापोली में। जहां वो एक स्कूल में नौकरी करने लगे। दपोली से हर शुक्रवार को वह पानी का स्टीमर लेते और पहुंच जाते बंबई। रविवार तक काम तलाशते और शाम को वापस दापोली पहुंच जाते।
Shakti Samanta को सिनेमा में पहली एंट्री अशोक कुमार ने दी
लगभग साल भर यही क्रम चला। किसी तरह से शक्ति सामंत ने उस जमाने के सबसे मशहूर अभिनेता अशोक कुमार यानी दादमुनि से जान-पहचान निकाली और पहुंच गये बॉम्बे टॉकिज उनसे मिलने।
Shakti Samanta ने अशोक कुमार से कहा उन्हें सिनेमा में कुछ काम दे दें। अशोक कुमार ने उनकी बात सुनी और इसी शर्त पर असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर रखने को राजी हुए कि तनख्वाह के नाम पर एक धेला नहीं देंगे केवल खाना और चाय मिलेगा।
शक्ति सामंत तुरंत तैयार हो गये। शक्ति दा वैसे तो बंगाली थे लेकिन चूंकि वो रहे थे यूपी में अपने चाचा के पास। इसलिए उनकी हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ थी। इसलिए बॉम्बे टॉकिज में उन्हें पहला काम मिला कि फिल्म डायरेक्टर फणी मजुमदार को हिंदी समझने में मदद करेंगे।
दिन बितने के साथ एक दिन शक्ति दा ने अशोक कुमार से कहा कि वो सिनेमा में हीरो बनना चाहते हैं। अशोक कुमार ने उन्हें समझाया कि वो कहीं से हीरो नहीं दिखते हैं उन्हें फिल्म डायरेक्शन में हाथ आजमा चाहिए।
शक्ति सामंत ने अशोक कुमार की बात गांठ ली। एक दिन फिल्म राइटर ब्रजेंद्र गौड़ ने उन्हें अपने पास बुलाया जिन्हें फ़िल्म ‘कस्तुरी’ का डायरेक्शन करना था। लेकिन उस समय वो किसी दूसरी फ़िल्म में व्यस्त थे।
फ़िल्म ‘कस्तुरी’ के डायरेक्शन में Shakti Samanta को पहली बार पैसे मिले
फिल्म डायरेक्शन का काम काफी बड़ा होता है इसलिए ब्रजेंद्र गौड़ ने शक्ति दा को 250 रुपये महीने की तनख्वाह पर फ़िल्म ‘कस्तुरी’ के डायरेक्शन में शामिल कर लिया। इस तरह साल 1954 में रिलीज हुई फ़िल्म कस्तूरी से शक्ति दा की बंबई फिल्म इंडस्ट्री में बोहनी हुई।
इसी दौरान मशहूर गीतकार एसएच बिहारी और राइटर दरोगाजी अभिनेता अशोक कुमार और अभिनेत्री गीता बाली को लेकर फिल्म ‘इंस्पेक्टर’ फ़िल्म बना रहे थे। फिल्म प्रोड्यूस करने के लिए एचएस बिहारी नाडियाडवाला के पास पहुंचे।
नाडियाडवाला ने कहा कि अशोक कुमार को लोगे तो फिल्म का बजट बढ़ जाएगा तो एक काम करो किसी नये निर्देशक के साथ इस फिल्म को बना लो। एचएस बिहारी के सामने ‘कस्तूरी’ में काम किये Shakti Samanta का चेहरा याद आया और इस तरह साल 1956 में पुष्पा पिक्चर्स के बैनर शक्ति सामंत ने अपनी पहली फिल्म का डायरेक्शन किया।
थ्रिलर फिल्म ‘इंस्पेक्टर’ हिट रही और शक्ति दा की गाड़ी ने स्पीड पकड़ ली। यहां एक बात बताना जरूरी है कि वैसे तो शक्ति सामंत ने डायरेक्शन का काम तो फिल्म ‘इंस्पेक्टर’ से शुरु किया था लेकिन साल 1955 में उनकी दूसरी फ़िल्म ‘बहू’ सिनेमा घरों में पहले रिलीज हो गई थी।
साल 1956 में शक्ति सामंत ने अपनी फिल्म कंपनी शक्ति फ़िल्म्स खोल ली। साल 1957 में शक्ति सामंत ने हीरे प्रदीप कुमार और हिरोइन बीना राय को लेकर फिल्म ‘हिल स्टेशन’ बनाई, जो कुछ खास न कर सकी।
अस्पताल के बिस्तर पर Shakti Samanta को फ़िल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ की कहानी सूझी
फिल्म ‘इंस्पेक्टर’ से कमाये पैसे से शक्ति दा ने कार खरीदी और जल्द ही बंबई की सड़क पर कार भिड़ाकर हड्डियां भी तुड़वा ली। अस्पताल के बिस्तर पर उन्हें फिल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ के निर्माण का ख्याल आया। एक दिन अशोक कुमार उनसे मिलने अस्पताल पहुंचे।
शक्ति दा ने उन्हें ‘हावड़ा ब्रिज’ की कहानी सुनाई और उन्हें बताया कि वो मधुबाला और उन्हे लेकर यह फिल्म बनाना चाहते हैं लेकिन उनकी जेब खाली है। अशोक कुमार ने कहा, ठीक हो जाओ तो आराम से बात करेंगे। ठीक होने के बाद शक्ति दा अशोक कुमार के घर पहुंचे और ‘हावड़ा ब्रिज’ का जिक्र छेड़ा।
अशोक कुमार ने फौरन मधुबाला को फोन किया और Shakti Samanta से बात करवाई। शक्ति दा ने वही पैसे का रोना रोया जिसे सुनकर मधुबाला ज़ोर से हंसी। मधुबाला ने शक्ति दा से कहा कि वो फ़िल्म के लिए 1.50 रूपए बतौर ‘साइनिंग अमाउंट’ लेंगी और पूरी फिल्म के उतना ही लेंगी जितना वो अशोक कुमार को देंगे।
बात तय हो गई। अब बारी थी म्यूजिक की तो शक्ति दा ने ओपी नय्यर से बात की। उन्होंने भी 1000 रुपये में संगीत देना तय किया। फिल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ को लिखा रंजन घोष ने। इस फ़िल्म के बनने में लगभग 4 लाख रुपए लगे।
फिल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ में अशोक कुमार और मधुबाला ने 75000 रुपए लिये। फ़िल्म में बनाने में लगे 4 लाख रुपये रिलीज़ होने के एक हफ़्ते के अंदर ही वसूल हो गए और इस तरह साल 1958 में शक्ति सामंत बन गए हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के एक कामयाब डायरेक्टर-प्रोड्यूसर।
60 के दशक में शक्ति सामंत ने एक से एक सफल फिल्में दीं। जिनमें ‘सिंगापुर’, ‘जाली नोट’, ‘नॉटी ब्वॉय’ और ‘चाइना टाउन’, ‘कश्मीर की कली’ शामिल हैं। इन फिल्मों में ‘चाइना टाउन’ सबसे सफल फिल्म रही।
साल 1962 में बनी फिल्म ‘चाइना टाउन’ में शम्मी कपूर, शकीला और हेलेन को लेकर शक्ति दा ने ऐसी मेलोडी बनाई, जिसके गीत आज भी गुनगुनाये जाते हैं। रफी साहब की आवाज में ‘बार बार देखो हज़ार बार देखो, ये देखने की चीज है…’ आज भी उतना ही कर्णप्रीय है।
Shakti Samanta ने बांग्ला पत्रिका में शर्मिला टैगोर की फोटो देखकर हिंदी सिनेमा में मौका दिया
साल 1964 में शक्ति सामंत ने हिंदी फिल्म से शर्मिला टैगोर का परिचय करवाया फिल्म ‘कश्मीर की कली’ के जरिये। सफलता के मामले में शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर की इस फ़िल्म ने शक्ति सामंत की बनाई सभी फिल्मों को पीछे छोड़ दिया। इसी फ़िल्म में शक्ति दा ने पहली बार शर्मिला टैगोर को बांग्ला फिल्मों से हिंदी फ़िल्म में लेकर आये।
दरअसल हुआ यह कि Shakti Samanta ने एक बार एक बांग्ला पत्रिका में शर्मिला टैगोर की तस्वीर देखी, शर्मिला शक्ति दा को भा गईं। शक्ति दा ने फौरन कलकत्ता में शर्मिला टैगोर के पिता गितिन्द्र नाथ टैगोर को ट्रंकॉल किया क्योंकि उस जमाने में सीधे फोन नहीं हुआ करते थे।
फोन पर शर्मिला के पिता ने यह कहा कि अगर कहानी अच्छी है तो उनकी बेटी ज़रूर काम करेगी। यहां यह बात भी जान लीजिए कि शर्मिला टैगोर के पिता गितिन्द्रनाथ फेमस पेंटर गगनेन्द्रनाथ टैगोर के पोते थे, जोकि रवीन्द्रनाथ टैगोर के चचरे भाई थे।
खैर, शक्ति दा शर्मिला से मिलने उनके घर कलकत्ता पहुंचे और उन्हें अपने फ़िल्म के लिए चुन लिया। नाम से जाहिर है फिल्म की पूरी शूटिंग कश्मीर में हुई। जिसके लिए शक्ति सामंत ने डल झील में 8 शिकारे बुक कराये थे।
Shakti Samanta की इस फिल्म में संगीत ‘हावड़ा ब्रिज’ वाले म्यूजिक डायरेक्टर ओपी नय्यर ने दिया और एसएच बिहारी के लिखे गीत ‘दीवाना हुआ बादल, सावन की घटा छाई ये देखके दिल झूमा, ली प्यार ने अंगड़ाई’ को भला कौन भूल सकता है।
Shakti Samanta ने फिल्म ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ की शूट के लिए हेलिकॉप्टर किराये पर लिया
इसके बाद साल 1967 में शक्ति सामंत ने फिल्म ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ नाम से एक रोमांटिक थ्रिलर बनाई। इस फिल्म में भी शक्ति दा ने मौका दिया शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर को। फिल्म में शम्मी और शर्मिला डबल रोल है। वहीं इसमें विलेन बने प्राण।
फिल्म ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ की शूटिंग में एक गीत का सीन था जिसे फिल्माने के लिए शम्मी कपूर ने शक्ति दा से हेलीकॉप्टर लाने को कहा। अगले ही दिन शक्ति सामंत सेट पर हेलीकॉप्टर के साथ पहुंचे और मोहम्मद रफी की आवाज में ‘आसमान से आया फरिश्ता प्यार का सबक सिखलाने’ गाना शूट हुआ। इस फिल्म ने भी कमाल की सफलता हासिल की।
अब हम बात करते हैं साल 1969 के उस फिल्म की, जसने राजेश खन्ना को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। उन्हें हिंदी सिनेमा का पहला सुपरस्टार बना दिया। जी हां, यहां बात हो रही है फिल्म ‘आराधना’ की।
दरअसल उस दौर में शक्ति सामंत शम्मी कपूर को लेकर एक फिल्म ‘जाने-अंजाने’ बना रहे थे तभी शम्मी कपूर की पत्नी गीता बाली का निधन हो गया। Shakti Samanta की फिल्म लटक गई। फिल्म में फाइनेंसरों का और बाजार का ढेर पैसा लगा हुआ था, जिसके कारण शक्ति सामंत की हालत खराब हो गई।
Shakti Samanta ने उधारी चुकाने के लिए बनाई फिल्म ‘आराधना’
फिल्म ‘जाने-अंजाने’ की उधारी चुकने के लिए शक्ति सामंत ने सोचा कि कोई छोटीमोटी फिल्म बना लेते हैं और इसके लिए उन्होंने राइटर सचिन भौमिक से कहानी मांगी तो सचिन भौमिक ने उन्हें स्त्री प्रधान कहानी ‘आराधना’ पकड़ा दी, जिसमें एक औरत के जवानी से बुढ़ापे तक की कहानी थी।
शक्ति सामंत ने इस कहानी को लेकर अपर्णा सेन से बात की लेकिन वो तैयार नहीं हुईं। इसके बाद शक्ति सामंत पहुंचे शर्मीला टैगोर के पास। जो ‘कश्मीर की कली’ में काम कर चुकी थीं।
चूंकि हिंदी सिनेमा में उन्हें Shakti Samanta के कारण इंट्री मिली थी तो उन्होंने थोड़ा हिचकिचाते हुए हां करते हुए पूछा कि हीरो कौन है? शक्ति सामंत ने कहा एक नया लड़का है राजेश खन्ना। उसकी पिछली तीन फ़िल्में फ्लॉप हो चुकी हैं, लेकिन लड़का टैलेंटेड है।
‘आराधना’ अभी पन्नों में ही थी कि शक्ति सामंत के एक मित्र सुरिंदर कपूर (अनिल कपूर और बोनी कपूर के पापा) ने उन्हें अपनी फिल्म ‘एक श्रीमान एक श्रीमती’ की रील दिखाई। फिल्म देखते ही शक्ति सामंत को पसीना आने लगा क्योंकि ‘एक श्रीमान एक श्रीमती’ और ‘आराधना’ का क्लाइमैक्स एकदम सेम था क्योंकि दोनों फिल्मों के राइटर सेम थे, सचिन भौमिक।
निराश शक्ति दा ने ‘आराधना’ बनाने का विचार छोड़ दिया। तभी उन्हें फिल्म राइटर मधुसूदन कालेलकर और गुलशन नंदा मिले। शक्ति सामंत ने गुलशन नंदा की कहानी पर ही एक फिल्म ‘सावन की घटा’ शर्मिला टैगोर को लेकर बनाई थी।
Shakti Samanta अब ‘आराधना’ छोड़कर गुलशन नंदा की कहानी ‘कटी पतंग’ को बनाने की तैयारी करने लगे। लेकिन गुलशन नंदा और कालेलकर ने कहा कि पहले ‘आराधना’ को री-राइट करते हैं अगर फिर भी पसंद नहीं आयी तो ‘कटी पतंग’ बनाएंगे।
कुछ ही दिनों में गुलशन नंदा ने फिल्म ‘आराधना’ का सेकंड हाफ पूरा बदल दिया। शक्ति दा ने अनमने ढंग से ‘आराधना’ को शूट पूरा किया। शक्ति दा के उम्मीद के विपरीत इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया। इस फिल्म में सचिन देव बर्मन ने यादगार म्यूजिक दिया।
7 नवंबर 1969 को जब दिल्ली में फिल्म ‘आराधना’ का प्रीमियर शुरू हुआ तब Shakti Samanta बहुत नर्वस थे। लेकिन जब फिल्म ख़त्म हुई तो दर्शक आनंद बख्शी का लिखा गीत ‘मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू’ गुनगुनाते हुए सिनेमा हॉल से बाहर निकले।
फिल्म ‘आराधना’ के लिए शक्ति सामंत, शर्मीला टैगोर और किशोर कुमार को फिल्मफेयर मिला लेकिन सबसे ज्यादा फायदा मिला राजेश खन्ना को। जिन्हें दर्शकों ने रातोंरात सुपरस्टार बना दिया।
फिल्म ‘कटी पतंग’ में Shakti Samanta ने एक विधवा की व्यथा को बखूबी फिल्माया
साल 1970 में शक्ति सामंत ने फिल्म ‘कटी पतंग’ बनाई। इस फिल्म राजेश खन्ना और आशा पारेख के कमाल के अभिनय किया है। फिल्म में आशा पारेख ने एक विधवा का किरदार निभाया है। वहीं राजेश खन्ना उनके पड़ोसी बने हुए हैं।
‘कटी पतंग’ राजेश खन्ना की लगातार 17 हिट फिल्मों में से एक है। फिल्म में म्यूजिक राहुल देव बर्मन का है और गीतकार आनंद बख्शी की कलम से निकला ‘प्यार दीवाना होता है मस्ताना होता है’ गीत आज भी मोहब्बत का मकबूल गीत माना जाता है।
इसके बाद Shakti Samanta ने साल 1972 में फिल्म ‘अमर प्रेम’ बनाई। यह फिल्म बांग्ला फिल्म ‘निशि पद्मा’ की रीमेक थी। यह फिल्म बिभूतिभूषण बंधोपाध्याय की बांग्ला कहानी ‘हिंगर कोचुरी’ पर आधारित है।
Shakti Samanta की इस फिल्म में शर्मिला टैगोर ने नगरवधु की भूमिका निभाई, जिसमें राजेश खन्ना और विनोद मेहरा ने शानदार एक्टिंग की। इस फिल्म में सचिनदेव बर्मन के बेटे राहुल देव बर्मन ने म्यूजिक दिया। फिल्म ‘अमर प्रेम’ में आनंद बख्शी की कलम से निकले गीत ‘कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना’ को गाकर किशोर कुमार ने अमर कर दिया।
साल 1975 में शक्ति सामंत ने ‘अमानुष’ बनाई। यह एक ड्रामा फिल्म है जिसमें शर्मिला टैगोर, उत्तम कुमार और उत्पल दत्त हैं। फिल्म ‘अमानुष’ ने बंगाली हीरो उत्तम कुमार को शोहरत के शीर्ष पर पहुंचा दिया। वहीं रंगमंच के जानेमाने कलाकार उत्पल दत्त को बतौर विलेन सिनेमा में स्थापित कर दिया।
फिल्म ‘अमानुष’ हिंदी के साथ-साथ बांग्ला, तेलुगू, मलयालम और तमिल भाषा में भी बनी। फिल्म ‘अमानुष’ में संगीत श्यामल मित्रा ने दिया और सभी गीत इंदीवर की कलम से निकले। फिल्म का टाइटल गीत ‘दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा, अमानुष बनाकर छोड़ा’ हिंदी सिनेमा के सुपरहिट गीतों में से एक माना जाता है।
Shakti Samanta को साल 1969 की फिल्म ‘आराधना’, साल 1972 की फिल्म ‘अनुराग’ और साल 1975 की फिल्म ‘अमानुष’ के लिए फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला।
हज़ारों युवाओं की तरह फ़िल्मों में ‘हीरो’ बनने के सपना आंखों में पाले मायानगरी बंबई पहुंचे शक्ति सामंत के जीवन का कारवां 83 साल की उम्र में 9 अप्रैल 2009 को मुंबई में ठहर गया।
वैसे अगर देखा जाए तो कालजयी कला को जन्म देने वाले कलाकार कभी नहीं मरते। दशकों से पड़ रही वक्त की धुंध में आज भी Shakti Samanta की फिल्में चमक रही हैं।
इसे भी पढ़ें: