Sardar Udham Singh Birth Anniversary: सरदार उधम सिंह (Sardar Udham Singh) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी और क्रांतिकारी थे। जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) का बदला लंदन (London) जाकर लेने वाले उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। पिता जी सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे। जब उधम सिंह का जन्म हुआ तो पिता ने नाम दिया शेर सिंह। इनके एक भाई भी थे जिनका नाम मुख्ता सिंह था। सात साल की उम्र में उधम सिंह के सर से मां का साया उठ गया। उसके छह साल बाद पिता भी दुनिया से चल बसे। मां-पिता के जाने के बाद दोनों भाईंयों को अमृतसर (Amritsar) के सेंट्रल खालसा अनाथालय में भेजा गया।
Sardar Udham Singh Birth Anniversary: जलियांवाला बाग हत्याकांड की कहानी

अनाथालय वालों ने शेर सिंह को उधम सिंह नाम दिया और मुख्ता सिंह को साधु सिंह नाम दिया। पर समाज की एकता के लिए उधम सिंह ने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था। यह भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।
अंग्रोजों की गुलामी तले दोनों भाई अपने जीवन को संवारने में लगे हुए थे, तभी फिर उधम सिंह के भाई साधु सिंह 1917 में दुनिया से चल बसे। पर देश को और खुद को एक बेहतर जीवन देने की उम्मीद में उधम सिंह अपनों का साया सर से उठने के बाद निराश नहीं हुए। वे पढ़ाई में लगे रहे और 1918 में मैट्रिक के एग्जाम पास किए। साल 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया।
1919 वही साल था जब देशभर में जनता रॉलेट एक्ट के तहत कांग्रेस के सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू की अंग्रेजा द्वारा गिरफ्तारी का विरोध कर रही थी। इसी विरोध में जनता 1919 में बैसाखी के दिन पंजाब के अमृतसर में हजारों की संख्या में एक पार्क में जमा हुई। भारतीय दोनों स्वतंत्रता सेनानी की गिरफ्तारी को लेकर वहां पर शांति पूर्वक आंदोलन कर रहे थे। जनरल डायर अपनी फौज लेकर वहां धमका। फौज ने पूरे बाग को घेर लिया। इकलौते बाहर जाने वाले रास्ते को बंद कर दिया, फिर शुरू किया नरसंहार का तांडव। उसने न तो प्रदर्शनकारियों को जाने के लिए कहा और न ही कोई वार्निंग दी। डायर ने बस एक काम किया। अपनी फौज को फायरिंग करने का ऑर्डर दिया।
Sardar Udham Singh ने जलियांवाला बाग की मिट्टी की खाई कसम

लोग अपनी जान बचाने के लिए दिवारों पर चढ़ने लगे, कुएं में कूद गए। बूढ़े- बच्चे सब अपनी जान बचाने के लिए रास्ता तलाश रहे थे। पर डायर की क्रूर फौज उनपर गोलियां बरसाने में लगी थी। इस घटना में wikipedia के अनुसार 379-1000 लोगों की जान गई थी और 1,100 लोग घायल हुए थे। घटना के बाद पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश की लहर दौड़ पड़ी। पर एक व्यक्ति था जिसने 17 अप्रैल 1919 में जनरल डायर को मारकर इस हत्याकांड का बदला लेने की कसम खाई, वह थे सरदार उधम सिंह।
यहीं पर उधम सिंह ने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर और तत्कालीन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ’ ड्वायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ली। इसके बाद वो क्रांतिकारियों के साथ शामिल हो गए।
सरदार उधम सिंह क्रांतिकारियों से चंदा इकट्ठा कर देश के बाहर चले गए। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा कर क्रांति के लिए खूब सारे पैसे इकट्ठा किए। इस बीच देश में बड़े बड़े क्रांतिकारी आजादी की लड़ाई लड़ते हुए शहीद होते रहे। पर उधम सिंह का ध्यान अपने लक्ष्य की तरफ था। वो अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए मेहनत करते रहे। उधम सिंह के लंदन पहुंचने से पहले जनरल डायर की 1927 में ब्रेन हेमरेज के कारण मौत हो गई। ऐसे में उधम सिंह के आक्रोश का निशाना बना उस नरसंहार के वक्त पंजाब का गवर्नर रहा माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर जिसने नरसंहार को उचित ठहराया था।
1940 में प्रतिज्ञा को किया पूरा

13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हॉल में बैठक थी। वहां माइकल ओ’ ड्वायर भी स्पीकर्स में से एक था। उधम सिंह उस दिन टाइम से वहां पहुंच गए।
अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा रखी थी। हथियार को हॉल में लेकर जाने में दिक्कत न हो इसलिए उन्होंने किताब के पन्नों को रिवॉल्वर के शेप में काट लिया था। और बक्से जैसा बनाया था। उससे उनको हथियार छिपाने में आसानी हुई। बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ’ ड्वायर को निशाना बनाया। उधम की चलाई हुई दो गोलियां ड्वायर को लगी जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई।
13 मार्च 1940 को शहीद उधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पुरी की। माइकल ओ. डायर को लंदन के ‘कैक्सटन हाल’ में तिन गोलिया मारकर दुनिया से बाहर पहुंचा दिया। शहीद उधम सिंह ने अपने ब्यान में कहा था ” मैने एक हत्यारे को मारा हैं और मेरा उदेश्य दुनिया को ये बताना हैं कि भारतीय खून इतना सस्ता नहीं कि कोई भी 1400 निर्दोष लोगों को गोली से भुन दे। मैंने 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय संकल्प लिया था कि मैं इस खून का बदला जरुर लूंगा ठीक बीस वर्ष और ग्यारह महीने के बाद मैंने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।
4 जून, 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया। 31 जुलाई, 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। ऐसे में अंग्रेजों के घर में भारतीयों की मौत का बदला लेने वाले सरदार उधम सिंह भारत के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गए।
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